ज़िन्दादिली: अस्पताल में युवक को अपना बेड देकर अमर हो गए बुज़ुर्ग, बोले मुझसे ज़्यादा युवक को है बेड की ज़रूरत
शमशाद रज़ा अंसारी
महाराष्ट्र
देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने हज़ारों ज़िंदगियाँ लील ली हैं। कोरोना मरीज बढ़ने के चलते देश भर के अस्पतालों में बेड, ऑक्सीजन और दवाओं की भारी किल्लत देखने को मिल रही है। ऐसे समय में तरह-तरह के मामले सामने आ रहे हैं। कहीं लाशों को कंधा नही दिया जा रहा है तो कहीं पर अपनी ज़िन्दगी की परवाह किये बिना दूसरे के लिए बेड छोड़ा जा रहा है। एक तरफ जहाँ लोग अस्पताल में बेड पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित महाराष्ट्र के नागपुर जिले के एक बुजुर्ग मानवता की मिसाल पेश की है। 85 साल के बुजुर्ग नारायण भाऊराव दाभाडकर ने यह कहते हुए एक युवक के लिए अपना बेड खाली कर दिया कि मैंने अपनी पूरी जिंदगी जी ली है, लेकिन उस व्यक्ति के पीछे पूरा परिवार है, उसके बच्चे अनाथ हो जाएंगे। अस्तपाल का बेड छोड़ने के बाद नारायण राव घर चले गए और तीन दिन में ही दुनिया को अलविदा कहते हुये सदा के लिए अमर हो गये।
नागपुर निवासी नारायण भाऊराव दाभाडकर कोरोना संक्रमित हो गए थे। उनका ऑक्सीजन लेवल घटकर 60 तक पहुँच गया था। हालत ख़राब होने पर नारायण के दामाद और बेटी ने बड़ी मुश्किल से उन्हें इंदिरा गांधी शासकीय अस्पताल में भर्ती कराया। तमाम मुश्किलों का सामना करने के बाद नारायण राव को बेड भी मिल गया। इस बीच, एक महिला रोती हुई आई, जो अपने 40 वर्षीय पति को लेकर अस्पताल लाई थी। महिला अपने पति के लिए बेड की तलाश में कर रही थी। महिला की पीड़ा देखकर नारायण ने डॉक्टर से जो कहा उनके उन शब्दों ने उन्हें सदा के लिए अमर कर दिया। नारायण ने कहा, ‘मेरी उम्र 85 साल के पार हो गई है। काफी कुछ देख चुका हूँ, अपना जीवन भी जी चुका हूँ। बेड की आवश्यकता मुझसे अधिक इस महिला के पति को है। उस शख्स के बच्चों को अपने पिता की आवश्यकता है। अन्यथा वह अनाथ हो जाएंगे। इसके बाद नारायण ने अपना बेड उस महिला के पति को दे दिया। उनके आग्रह को देख अस्पताल प्रशासन ने औपचारिकता पूरी करने के लिए उनसे एक कागज पर लिखवाया, ‘मैं अपना बेड दूसरे मरीज के लिए स्वेच्छा से खाली कर रहा हूँ।’ दाभाडकर ने स्वीकृति पत्र भरा और घर लौट गए। कोरोना पीड़ित नारायण की घर पर ही देखभाल की जाने लगी, लेकिन तीन दिन बाद उनकी मौत हो गई।