नई दिल्ली। भाजपा के वरिष्ठ नेता पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अल्पसंख्यक मोर्चा इरफान अहमद ने अपने एक प्रेस वक्तव्य में कहा कि श्रीलंका में लोग बिना सरकार के बैठे हैं। राष्ट्रपति भाग चुका है और राष्ट्रपति भवन में लोगों का व्यवहार तालिबान की याद दिला रहा है।
श्रीलंका की सरकार ने ठीक वही गलती की जो भारत के लोग अपनी सरकार से चाहते हैं। सौभाग्य से ये गलती न तो मनमोहन सिंह ने की थी ना ही नरेंद्र मोदी करने वाले हैं। ये गलती सामान सस्ता करने की थी। श्रीलंका सरकार ने पेट्रोल पर से डयूटी हटा ली, उसके परिणाम कैसे सामने आए वो आगे जानिए।
सन 2019 को इस आर्थिक संकट का आगाज कहा जाता है। जब पहली बार ईस्टर के मौके पर इस्लामिक आतंकवादियों ने धमाके किये थे। पहली बार पता चला कि इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) के आतंकवादी इसके पीछे थे। ये इस्लामिक स्टेट का श्रीलंका में आगाज था।
उस समय भारत और जापान ने श्रीलंका को किसी भी प्रकार का लोन देने से मना कर दिया। कुछ ऐसा ही प्रयास भारत के कश्मीर मे हुआ था, लेकिन उसी वर्ष धारा 370 हट गयी। सीआरपीएफ ने चुन चुन कर आतंकवादियों को मार डाला।
लेकिन श्रीलंका में भारत की तरह फ़ास्ट एक्शन नहीं हो सका और कोरोना आ गया। कोरोना ने श्रीलंका के टूरिज्म की धज्जियां उड़ा कर रख दी। सरकार पेट्रोल सस्ता देकर लुभा रही थी लेकिन लोगों के पास अब सस्ते तेल के भी पैसे नही थे। वहीं सरकार के पास भी विदेशी मुद्रा भंडार खत्म हो रहा था। सरकार को मजबूरन टैक्स बढ़ाने पड़े, भारत में पहले ही टैक्स ज्यादा हैं। इसलिए एकदम से ऐसी महंगाई नहीं आती कि कीमतें दोगुनी करनी पड़ें। लेकिन श्रीलंका में ऐसा ही हुआ कीमत दोगुनी हो गईं, जबकि कोरोना के कारण आय घटती रही। श्रीलंका भीख का कटोरा लेकर आईएमएफ के पास गया। आईएमएफ ने मदद का हाथ बढ़ाया लेकिन शर्त रखी कि पहले ये जो टैक्स सुविधाएं दे रहे हो ये बंद करो। हालात बिगड़ते गए और आईएमएफ ने भी मदद नहीं की। इसका एक कारण चीन से बढ़ती दोस्ती भी थी।
श्रीलंका में स्थिति बदतर होती गयी और देखते ही देखते दूध पेट्रोल से महंगा हो गया। लेकिन अब अंतिम मार बची थी, 24 फरवरी 2022 को रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया। श्रीलंका गेंहू के लिये परनिर्भर राष्ट्र था, यूक्रेन निर्यात कर नहीं सकता था और रूस पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध थे।
राजपक्षे परिवार नरेंद्र मोदी या अमित शाह की तरह शक्तिशाली नहीं था। जो अमेरिका को आँखे दिखाकर रूस से तेल और गेहूं खरीद लेता। उसने अमेरिका के आगे सरेंडर कर दिया और जनता को भूखे मरने के लिये छोड़ दिया। गेंहू की भीषण कमी आते ही रोटी ब्रेड की कीमत हजारो में चली गयी।
श्रीलंका में हाल वही हो रहा है जो एक वर्ष पहले लेबनॉन में हुआ था। अभी तो आप देखते जाइये बिजली संकट भी श्रीलंका में आएगा। श्रीलंका के पास अब भी वही विकल्प है, जो मैने बहुत पहले अपनी पोस्ट में लिखा था। श्रीलंका भारत का राज्य न बने मगर एक कॉलोनी बन जाये, श्रीलंका को भारत से 10 अरब डॉलर के बदले अपनी आजादी का समझौता कर लेना चाहिए।
श्रीलंका में महिलाएं देह व्यापार कर रही हैं, पुरुष गुंडे बन रहे हैं। वैसे भी कौन सा स्वाभिमान से जी रहे हैं। यदि श्रीलंका 10 अरब डॉलर के बदले बस इतना स्वीकार ले कि उनका प्रधानमंत्री वे लोकतांत्रिक ढंग से चुनेंगे। लेकिन भारत का राष्ट्रपति ही श्रीलंका का राष्ट्रपति होगा और कोलंबो में उसका एक वायसराय तैनात रहेगा। जिसकी राय के बिना श्रीलंका कोई आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय निर्णय नहीं लेगा। यानी श्रीलंका के बचने का सबसे बेहतरीन तरीका ये है कि वह भारत की प्रभुसत्ता स्वीकार ले।
यदि इतना हो जाये तो उत्तम है, खैर ये एक कल्पना है। लेकिन जब भी श्रीलंकाई संकट की ओर देखता हूँ तो भारत सरकार के प्रति सम्मान का भाव जागता है। भारत सरकार का अ
र्थ नेहरू से मोदी तक सभी की सरकारों से है। भारत ने क्या कुछ नहीं सहा है लेकिन हम आज एक सुपरपॉवर की दौड़ में हैं। हम रूस के लिये अमेरिका के आगे नहीं झुके और जॉर्जिया के लिये रूस के आगे नहीं झुके।
सरकार चाहे तो हमे 60 रुपये में पेट्रोल दिला सकती है। लेकिन वह जानती है कि इससे डिमांड बढ़ जाएगी और पेट्रोल पर हमारी निर्भरता खाड़ी देशों तथा रूस पर बढ़ जाएगी। 120 रुपये का पेट्रोल बहुत सस्ता है, बजाय कि दूर भविष्य में 12000 का मिले।
कोरोना हमने भी झेला, आतंकवाद से तो हम 1300 वर्षो से लड़ रहे हैं। हमने अपनी सिंधु और झेलम गवां दिए, अपना शक्तिपीठ खो दिया। लेकिन हम फिर भी लड़े और जीते। मैं नहीं मानता यहूदियों के अलावा इतना झेलने की शक्ति किसी और सभ्यता में थी। मानव कोटि में जन्म लेना हमारा भाग्य था लेकिन भारतीय होना हमारा सौभाग्य है।
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