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मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारों में जाइए और कोरोना लेकर वापिस आइए

जितेंद्र चौधरी    

हिंदी कविता के बहुत बड़े कवि गोपाल दास नीरज जी ने कहा था, जब तक मन्दिर और मस्जिद हैं, मुश्क़िल में इन्सान रहेगा।   आज से सरकार ने सभी धार्मिक स्थलों को जनता के लिए खोल दिया है। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन आपको ही करना है तथा मूर्ति और घंटी से दूर रहना है। आपका अगर मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वार के बगैर गुजारा नहीं हो रहा हो तो जरूर जाइए और वापसी में अपने परिवार के लिए कोरोना रूपी सौगात लेकर आइए। अब जब कोरोना के मामलों में हम दुनिया मे पांचवें नंबर पर पहुंच गए हैं और बढ़ने की रफ्तार बहुत तेज है, तो हमारा मंदिर, मस्जिद, चर्च या गुरुद्वारा जाना तो बनता ही है। परंतु ध्यान रखना, यह सब वही है जो कोरोना काल में आपके किसी काम नहीं आए। फिर भी आपको अगर जाना ही है तो दान पेटी से कुछ ज्यादा दूरी बना कर रखना। आपको पता होना चाहिए ईश्वर, अल्लाह, गॉड ,वाहेगुरु दाता है और आप उन्हें दान देकर छोटा करने का काम ना करें। उन्हें आपके किसी दान की कोई जरूरत नहीं है। और अगर वह आपके दान से चलते हैं तो फिर आप बड़े हैं फिर वहां जाकर आपको खतरा मोल लेने की कोई जरूरत नहीं है।  

सरकारें आपको धर्म में उलझा कर रखना चाहती हैं, क्योंकि गलती से आपकी आंख खुल गई और आप आर्थिक स्थिति, कोरोना काल में राहत, काम धंधे, रोजगार, व्यवस्था, बिजली बिल, ईएमआई , गरीबी, भुखमरी और सरकार की समझदारी पर सवाल उठा सकते हैं। आपके जागने का मतलब है आप सवाल पूछने लगेंगे, जो सरकार कभी नहीं चाहती।   करोड़ों लोगों की जिंदगी को पटरी पर लाने की बजाए सरकारें अब राज्य चुनावों की तैयारी में जुट जाएंगी और आपका धार्मिक अंधापन उनके लिए संजीवनी का काम करेगा। आपने कहावत सुनी होगी जब रोम जल रहा था तब नीरो बांसुरी बजा रहा था। यह कहावत भारत में भी लागू होती है। जब देश के करोड़ों प्रवासी मजदूर सड़कों पर चल रहे थे उस समय सत्ता की सालगिरह मनाई जा रही थी। अभी करोड़ों लोगों की जिंदगी अनिश्चितता के भंवर में फंसी पड़ी है और राजनैतिक पार्टियां चुनावी खेल खेलने की शुरुआत कर चुकी हैं।   हिमाचल में गाय के साथ हुई क्रूरता आपको दिखाई नहीं पड़ेगी लेकिन केरल की हथिनी आपको बारबार दिखाई जाएगी। लाखों महिलाएं जो गर्भवती होने के बावजूद सड़कों पर चली उनकी विवशता आपको नहीं दिखाई जाएगी। नोएडा जैसे हाईटेक सिटी में एक गर्भवती महिला की एंबुलेंस में मौत मानवता के नाम पर कलंक है। परंतु आप मंदिर मस्जिद में उलझे रहिए। एक बुजुर्ग की वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है जिसके दोनों हाथ और पैर, पैसे ना देने की वजह से अस्पताल में बांधे हुए हैं। जहां सिस्टम इतना बेरहम हो वहां पर जानवरों पर करुणा, दिखावा या ढोंग सा दिखता है।   मंदिर में प्रवेश को लेकर अमरोहा में एक युवक की हत्या तथाकथित उच्च जाति के लोगों द्वारा कर दी जाती है बावजूद बहुजन और पिछड़े समाज के लोग कांवड़ जैसे अनुष्ठान करते हैं। तुम्हारी इसी अंधभक्ति के कारण तुम गरीब हो। अशिक्षा और अंधविश्वास तुम्हें ले डूबेंगे।   

69,000 शिक्षकों की भर्ती में गंभीर अनियमितताएं पाई गई हैं। स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार हुआ होगा परंतु आप घंटा बजाते रहिएअशिक्षा, धर्म, जाति, पाखंड, आडंबर और आपकी अंधभक्ति आपके डूबने का प्रमुख कारण है। इन से बाहर आए बगैर आपका जीवन स्तर किसी भी हालत में नहीं सुधर सकता। सरकार महामारी से लड़ने में विफल रही, युवाओं को रोजगार देने में विफल रही, शिक्षा का बंटाधार कर दिया, किसानों में हाहाकार मचा हुआ है, बहन बेटियों के साथ बलात्कार हो रहे हैं, प्रवासी मजदूरों पर सरकार फेल रही। उन सब से ध्यान हटाने के लिए आपको धर्म का झुनझुना पकड़ा दिया गया है। धर्म के साथ-साथ आपको राष्ट्रवाद का झुनझुना भी बजाना होगा। भारतीय सेना में सिर्फ भारती य होने चाहिए परन्तु वहां पर भी भेदभाव जारी है। जाति आधारित रेजीमेंट बनी हुई है, क्यों ? और अगर है तो दूसरी जातियों को प्रतिनिधित्व क्यों नहीं दिया जा रहा? ओबीसी और दलित वर्ग की रेजिमेंट क्यों नहीं है? क्या यह भारतीय नहीं हैं? क्या इन्होंने सेना में अपनी कुर्बानियां नहीं दी हैं? मीडिया सारी दुनिया में डंका बजवा रही है। कोई टिड्डी भेज रहा है, कोई कोरोना भेज रहा है, एक पड़ोसी मनमर्जी नक्शे छाप रहा है एक पड़ोसी लद्दाख में टेंट गाड़ रहा है। डंके का पता नहीं कहां बज रहा है। मीडिया गजब के रोल में नजर आ रहा है।

दाऊद इब्राहिम अब तक 7 बार मर चुका है। विजय माल्या की मुश्किलें अब तक 26 बार बढ़ चुकी है। नीरव मोदी सातवीं बार बैंकों की पाई पाई लौटाने को तैयार है। बगदादी 164 बार मारा गया। दाऊद की संपत्ति 20 बार जब्त हो चुकी है। जाकिर नायक का प्रत्यर्पण 35वीं बार और ब्रिटेन दसवीं बार कोहिनूर लौटाने को तैयार हो चुका है।   कोरोना के आंकड़ों के साथ भी गजब का खेल खेला जा रहा है। नोडल अधिकारियों की ड्यूटी सिर्फ इसलिए लगाई जा रही है कि आंकड़ों में हेराफेरी की जा सके। और आंकड़ों की बाजीगरी में हमारी सरकारों और अधिकारियों से ज्यादा किसी को भी महारत हसिल नहीं है।





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