तेहरानः भारतीय पत्रकारों का एक डेलीगेशन इन दिनों इस्लामिक लोकतांत्रिक देश ईरान गया हुआ है। ईरान शिया बहुल देश है, ईरान को लेकर तरह तरह की अफवाहें दक्षिण एशिया में उड़ती रहती हैं, इसमें सबसे अधिक प्रचलित है कि ईरान में अल्पसंख्यक सुन्नी समाज की मस्जिदें नहीं हैं, जबकि सच्चाई इसके बरअक्स है। भारतीय पत्रकारों के डेलीगेशन ने ईरान की राजधानी तेहरान में तेहरान की जामा मस्जिद सादक़िया के चीफ़ इमाम, मुफ़्ती अज़ीज़ मोहम्मद बाबाई से मुलाक़ात की, मुफ्ती अज़ीज़ ने बताया कि ईरान की इस्लामिक क्रान्ति में भी सुन्नी मुसलमानों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था।
डेलीगेशन में शामिल वरिष्ठ पत्रकार एंव तेज़ तर्रार एंकर खुर्शीद रब्बानी का कहना है कि अक्सर शिया सुन्नी इख्तलाफ़ात की बात करने वालों और ईरान में सुन्नियों और उनकी मसाजिद के हालात पर मन्फ़ी बातें बनाने वालों के लिए तेहरान की जामा मस्जिद सादक़िया के चीफ़ इमाम, मुफ़्ती अज़ीज़ मोहम्मद बाबाई के ख़्यालात जानना बेहद ज़रूरी है।
इस डेलीगेशन ने तेहरान में इंडियन ड़ेलिगेशन ने मुफ़्ती अज़ीज़ से शिया-सुन्नी मसाइल पर बात की, इस मौक़े पर तेहरान की जामा मस्जिद सादक़िया के चीफ़ इमाम, मुफ़्ती अज़ीज़ मोहम्मद बाबाई ने बताया कि अकेले तेहरान में सुन्नी समाज के लिये 85 मस्जिदें मौजूद हैं जहां वो पांच वक़्त की नमाज़ बा-जमाअत अदा करते हैं, उन्होंने बताया कि इनमें से 20 मस्जिदों में जुमे की नमाज़ होती है।
मुफ़्ती अज़ीज़ के मुताबिक़ ईरान में क़रीब 12 प्रतिशत सुन्नी मुसलमानों की आबादी बस्ती है, उन्हें यहां हर तरह के अधिकार प्राप्त हैं, और वे अपने मुताबिक़ इबादात करने की आज़ादी रखते हैं, इसके अलावा सुन्नी मुसलमान बड़ी तादाद में सरकारी नौकरियों में भी मौजूद हैं। मुफ़्ती अज़ीज़ मोहम्मद बाबाई के मुताबिक़, सुन्नी मुसलमानों ने ईरान की तहरीक ए “इस्लामी इन्क़लाब” में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था, ईरान में सुन्नी मुसलमानों को कभी भी अक़्लियत होने का एहसास नहीं हुआ, मुफ़्ती अज़ीज़ बाबाई ने ईरानी हुक़ूमत और अवाम के तईं अपने इत्मिनान का इज़्हार किया।
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