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इराक पर हमला करने वाला यूक्रेन आज मदद के लिए गिड़गिड़ा रहा है

इराक पर हमला करने वाला यूक्रेन आज मदद के लिए गिड़गिड़ा रहा है

(मुहम्मद ज़ाहिद)
मशहूर गीतकार साहिर लुधियानवी की फिल्म “वक्त” के गीत के लिए लिखी लाइन पल पल जैसे सच प्रतीत होती जाती है।

वक्त की हर शय गुलाम,
आदमी को चाहिए वक्त से डर कर रहे,
कौन जाने किस घड़ी वक़्त का बदले मिज़ाज।

कभी इराक युद्ध में 5000 सैनिकों के साथ अपनी तीसरी सबसे बड़ी सेना भेजकर अमेरिका , ब्रिटेन , पोलैंड के साथ 20 मार्च 2003 से 1 मई 2003 तक इराक पर आक्रमण करके 10 लाख लोगों को मौत के घाट उतार देने वाला यूक्रेन आज पूरी दुनिया के लोगों के सामने गिड़गिड़ा रहा है कि सभी देश उसकी मदद करें।
वक्त के बदले मिजाज़ को देखिए कि आज वही अमेरिका , ब्रिटेन , पोलैंड तक यूक्रेन के साथ खड़े होने से इंकार कर चुके हैं और रूस के यूक्रेन के आक्रमण पर दूर बैठे बयानबाजी कर रहे हैं।


यूक्रेन ने तब इराक पर तत्कालीन राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के खिलाफ जिस युद्ध में भाग लिया था , उसी सद्दाम हुसैन जैसी स्थिति में आज यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की हैं और इराक युद्ध के ठीक पहले इराक के विदेशमंत्री जिस तरह संयुक्त राष्ट्र में इराक पर आक्रमण ना करने के लिए गिड़गिड़ा रहे थे, वही स्थिति आज यूरोपिय युनियन में राष्ट्रपति जेलेंस्की की है।
पर ना तो तब संयुक्त राष्ट्र ने आवाज़ सुनी ना आज राष्ट्रपति जेलेंस्की की आवाज़ कोई सुन रहा है और वह बेबस FOAB( farher of all bomb) रूस के सामने ऐसे ही असहाय है जैसे कभी इराक और सद्दाम हुसैन थे।


अल्बानिया, ऑस्ट्रेलिया, बुल्गारिया, डेनमार्क, अल सल्वाडोर, एस्टोनिया, लिथुआनिया, रोमानिया, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ इराक की संप्रभुता पर आक्रमण करने वाला यूक्रेन आज इनसे ही मदद के लिए गिड़गिड़ा रहा है और कोई इसके साथ नहीं आ रहा है।
सद्दाम हुसैन से किसी का राजनैतिक या व्यक्तिगत विरोध हो सकता है परन्तु इस एक कारण से पूरे इराक को बर्बाद कर देना 10 लाख लोगों को मार डालने का पापी यूक्रेन भी है।
आज वह भी उसी इराक की हालत में पहुँच चुका है , और बहुत संभव है कि उसके राष्ट्रपति जेलेंस्की भी सद्दाम हुसैन की हालत में पहुँच जाएँगे।

इसीलिए कहा गया है

आदमी को चाहिए वक्त से डर कर रहे,
कौन जाने किस घड़ी वक़्त का बदले मिज़ाज।

यहां वाले भी समझ ही लें

जो आज साहिब ए मसनद हैं, कल नहीं होंगे,
किराएदार हैं, ज़ाती मकान थोड़ी है।

मुहम्मद ज़ाहिद

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