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वो टेलीफोन ऑपरेटर लड़का!!

डॉ ख़ुर्शीद अहमद अंसारी

कोंकणी हिन्दू परिवार में जन्मा और कर्नाटक के एक गांव में जन्म लेने वाला वो लड़का नाम से वसंतकुमार शिवशंकर पादुकोण था लेकिन बचपन के एक दुर्घटना के बाद उसके घर वालो ने उसका नाम बदल दिया जिसे दुनिया का सिनेमा इतिहास कभी न भूल पायेगा क्योंकि उसकी रचनाएं, उसकी कृतियां और उसकी शैली सदैव भारतीय सिनेमा जगत के शिष्यों के लिए कई सबक़ पढ़ाने को संरक्षित रहेगी।

बचपन मे अपने नाम के बदले जाने के बाद वो लड़का बंगाल चला जाता है। पिता जी के दबाव के कारण उसे “लिवर बंधु” के कारख़ाने में टेलीफ़ोन ऑपरेटर का काम मिलता है कन्नड़ लड़का, अपनी परवरिश और भौगोलिक व सांस्कृतिक परिवेश के कारण बंगला बेहद शानदार बोलने लगता है और उसे दक्षिन और पूर्व के संतुलित सम्मिश्रण को व्यख्यायित करता गया। जल्दी ही ऊबना था सो ऊब गया और किसी रिश्तेदार ने फिर नौकरी के लिए मुम्बई बुलवा भेजा और एक आज़ाद आत्मा को एक बार फिर उसी क़ैद का सामना करना पड़ा जिसमे कभी उसका दिल नही लगा।

सुविख्यात निर्मात्री और निर्देशिका ललिता और कल्पना लाज़मी का ये भाई मुम्बई के माटुंगा के एक चाल में रहता था लेकिन वो नौकरी के लिए बना ही   न था।इसलिए उसने अपने लिए एक नया जहां तलाश किया, और चलचित्र और सिनेमा की दुनिया मे अमरत्व प्राप्त किया जिसे दुनिया “गुरु दत्त”के नाम से जानती है। 2002 में टाइम पत्रिका ने और 2010 में लाइट एंड साउंड नामक पत्रिका ने सिनेमा इतिहास के बेहतरीन निर्देशकों और नायकों में शामिल किया जो नस्लो के लिए प्रेरणा बनती रहेगी।

गुरुदत्त की दोस्ती मुम्बई में दो लोगों से हुई रहमान और देवानंद से जिनके साथ उन्होंने ऐसे किरदारों और ऐसी कृतियों का सृजन किया है जिसको रहती दुनिया तक याद रखा जाएगा। प्यासा, काग़ज़ के फूल, साहब बीबी और ग़ुलाम और चैदहवीं का चांद बनाने वाला ये सितारा अपने गाम्भीर्य और बेहतरीन अदा कारी के लिए हमेशा याद रखा जाए गा।

देवानंद से दोस्ती की वजह से आपसी समझौता यह हुआ कि नवकेतन सिनेमा के बैनर तले बनने वाली कोई फ़िल्म जिसमे देवानंद नायक होंगे या अभिनय करेंगे असका निर्देशन गुरु दत्त करेंगे और जिसमे गुरुदत्त अभिनय करेंगे उन फिल्मों का निर्देशन देवानंद के बड़े भाई चेतनानंद करेंगे और परिणाम स्वरूप बाज़, जाल ,बाज़ी, सी आई डी, मिस्टर एंड मिसेस  आदि जैसी 60 के दशक की फिल्में वजूद में आईं जिनमे देव और गुरुदत् के उस दोस्ती के रिश्ते की कहानी और अप्रत्यक्ष अनुबंध के परम्परा का निर्वहन किया गया।1950 से 1960 तक कि फिल्में में गुरुदत्त द्वारा सिनेमा को दी गई कालजयी रचनात्मकता का स्वर्णकाल ही माना जायेगा। के आसिफ़ ने चाहा था कि उनकी सबसे आख़िरी फ़िल्म “लव एंड गॉड” को रंगीन फ़िल्म में निर्मित किया जाए और उसमे अभिनय गुरूदत्त करें लेकिन लव एंड गॉड के बनने के दौरान ही गुरुदत्त इस दुनिया को अलविदा कह गए शराब और नींद की गोलियों के अधिक सेवन के कारण बहरहाल लव एंड गॉड कई साल के बाद रिलीज़ हुई

लेकिन उसमे अभिनय करने का सेहरा हिंदुस्तानी सिनेमा।के दूसरे गंभीर धीर और एक्टिंग के संस्थान कहे जाने वाले हरिभाई “संजीव कुमार” को सौंपी गई। अजीब इत्तेफ़ाक़ की 9 जुलाई 1925 को गुरुदत्त का जन्म हुआ और आज की ही तारीख़ को हिंदी सिनेमा में एक्टिंग की “आंधी “लाने वाला नया दिन नई रात के अभिनेता संजीव कुमार ने दुनिया को अलविदा कहा। दोनों में समानता यह कि वो।कला के क्षेत्र में सांस्थानिक व्यक्तित्व तो थे ही पर दोनों ने बहुत जल्दी दुनिया ए फ़ानी से कूच किया।

आज गुरु दत्त की जन्मतिथि है और संजीव कुमार”ठाकुर” की पुण्यतिथि। दोनों महान कलाकारों को दिल की गहराइयों से ख़िराज ए अक़ीदत।

लेखकः डॉ ख़ुर्शीद अहमद अंसारी, एसोसिएट प्रोफ़ेसर यूनानी चिकित्सक, जामिया हमदर्द, नई दिल्ली

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