लखनऊ (यूपी) : समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है कि प्रदेश में कोरोना संक्रमण से भयावह हालात है। भाजपा सरकार ने पिछली घटनाओं से कोई सबक नहीं सीखा उसी अक्षम्य लापरवाही का नतीजा है कि सब तरफ अफरा तफरी मची हुई है।

भाजपा सरकार ने अपनी वाहवाही के मेडल बटोरने में ही पूरा साल गुजार दिया और जनता को बिना इलाज मरने को छोड़ दिया है। इससे ज्यादा शर्मनाक और क्या होगा कि मुख्यमंत्री जी ‘टीका उत्सव‘ मना रहे हैं जबकि राजधानी लखनऊ की जनता ‘चिता उत्सव‘ में डूबी है।

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अंतिम संस्कार के लिए कई दर्जन नए प्लेटफार्म बनाने पड़े हैं, विद्युत शवदाह गृह कम पड़ गए हैं और शवदाह के लिए लकड़ियां बाहर से मंगानी पड़ रही है।

कैसी विडम्बना है कि कोरोना के दूसरे संक्रमण के दौर में उत्तर प्रदेश में न पर्याप्त दवाइयां मिल रही है, नहीं ट्रैकिंग और टेस्टिंग की सुचारू व्यवस्था है। जांच रिपोर्टें 24 घंटे के बजाय 7 दिन में मिल रही है। बचाव के तौरतरीकों पर भी भ्रम की स्थिति है।

प्रदेश में 15 हजार से ज्यादा संक्रमित रविवार को मिले 67 मौते हुईं। राजधानी लखनऊ में रविवार को 4444 मरीज मिले जिनमें 31 की मौत हो गई। गोरखपुर में कोरोना संक्रमण का रिकार्ड टूटा, एक दिन में 438 मरीज मिले 3 की मृत्यु हो गयी।

अंत्येष्टि के लिए लखनऊ में वेटिंग और टोकन की व्यवस्था के विचलित करने वाले दृश्य दिखाई दिए। बड़ी संख्या में डाक्टर, पैरामेडिकल कर्मचारी भी कोरोना की चपेट में आ रहे हैं। सेनेटाइजेशन के लिए पर्याप्त मशीने नहीं है।

कोविड-19 अस्पताल पहले से भी कम है। आईसीयू बेडों का अभाव कोढ़ में खाज पैदा कर रहा है। अनुमान है कि कोरोना की इस दूसरी लहर में दैनिक संक्रमण 1.70 लाख तक पहुंच जाएगा। 20-25 अप्रैल के बीच कोरोना के मामले चरम पर होंगे।

लखनऊ में संक्रमितों की तुलना में रिकवरी रेट पांच गुना से भी कम है। धीमी रिकवरी की वजह से सक्रिय मरीजों की संख्या बढ़रही है। महज 19 प्रतिशत लोगों के ठीक होने की सूचनाएं हैं। तमाम शैक्षिक संस्थानों में शिक्षक-कर्मचारी संक्रमित पाए गए है। अव्यवस्था के चलते बहुत से होम आइसोलेट मरीजों को अस्पताल जाने में भी लग रहा है।

सरकारी अक्षमताओं के चलते कोरोना अवधि में श्रमिकों के पलायन की खबरें भी आने लगी है। कल-कारखानों के बंद होने से अर्थव्यवस्था का बुरी तरह प्रभावित होना निश्चित है। आज भी व्यापार-रोजगार की दशा ठीक नहीं है। शैक्षिक संस्थाओं की बंदी से शैक्षणिक गतिविधियां ठप्प चल रही हैं और पूरा एक वर्ष व्यर्थ चला गया है।

इन हालातो के लिए भाजपा सरकार ही दोषी है जो जनता की मूल समस्याओं से मुंह चुराते हुए इवेंट मैनेजमेंट में ही लगी रहती है। आसन्न संकट के प्रति उसमें जरा भी संवेदना और गम्भीरता नहीं है। 

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