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उबैद उल्लाह नासिर का लेख:राज्य दर राज्य सिकुड़ रही है भाजपा, कम हो रहा मोदी का आभा मंडल?

उबैद उल्लाह नासिर का लेख:राज्य दर राज्य सिकुड़ रही है भाजपा, कम हो रहा मोदी का आभा मंडल?

हिमाचल के बाद कर्नाटक के चुनावी मैदान में बीजेपी की करारी शिकस्त से बीजेपी विशेषकर नरेन्द्र मोदी के अजेय होने का भ्रम टूट गया है I यह एक कटु सत्य है की बीजेपी राज्य दर राज्य सिकुड़ती चली जा रही है और मोदी जी का आभा मंडल भी कम हो रहा है हालांकि अभी उन्हें कम कर के आंकना महा मूर्खता कही जायेगी लेकिन राज्यों के चुनाव परिणाम ऐसा ही कुछ दर्शाते है I उधर मोदी समर्थकों का कहना है कि राज्यों के चुनाव नतीजे कुछ भी हों,लोक सभा चुनाव में मोदी की लोकप्रियता का जादू फिर  देखने को मिलेगा I कुछ भी हो  मोदी जी की एक विशेषता की तारीफ़ करनी पड़ेगी की वह अपने तमाम नैतिक और अनैतिक चुनावी हथियारों के साथ आखिर दम तक मैदान में डटे रहते हैं और किसी नैतिकता किसी कानून, किसी चुनावी आचार संहिता को अपने रास्ते का रोड़ा नहीं बन्ने देते I कोई सोच सकता है की किसी देश के  सब से बड़े संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति जिसने संविधान की  रक्षा की शपथ ले रखी है वह चुनाव की  संवैधानिक व्यस्था और चुनावी आचार संहिता का इस प्रकार खुल्लम खुल्ला उल्लंघन करेगा उनका मजाक इस तरह उडाएगा जैसा मोदी जी उनके सिपह सालार अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ उड़ाते है I यह मोदी जी और अमित शाह ही कर सकते हैं कि उन्ही की पार्टी की सरकार वाले राज्य मणिपुर में आग लग हो और वह दोनों कर्नाटक में चुनावी अभियान में व्यस्त हों रोड शो कर रहे हों Iभक्तों की नजर से देखें तो यह मोदी जी का बहुत ही सराहनीय काम है गोदी मीडिया भी इसकी बहुत तारीफ़ कर रहा है जबकि समाज का एक बड़ा वर्ग बुद्धजीवी पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक इसे पुरानी कहावत”रोम जल रहा था और  नीरो बांसुरी बजा रहा था” जैसा बताते हैं I जहाँ तक चुनाव अभियान के दौरान मोदी जी अमित शाह और योगी जी के बयानों की बात है तो वह कोई नयी बात नहीं है I चुनाव में धार्मिक ध्रुवीकरण,विपक्ष पर अनर्गल,ओछे और गैर  ज़िम्मेदाराना  आरोप लगाना यही सब उनकी USP है गुजरात के मुख्य मंत्री से ले कर देश के प्रधान मंत्री तक के पद पर पहुँचने के बाद भी उनका यह अंदाज़ नहीं बदला है I जब वह पूर्व प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह  और पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल कपूर पर पाकिस्तान से मिल कर अपनी ह्त्या कराने की साज़िश का आरोप लगा सकते हैं तो अंदाज़ा किया जा सकता है की वह किस हद तक जा सकते हैं , हालांकि अपने इस बयान पर उन्हें लोक सभा में नेता सदन के द्वारा माफ़ी भी मांगनी पड़ी थी लेकिन अपना अंदाज़ नहीं बदला Iकर्नाटक चुनाव अभियान के दौरान भी उन्होंने कांग्रेस के “शाही परिवार “ पर विदेश से मिल कर कर्नाटक को भारत से अलग करने की साज़िश करने का आरोप मढ़ दिया, बजरंग दल पर पाबंदी लगाने की कांग्रेस की बात को उन्होंने बजरंगबली को गिरिफ्तार करना बता के उसे बजरंगबली का अपमान बताया और खुले आम चुनावी सभाओं में जय बजरंगबली के नारे लगवाए जय बजरंग बली बोल कर ई वी एम का बटन दबाने का आह्वान किया I यह सब देश के सब से बड़े संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति द्वारा संविधान और आदर्श चुनाव आचार संहिता का खुला उल्लंघन था I चुनाव में धर्म के उपयोग  के कारण चुनाव आयोग ने स्व. बाला साहब ठाकरे का वोटिंग अधिकार छीन लिया था लेकिन अब  वही चुनाव आयोग मोदी जी और बीजेपी के दुसरे वरिष्ट नेताओं के मामले में मूक दर्शक बना रहता है I सोचिये आज अगर स्व. सेशन या स्व. लिंगदोह जैसा चुनाव आयुक्त होता तो इन पर कैसा  एक्शन लेता ? उत्तर प्रदेश में चुनाव अभियान के दौरान मोदी जी के शमशान कब्रिस्तान वाले बयान की चुनाव आयोग में शिकायत हुई, दो चुनाव आयुक्तों ने उन्हें क्लीन चिट दे दी लेकिन एक चुनाव आयुक्त लवासा जी ने विपरीत टिप्पणी की, नतीजा  यह हुआ की उन्हें इस पद से हटा कर कहीं और भेज दिया गया और आज तक सूचना अधिकार कानून के तहत पूछे जाने पर भी लवासा जी के कमेन्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया I यही नहीं कर्नाटक का चुनाव जीतने के लिए पोलिंग से कुछ दिन पहले केराला स्टोरी नाम की झूट का पुलिंदा फिल्म रिलीज़ कर के और उत्तर प्रदेश में PFI के कथित कार्यकर्ताओं की गिरिफ्तारी का अभियान चला कर भी कर्नाटक में ध्रुवीकरण और चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश की गयी लेकिन कर्नाटक उत्तर प्रदेश तो है नहीं वहां की समझदार शिक्षित जनता ने अपने मूल मुद्दों मंहगाई बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार  समाजिक सद्भाव आदि को ही सामने रख कर वोट डाला और बीजेपी का सूपड़ा साफ़ कर दिया I आवश्यकता इस बात की है कांग्रेस समेत सभी विपक्षी पार्टियाँ मिल कर चुनाव आयोग पर ऐसा दबाव बनाएं की वह चुनाव आचार संहिता के हर उल्लंघन ख़ासकर चुनाव अभियान में धर्म, धर्म स्थलों,धर्मिक व्यक्तियों,और धार्मिक प्रतीकों के प्रयोग पर सख्ती से रोक लगाए और इस मामले में किसी के साथ भी ढिलाई न करे I

कर्नाटक में कांग्रेस की सफलता के मुख्य कारणों में बीजेपी विरोधी वोटों का न बटना भी है जिसकी सब से बड़ी कीमत जनता दल (S) को चुकानी पड़ी जो  सदैव की भांति किंग मेकर बनने के सपने देख रही थी मगर इस बार शायद उसे अपने जीवन की सब से बड़ी हार झेलनी पड़ी है I सियासी पंडितों का सदैव यह विश्लेषण रहा है की त्रिकोणीय मुकाबले का फायदा ही बीजेपी को मिलता है और जहाँ दोनों में आमने सामने की टक्कर होती है वहां अधिकतर बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ता है, इसी लिए अपने विरोधी  वोटों को बांटने के लिए वह छोटी छोटी पार्टियों और आज़ाद उम्मीदवारों का सहारा लेती है I हिमाचल के बाद कर्नाटक में यही साबित हुआ इससे पहले मध्य प्रदेश छत्तीस गढ़ राजस्थान आदि में भी सीधी टक्कर में कांग्रेस ने बीजेपी को हरा दिया था और आगे भी यह अनुमान है की मध्य प्रदेश छत्तीस गढ़ और राजस्थान में सीधी टक्कर में वह बीजेपी को पछाड़ देगी I दूसरी सब से महत्वपूर्ण बात थी की इस बार कांग्रेस ने कर्नाटक में अपनी पूरी ताक़त झोंक दी थी और गुजरात तथा NE की  भाँति अनमना इलेक्शन नहीं लड़ा था I कर्नाटक में पार्टी के केद्रीय नेत्रित्व पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे राहुल गांधी प्रियंका गांधी यहाँ तक सोनिया गांधी भी चुनाव अभियान में शामिल हुए, राज्य इकाई ने पूरे तारतम्य से चुनाव लड़ा I प्रदेश अध्यक्ष DK शिव कुमार और पूर्व CM सिद्दाराम्य्या में बेहतरीन तालमेल देखने को मिला दूसरी महत्वपूर्ण बात रही कि कांग्रेस ने बीजेपी की पिच पर खेलने की गलती नहीं की और मंहगाई बेरोज़गारी भ्रष्टाचार और समाजी सद्भाव जैसे मुद्दों पर ही जमी रही I

दूसरी ओर भ्रष्टाचार के संगीन इल्जामों और अकर्मण्यता के बोझ में दबी बीजेपी और उसकी सरकार का अंतिम आसरा सम्प्रदायिक ध्रुवीकरण ही था जो वहां बुरी तरह पिट गया राज्य में बीजेपी ताश के पत्तों की तरह बिखरी हुई थी I बोम्मई सब से भ्रष्ट ही नहीं सब से नाकारा मुख्य मंत्री साबित हो चुके थे जगदीश शेट्टर समेत  पार्टी के कई वरिष्ट नेता पार्टी छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हो  चुके थे I ऐसे में चुनाव का पूरा बोझ मोदी योगी और अमित शाह पर ही था मगर यह लोग भी बुरी तरह असफल रहे I मांड्या जिले की जिन 8 सीटों पर योगी ने प्रचार किया था और राम मंदिर निर्माण का राग अलापा था वहां की सभी 8 सीटें बीजेपी हार गयी I कर्नाटक में बीजेपी शुरू से ही हारी हुई जंग लड़ रही थी लेकिन मोदी जी अंतिम क्षणों तक जमे रहे इसके लिए उनकी प्रशंसा की जानी  चाहिए I

हिमाचल के बाद कर्नाटक में कांग्रेस की शानदार सफलता उसके लिए ऑक्सीजन जैसी है पूरे देश के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में एक नए जोश का संचार हुआ है अब वह मध्य प्रदेश और छत्तीस गढ़ जीतने की भी तय्यारी कर रहे हैं और अब तक इन राज्यों से जो रिपोर्टें मिल रही हैं वह कांग्रेस के लिए उत्साह वर्धक हैं I राजस्थान का इतिहास तो हर बार सरकार  बदलने का ही रहा है इसके अलावा वहां सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच जो जंग छिड़ी है और जिस तरह जूते में दाल बंट रही है उसने वहां कांग्रेस की सम्भावनाओं को और क्षीण कर दिया है I वैसे राजस्थान में बीजेपी भी आपसी खींचा तानी का शिकार है मोदी जी को वसुंधरा राजे सिंधिया फूटी आँख नहीं भाती हैं जबकि राजस्थान में वह एक मज़बूत नेता है अगर मोदी जी ने उन्हें किनारे करने की कोशीश की तो वह मोदी से टकराने में भी पीछे नहीं हटेंगी इस लिए राजस्थान के सियासी हालात अनिश्चित ही कहे जा सकते हैं Iतिलंगाना में भी इसी साल चुनाव होने वाले हैं और वहाँ कांग्रेस की टक्कर TRS से होगी लेकिन वहां बीजेपी भी पूरा जोर लगाएगी उसका टारगेट TRS के ही वोटर होंगे अगर बीजेपी वहां त्रिकोणीय मुकाबला करवा सकेगी तो इसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिल सकता है I

कर्नाटक के बाद अगर कांग्रेस MP और 36 गढ़ भी जीत लेती है तो,लोकसभा चुनाव पर इसका बहुत असर पड़ेगा इसके अलावा विपक्ष की एकता में वह केंद्र बिंदु भी बन जायेगी मगर यह सब कुछ तभी सम्भव है जब कांग्रेस हर चुनाव उसी तरह लड़े जैसे वह हिमाचल और कर्नाटक का लड़ी थी और नर्म हिंदुत्व के बजाए जनता के मूल मुद्दों और गांधी नेहरु वाद अर्थात अपनी मूल विचारधारा पर ही अटल रहे।

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