राहुल का बलिदान विपक्ष को एक जुट कर रहा है,मोदी की समस्याएं बढ़ रही हैं

(उबैद उल्लाह नासिर)
क्या राहुल गांधी का बलिदान चाहे वह चार हज़ार किलोमीटर पैदल चल कर देश की आत्मा को जगाने का रहा हो या लोक सभा में “अडानीगेट” पर आक्रमकता रही हो या लोक सभा की सदस्यता छीन जाने के बाद उनकी सुरक्षा की परवाह किये बिना उनका घर छीन लेने का मामला हो विपक्ष को एक प्लेटफार्म पर ला रहा है I वरना क्या कारण है कि प्रधान मंत्री को यह कहना पड़ रहा है की सारे भ्रष्ट एक प्लेटफार्म पर आ राहे हैं क्योंकि उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चला रखा है I यह कितना हास्य्स्पाद है की खरबों रुपया के घोटाले में अपना नाम घसीटे जाने के बावजूद और इस सच्चाई के बावजूद की कभी वह और उनकी पार्टी जिन नेताओं हेमंत बिस्वाल सरमा,शुबेंधू अधिकारी, यदुरप्पा, रेड्डी बंधू आदि  के भ्रष्टाचार में विपक्ष के खिलाफ ताल ठोंकती थी उन सब के बीजेपी में शामिल हो जाने के बाद उनके भ्रष्टाचार पर चुप्पी साध लेने वाले प्रधान मंत्री जी विपक्ष के सभी नेताओं को अब भी भ्रष्ट बता रहे हैं I यह बीजेपी के हमेशा एक सोची समझी रणनीति रही है उसे दूसरों की आँख का तिनका दिखाई दे जाता है मगर अपनी आँख की धन्नी नहीं दिखती I

मानहानि के जिस मामले में राहुल गांधी को जितनीं सज़ा हुई है वह इस कानून के बनने के बाद से इससे पहले किसी नहीं दी गयी है I  अधिकतम सज़ा मजिस्ट्रेट साहब ने शायद  इसी लिए दी की अगर एक दिन अर्थात एक साल 11 महीने और 364 दिन की भी सज़ा देते तो राहुल की लोक सभा की सदस्यता न जाती और यही नहीं 2019 में दायर किये गए इस मुक़दमे को इतने दिनों तक खुद याचिकर्ता ने हाई कोर्ट में अपील कर के ठन्डे बसते में डलवाए रखा और जैसे ही राहुल गांधी ने लोक सभा में मोदी और अडानी के रिश्तों के बारे में सवाल पूछा तुरंत ही गुजरात हाई कोर्ट ने याचिकर्ता की अपील पर मुक़दमा चलाने की इजाज़त भी दे दी और फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में उसकी एक महीने के अन्दर ही सुनवाई कर के सज़ा भी सूना दी गयी I कानून का ककहरा जान्ने वाले भी इस फैसले को हज़म नहीं कर पा रहे हैं और एक एक कर के इसकी कमियों को गिनवा रहे हैं सब से बड़ी बात यह अपराधिक मानहानि का मामला था तो यह वहीं ट्रांसफ़र हो जाना चाहिए था जहां अपराध हुआ है चूँकि यह बयान राहुल ने कर्नाटक के कोलार शहर में दिया था तो केस वहां ट्रांसफ़र कर दिया जाना चाहिए था फिर वहां की पुलिस उसकी तफ्तीश करती और वहीं केस चलता मगर कोलर क्या खुद अहमादाबाद की पुलिस ने इस अपराधिक मामले की जांच नहीं की और सीधे मुक़दमा चला दिया फिर अपराधिक मानहानि का यह मामला क्या इतना महत्वपूर्ण था की उसका फैसला एक महीने में ही हो जाए कुल मिला कर देखा जाए तो यह बिलकुलसाफ़ है की जो कुछ भी हुआ है वह सब सत्ता के इशारे पर हुआ है और न्याय का मखौल ही नहीं उड़ाया गया है सच में तो यह न्याय की ह्त्या है I

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चुनावी भाषणों में खुद प्रधान नरेद्र मोदी गृह मंत्री अमित शाह उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ और बीजेपी के सभी छोटे बड़े नेता क्या क्या कहते हैं और किस किस तरह Modelcode of conduct की धज्जियां उड़ाते हैं इन  पर अगर इलेक्शन कमीशन ईमानदारी से सख्ती करता तो पता नहीं कितने चुनाव रद्द कर दिये जाते और अगर बीजेपी नेताओं की तरह कांग्रेसी और अन्य विपक्षी दलों के कार्यकर्ता  ऐसे ही अपराधिक मानहानि के मुक़दमे लिखवाते और अदालतें ईमानदारी से फैसले करतीं तो न जाने कितने भाजपाई सांसद और विधायक अपनी सदस्यता गँवा चुके होते, मगर गाज गिरती है राहुल पर आजम खान पर अब्दुल्लाह आदि पर क्योंकि उनकी पाटी के कार्यकर्ता या तो कायर है या अकर्मण्य I

राहुल गांधी की सदस्यता इस प्रकार छीने जाने को ले कर पूरा विपक्ष राहुल के साथ खड़ा हो गया है यहाँ तक की आम आदमी पार्टी ने भी राहुल से हमदर्दी दिखाई है, हालांकि मनीष सिसोदिया के मामले में कांग्रेस ने वह सहृदयता नहीं दिखाई थी  जिसे अच्छी सियासत नहीं कहा जा सकता I पार्टियों में मतभेद होना अलग बात है मगर मुश्तरका दुश्मन के मामले में इन मतभेदों को अलग रख दिया जाना चाहिए I  राहुल की सदस्यता का जाना और “आडानीगेट” ने  विपक्ष को एक प्लेटफार्म पर खडा कर दिया है अब इस एकता को बचाए रखने की ज़िम्मेदारी सब से ज्यादा कांग्रेस पर ही है क्योंकि जो बड़ा  होता है वही अधिक ज़िम्मेदार भी होता है I कांग्रेस ने सावरकर के मामले में शरद पवार का मशविरा मानते हुए अपना हमला बंद करने का इशारा दे कर महाराष्ट्र में गठ्बंधन को मजबूती दी है, ऐसा ही लचकदार रवय्या उसे अन्य  राज्यों में भी दिखाना होगा I अर्जुन के तीर की तरह उसका निशाना केवल मछली की आँख ही होना चाहिए I

राहुल को सज़ा और विशेषकर उनका घर छीने जाने के बाद राहुल के प्रति लोगों की हमदर्दी में जबर्दस्त उछाल आया है और जो लोग राहुल को नही भी पसंद करते थे वह अगर अंधभक्त नहीं है तो उन्हें एहसास हो रहा है कि जो कुछ राहुल के साथ किया गया है वह बिलकुल उचित नहीं है खासकर उनको घर से निकाले जाने पर “हमारा घर राहुल का घर “ पोस्टरों की पूरे देश में बाढ़ आ गयी है I देहली में राजकुमारी गुप्ता नाम की एक महिला ने अपना चार मंजिला मकान राहुल के नाम  कर दिया है वहीँ राजस्थान की एक असली राजकुमारी ने अपना महल राहुल के लिए खोल दिया है I बेशक लोकसभा की सदस्यता जाने के बाद राहुल सरकारी आवास के हक़दार नहीं रहे लेकिन इसी देहली में कांग्रेस के ही वरिष्ट नेता रहे और बाद में मोदी भक्त बने गुलाम नबी आजाद का बंगला आज तक नहीं खाली कराया गया I वरिष्ट नेताओं लाल कृष्ण अडवानी मुरली मनोहर जोशी और भी न जाने कितने पूर्व सांसद देहली के सरकारी आवासों में रह रहे हैं I सरकार अच्छी  तरह जानती है कि राहुल की सुरक्षा में चूक कितनी घातक हो सकती है फिर भी उसने पहले उनकी सुरक्षा घटाई और अब उन्हें मकान से बेदखल कर के उनको बेघर ही नहीं कर रही है बल्कि उनकी सुरक्षा के साथ भी खिलवाड़ कर रही है क्योंकि राहुल गाँधी को अब किसी किराए के मकान में शिफ्ट होना होगा और सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि किराए के मकानों में ऐसे लोगों की पूर्ण सुरक्षा असंभव नहीं तो बेहद मुश्किल ज़रूर होती है I तो क्या मोदी सरकार कोई खतरनाक साज़िश तो नही रच रही है ? यह विधि की विडंबना या राजनीति में गिरावट की पराकाष्ठा ही कही जायेगी की जिसके पुरखों ने इलाहाबद के आनन्द भवन जैसी  अपना अरबों रूपये का मकान राष्ट्र को दे दिया हो उसके वंशज किराए के मकान पर रहने को मजबूर किये जा रहे हैं I

जहाँ एक ओर राहुल के प्रति केवल विपक्ष ही नहीं आम जन मानस में हमदर्दी बढ़ राही है वही मोदी की कठिनाइयाँ बढती ही जा रही हैं I आज उनके सामने सब से बड़ी समस्या विपक्ष की एकता ही नहीं उनकी अपनी डिग्री भी बनती जा रही है I गुजरात हाई कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल पर उनकी डिग्री मांगने के जुर्म में 25 हज़ार रुपया जुरमाना लगा दिया है अब यह सज़ा भी आम समझ से उसी प्रकार से परे है जिस प्रकार से राहुल को दी गयी दो साल की सज़ा I अरविंद केजरीवाल ने सूचना के अधिकार कानून के तहत मोदी की डिग्री के बारे जानकारी मांगी थी I वह जानकारी तो नहीं दी गयी मामला गुजरात हाई कोर्ट पहुँच गया और वहां से अरविंद केजरीवाल को यह सज़ा हो गयी I किसी जन प्रतिनिधि का अपढ़ होना कोई बुराई है और न ही  शिक्षित होना कोई कानूनी बाध्यता, लेकिन चुनावी हलफनामे में उस ने इस कालम में जो कुछ लिखा है वह सच होना चाहिए और देश के हर नागरिक को इसके बारे में जान्ने का अधिकार है I मोदी जी ने अपने चुनावी हलफनामें में अपनी जो शैक्षणिक योग्यता लिखी है उसे जनता के सामने लाने में उन्हें इंकार क्यों है और कोर्ट जनता के इस अधिकार का हनन कैसे कर सकता है ?

अरविंद केजरीवाल भी कम खिलाड़ी नहीं है वह अपनी इस सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक जा सकते है I उन्होंने कहा भी है की मोदी जी को अपनीं डिग्री दिखानी तो पड़ेगी ही और अगर खुदा न ख्वास्ता मोदी जी की डिग्री फर्जी निकली तो देश में सियासी भून्चाल आ जाएगा क्योंकि फिर मामला धोकाधडी का बन जाएगा जिससे ने केवल उन का पद जा सकता है बल्कि अधिकतम सात साल की सज़ा भी हो सकती है I 

कुल मिला कर सदैव की भाँति हर दस बाराह वर्षों बाद फिर भारत की सियासत में तब्दीली का इतिहास दोहराए जाने की पूरी सम्भावना दिख रही है बशर्त विपक्ष इसी तरह एकजुट रहे।

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