ज़ाहिद खान
समाचार माध्यमों और सोशल मीडिया पर अफवाह और झूठी खबरें फैलाने वालों के प्रति सर्वोच्च न्यायालय ने आखिरकार कड़ा रुख अख्तियार किया है, हाल ही में एक मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा, प्रवासी मजदूरों के पलायन को नजरअंदाज नहीं कर सकते, हम मुख्य रूप से प्रवासी मजदूरों के कल्याण को लेकर चिंतित हैं, लेकिन जो एक झूठा अलार्म करता है या आपदा या इसकी गंभीरता या परिमाण के रूप में चेतावनी देता है, जिससे घबराहट होती है, ऐसे व्यक्ति को कारावास से दंडित किया जाएगा जो एक वर्ष तक या जुर्माना के साथ बढ़ सकता है, किसी लोक सेवक द्वारा दिए गए आदेश की अवज्ञा करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत दंडित किया जाएगा,
अदालत ने इसके साथ ही मीडिया को नसीहत देते हुए यह निर्देश भी दिए, महामारी के बारे में स्वतंत्र चर्चा में हस्तक्षेप करने का उसका कोई इरादा नहीं, लेकिन मीडिया को घटनाक्रम के बारे में आधिकारिक बयानों को संदर्भित और प्रकाशित करना चाहिए, यही नहीं अदालत ने देश के सभी संबंधित अर्थात राज्य सरकारें, सार्वजनिक प्राधिकरण और नागरिकों से अपेक्षा की, कि वे ईमानदारी से सार्वजनिक सुरक्षा के हित में जारी निर्देशों, सलाह और आदेशों का पालन करेंगे, खास तौर से मीडिया (प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक या सोशल मीडिया) से अपेक्षा है कि वे जिम्मेदारी की एक मजबूत भावना बनाए रखें और यह सुनिश्चित करें कि घबराहट पैदा करने में सक्षम असत्यापित समाचार प्रसारित न हों,
अदालत की यह चिंताएं जायज भी हैं, जब देश कोरोना वायरस कोविड-19 जैसी महामारी के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है, उस वक्त वाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर एवं अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर अनेक झूठ, दावे और अफवाहें फैलाई जा रही हैं, जिसमें आसन्न आपातकाल की घोषणा और लॉकडाउन की अवधि बढ़ाये जाने जैसे बेतुके दावे शामिल हैं, हालांकि आधिकारिक एजेंसियां और तथ्य जांचने वाली कई निजी इकाइयां, अपने-अपने स्तर पर इस तरह की फेक न्यूज, फेक वीडियो आदि की जांच कर, उन्हें देशवासियों के सामने लाती रहती हैं, उन्हें तत्परता से खारिज करती हैं, बावजूद इसके अफवाह, फेक वीडियो और आधी सच्चाई का सोशल मीडिया पर फैलाया जाना जारी है, ऐसे गंभीर समय में भी एक पूरे समुदाय को खलनायक की तरह पेश करने वाले झूठे वीडियो, सोशल मीडिया पर बराबर आ रहे हैं, जिन्हें लोग सत्यता की जांच किए बिना सच मान लेते हैं, जो ऐसी अफवाहें और झूठ फैलाते हैं, ‘आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005’ की धारा 54 में ऐसे व्यक्तियों को दंडित करने का स्पष्ट प्रावधान है, लेकिन ज्यादातर मामलों में पुलिस या तो इन्हें नजरअंदाज कर देती है या फिर उन पर प्रभावी कार्यवाही नहीं करती,
जिसके चलते, शरारती तत्व अपना घिनौना काम बदस्तूर जारी रखते हैं, विपदा की इस घड़ी में जब पूरे देश को कोरोना वायरस के खिलाफ एक साथ खड़ा होना चाहिए, कुछ लोग अपनी घिनौनी हरकतों से विभिन्न समुदायों के बीच दूरी बढ़ाने का काम कर रहे हैं, ऐसे माहौल में भी उन्होंने अपनी साम्प्रदायिक राजनीति नहीं छोड़ी, अपने षड्यंत्रकारी विचारों से वे बड़े पैमाने पर जनमानस को प्रभावित करने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं, जिससे अंततः समाज या देश को नुकसान ही होता है,
कोरोना वायरस से निपटने के लिए सरकार ने पूरे देश में 25 मार्च से आगामी 21 दिनों यानी 14 अप्रैल तक के लिए अचानक लॉक डाउन किया था, लॉक डाउन की वजह से महानगरों में काम करने वाले लाखों प्रवासी मजदूरों-कामगारों के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया, जिसके चलते हजारों प्रवासी मजदूर पैदल ही अपने-अपने घरों की ओर चल दिए, मजदूरों के पलायन की तादाद बढ़ने के पीछे भी फर्जी खबरें या अफवाहें थीं, जिसमें यह कहा जा रहा था कि लॉक डाउन तीन महीने से अधिक समय तक जारी रहेगा, जाहिर है इस खबर से उनमें घबराहट पैदा हुई और उनका पलायन बढ़ गया, और यह सब कुछ हुआ, संक्रमण और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किए बिना, जिसका खामियाजा अब बाकी लोगों को भुगतना पड़ रहा है, जिन दूर-दराज के गांवों में कोरोना वायरस का दूर-दूर तक नामोनिशान ना था, अब वहां भी कोरोना संक्रमित लोगों के निकलने की खबरें आ रही हैं,
ऐसे गंभीर हालात में अपराधी और धोखेबाज भी अपनी धोखाधड़ी और चालबाजी से बाज नहीं आते, कोरोना वायरस की महामारी से मुकाबले के लिए हाल में शुरू किये गए ‘पीएम केयर्स फंड’ के दानदाताओं को धोखा देने के लिए, इन धोखेबाजों ने एक फर्जी ‘यूनीफाइड पेमेंट्स इंटरफेस’ (यूपीआई) आईडी बना ली, जो कि सही आईडी से मिलती-जुलती थी, दिल्ली पुलिस की साइबर अपराध इकाई को जब यह जानकारी मिली, तो उन्होंने दानदाताओं को इस बात से आगाह किया, वरना, वे हजारों लोगों को चूना लगा देते, बहरहाल, इस तरह की झूठी खबरों और अफवाहों के प्रति अब सरकार भी सजग हुई है, लोगों की शंकाओं को दूर करने के लिए भारत सरकार द्वारा सोशल मीडिया समेत सभी समाचार माध्यमों के जरिए, अब एक दैनिक बुलेटिन जारी किया जा रहा है, जिसमें उन्हें जरूरी जानकारियां दी जाती हैं, ताकि वे गुमराह न हों, सरकार ने 21 दिनों की लॉकडाउन अवधि को बढ़ाने की अफवाहों को खारिज करते हुए कहा है कि ये सारी बातें निराधार हैं, सरकार के साथ-साथ भारतीय सेना ने भी ट्वीट के जरिये उन अफवाहों का खंडन किया है, कि अप्रैल के मध्य में इमरजेंसी की घोषणा कर दी जाएगी, सेना ने साफ किया है कि सोशल मीडिया में फैलाया जा रहा ये वायरल मैसेज, पूरी तरह से गलत और दुर्भावनापूर्ण है,
झूठी खबरें और अफवाहें सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि दुनिया के बाकी देश भी इससे प्रभावित हैं, अमेरिका, ब्रिटेन आदि पश्चिम के देशों में भी कई तरह के झूठ और अफवाहें फैल रही हैं, एक-दूसरे देश को शक की निगाह से देखा जा रहा है, महामारी के पीछे षड्यंत्र देखा जा रहा है, यही वजह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक डॉ. टेडरोस अधानोम ग्रेब्रियसस को इन असामान्य स्थितियों से निपटने के लिए, यह बयान जारी करना पड़ा,‘‘हम सिर्फ एक महामारी से नहीं लड़ रहे हैं, हम एक इंफोडेमिक से लड़ रहे हैं, इस वायरस की तुलना में नकली समाचार तेजी से और अधिक आसानी से फैलते हैं, और यह उतना ही खतरनाक है,’’