यह वीडियो किसने रिकार्ड किया है, उसका नाम कोई नहीं जानता, कब और कहाँ का है, फार्वर्ड करने वाला बताना भी ज़रूरी नहीं समझता मगर यह वीडियो तेज रफ़्तार से वायरल हो रहा है। कि यूपी के युवा इस तरह परीक्षा देने जा रहे हैं।
रोज़गार केवल वीडियो वायरल का मुद्दा नहीं है। बिहार और यूपी चुनाव के समय रोज़गार मुद्दा बन रहा था मगर वह जीत का कारण नहीं बना। 2019 के लोक सभा चुनाव से बेरोज़गारी का मुद्दा उठता है और मार खा जाता है। जो बेरोज़गार हैं, वे अलग कारणों से वोट देते रहे। युवाओं को अगर चुनाव करने को कहा जाए कि वे रोज़गार और एंटी मुस्लिम नफ़रत में से किसे चुनेंगे तो हज़ार बहाने बनाकर युवा एंटी मुस्लिम नफ़रत को चुनेंगे। एंटी मुस्लिम सोच की आँधी ने हर आर्थिक मुद्दे की दुर्गति कर दी है। अब वही युवा मुझे ये वीडियो ठेले जा रहे हैं। किसे फ़र्क़ पड़ता है?
भारत के लाखों गरीब इसी तरह ट्रेन की यात्रा करते हैं। क्या युवा नहीं जानते कि कई रूट पर लोकल ट्रेनें बंद कर दी गईं, जिनसे ग़रीब लोग छोटी दूरी तय कर रोज़गार की तलाश में जाते थे? जब युवाओं को इन बातों से फ़र्क़ नहीं पड़ा तो मैं एंटी मुस्लिम नफ़रत के सुख में डूबे युवाओं से एक सवाल करना चाहता हूँ कि उनकी इन तस्वीरों से किसे फ़र्क़ पड़ रहा है?
बेरोज़गार परीक्षा देने जा रहे हैं, जान हथेली पर रखकर ट्रेन के बाहर लटके हैं, यह ठीक तो नहीं लेकिन रोज़गार को पीछे धकेलने की जब बारी आती है तब यही युवा आगे आ जाते हैं। मेरी बात से तकलीफ़ तो होगी दोस्तों मगर सांप्रदायिकता से जो आपको सुख मिल रहा है वो आप नहीं छोड़ पाएँगे। और आपको स्वीकार करना चाहिए कि सांप्रदायिक सुख आर्थिक सुख से बड़ा होता है। रोज़गार का सवाल तो वीडियो बनाने और वायरल कराने के लिए होता है। है कि नहीं।
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