मदन कोथुनियां 

कहा जाता है कि इतिहास जब गौरव मात्र करने की विषयवस्तु बन जाता है तो इतिहास खुद को बार-बार दोहराने लगता है। और जब ऐतिहासिक गौरव में संस्कृति का तड़का लगा दिया जाए तो भविष्य, इतिहास से दो कदम पीछे जाकर खड़ा हो जाता है। मानव सभ्यता को दुबारा आगे बढ़ना होता है तो इतिहास के रोड़ों की अदृश्य दीवारों को तोड़ने के लिए दुबारा मेहनत करनी पड़ती है। काबुल के पास के गजनी गांव से महमूद अपने 200-300 साथियों के साथ गुजरात के सोमनाथ को लूटने निकलता है क्योंकि अलबरूनी के माध्यम से उसको जानकारी मिली थी कि इस मंदिर में बहुत धन जमा पड़ा है। यह खबर गुजरात के राजा को पता चली तो पुरोहितों व मंदिर के पंडितों को पूछा गया कि बचाव का क्या उपचार किया जाए?

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पंडितों ने राजा को सलाह दी। हे राजन! घी, लकड़ी सहित हवन सामग्री का इंतजाम किया जाए। हम बहुत बड़ा हवन करेंगे और महामृत्युंजय मंत्रों का जाप करेंगे जिससे गजनी रास्ते में ही अंधा हो जाएगा व मौत के मुँह में समा जाएगा। राजा ने आदेश दिया कि सब लोग घी दान करें, हवन सामग्री एकत्रित करके पहुंचाएं, लकड़ियों का इंतजाम करें। सारी सेना व जनता को इस धंधे पर लगा दिया गया। जब महमूद आया तो माहौल देखकर हैरान हो गया! जब गजनी के लुटेरों की तलवारें चलीं तो लाशों के ढेर लग गए। मंदिर का सारा धन लूट लिया और चुम्बकीय प्रभाव से ऊपर लटकती मूर्ति जमींदोज हो गई। वापस जाते हुए खेतों में काम कर रहे किसानों ने इन लुटेरों को वापस लूटकर कुछ हिस्सा बचा लिया।

उसके बाद विदेशी लुटेरों की ऐसी झड़ी लगी कि देश एक हजार साल तक गुलाम रहा।आधे पंडित शिफ्ट होकर विदेशियों के दरबारी बन गए और आधे मंदिरों की रखवाली में लगे रहे। इतिहास सबक लेने की विषय वस्तु होती है। आज गजनी के बजाय वुहान से एक लुटेरा आया है। राजा ने पंडितों-पुरोहितों से सलाह ली तो कहा गया कि ताली-थाली बजाओ, दीये-मोमबत्ती जलाओ! देश संकट में है और राजा झोली फैलाकर देश की जनता से हवन सामग्री मांग रहा है। क्या आपको लगता है कि हमने इतिहास से कोई सबक लिया है? देश के मंदिरों में अकूत दौलत पड़ी है। देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी है। सेंसेक्स धड़ाम हो चुका है। विदेशी लुटेरे सस्ते में माल ले गए व अब दस गुना दामों में दुबारा दे रहे है। सैकड़ों महमूद अलग-अलग तरीकों से देश की दौलत लूटकर ले जा रहे हैं। खुशी की बात है कि किसान आज भी खेतों में खड़े हैं और कुछ बचा लेंगे मगर इन राजाओं/ पंडितों/पुरोहितों का क्या? क्या ये अपने पुरखों के इतिहास से सबक लेने को तैयार नजर आ रहे हैं?

जब पृथ्वीराज चौहान तराईन के मैदान में हार गए ।राज्य की पूंजी मंदिरों में जमा कर ली गई थी और जंग लगी तलवारों/शंखों के साथ लड़ने के लिए मैदान में उतरना पड़ा था। हमने सबक लेने के बजाय पृथ्वीराज रासो लिखी और झूठी महानता का बखान करके भावी पीढ़ियों को भी सच्चाई से अवगत होने से महरूम कर दिया। हर जंग में हमारा रवैया यही रहा और बार-बार मात खाते रहे और अब भी खा रहे हैं। आज देश के करोड़ों कामगार लोग रोटी को तरस गए हैं।कोरोना के हमले के बीच बाकी बीमारियों का इलाज अवरुद्ध हो चुका है। कोरोना के खिलाफ लड़ रहे स्वास्थ्य कर्मियों से लेकर पुलिस-प्रशासन के जवान जंग लगी तलवारें लेकर मैदान में लड़ रहे हैं और राजा पंडितों की सलाह पर महा यज्ञ आयोजित करवा रहा है। झूठी महान संस्कृति की बुनियाद पर खड़े होकर भविष्य के लिए चमत्कार ढूंढ रहा है। आज झूठे साहित्य नहीं रचे जा सकते इसलिए नाकामी छुपाई नहीं जा सकती। नाकामी का ठीकरा फोड़ने के लिए बदकिस्मती से भारत में आज मुसलमान उपलब्ध है! जनता को दुबारा महमूद गजनी को पढ़ना चाहिए और वर्तमान हालातों से तुलना करनी चाहिए। क्या राजा ने सबक लिया है या अपने पुरखों के इतिहास को ही दोहरा रहा है?

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