उबैद उल्लाह नासिर का लेख: समान नागरिक संहिता “नया जाल लाये पुराने शिकारी”

(उबैद उल्लाह नासिर)
हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक विधान सभा   के चुनावों में मिली करारी हार से मोदी अमित शाह की जोड़ी के हाथ पाँव फूल गए हैं उधर मध्य प्रदेश छत्तीस गढ़ राजस्थान और तिलंगाना विधान सभा के चुनाव भी सर पर आ गये हैं और इन में से किसी भी राज्य से भी बीजेपी को अच्छी खबर नहीं मिल रही है I जले पर नमक छिड़कते हुए आरएसएस के मुख्पत्र पांचजन्य ने खुले आम कह दिया की केवल मोदी के चेहरे और हिंदुत्व के बल पर आगामी लोक सभा का चुनाव नहीं जीता जा सकता I आरएसएस ने देख लिया की 98% हिन्दू आबादी वाले हिमाचल और 83% हिन्दू आबादी वाले कर्नाटक में हिंदुत्व का कार्ड जन समस्याओं के सामने पिट गया I अब तक मोदी के चेहरे को ही बीजेपी चुनाव में जीत की गारंटी समझती थी और ग्रामसभा से ले कर लोक सभा तक का चुनाव उन्ही  के चेहरे पर लडती थी लेकिन अब तो आरएसएस ने भी कह दिया कि जिन दो कारणों मोदी और हिंदुत्व के बल पर बीजेपी चुनाव जीतती रही है वह इस बार लोकसभा के चुनाव में काम नहीं आएँगे तो क्या आरएसएस ने मोदी के विकल्प की तलाश शुरू कर दी है? इसके साथ ही साथ एक और इशारा भी ध्यान देने योग्य है मोदी के हनुमान कहे जाने वाले अमित शाह ने तमिलनाडु में कहा कि कोई तमिल भारत का अगला प्रधान मन्त्री क्यों नहीं हो सकता ? मोदी के होते हुए बीजेपी किसी और को प्रधान मंत्री बनाने की सोचे यह अनहोनी लग सकती है लेकिन शायद है नहीं I उधर मोदी भी कच्ची गोलियां नहीं खेले हैं उनके तरकश में न जाने कितने तीर है जिनकी गिनती का अंदाज़ा शायद आरएसएस भी नहीं कर सकती है I आखिर 2004 में मोदी ने अडवानी जी के मुकाबले खुद को प्रधान मंत्री पद का उम्मीदवार आसानी से तो घोषित नहीं करा लिया था बल्कि आरएसएस को मजबूरन उन्हें प्रधान मंत्री का उम्मीदवार घोषित करना पडा था क्योंकि उनके पास दो सबसे बड़े हथियार थे कॉर्पोरेट का पैसा और उग्र हिंसक संघी कार्यकर्ता जो 2002 के गुजरात दंगों में मोदी की भूमिका के कारण उनके परस्तार हो गए थे I यही दोनों हथियार आज भी मोदी जी के साथ हैं इसलिए मोदी जी अपनी फितरत के अनुसार इस पद पर किसी दुसरे पास भी नहीं फटकने देंगे I कॉर्पोरेट से उन्हें कोई खतरा नहीं है और उग्र हिन्दुत्ववादी कार्यकर्ताओं को अपने साथ जोड़े रखने के लिए वह और उग्रता से साम्प्रदायिक कार्ड खेल कर उनको साधे रखेंगे I जनवरी में अयोध्या में राम मंदिर बन कर तैयार हो जायेगा, जिसका उदघाटन मोदी जी के कर कमलों से होगा और देश भर में यह नारा गूंजेगा “जो राम को लाये हैं हम उनको सत्ता में लायेंगे इसके साथ ही इस मुद्दे में “समान नागरिक संहिता” का तडका भी लगा कर हिंदुत्व को और धारदार सियासी हथियार बनाया जाएगा और अगर संयोग से मुस्लिम संगठनों ने समान नागरिक संहिता के खिलाफ धरना प्रदर्शन किया तब तो मोदी जी की चांदी हो जायगी I

सब से पहले समान नागरिक संहिता की संवैधानिकता पर गौर करने की ज़रूरत है ध्यान रहे कि संविधन की नीति निर्देशका (Directive Principles)  की धारा 44 में कहा गया है कि सरकार देश में समान नागरिक संहिता लागू  करने का प्रयास करेगी संविधान के ही बुनियादी अधिकारों (Fundamental rights) में देश के सभी लोगों को अपने अपने धर्म पर चलने की आज़ादी भी दी गयी है अब यह दोनों बातें एक दुसरे से टकराती हैं और संविधान के हिसाब से ऐसी टकराव की स्थिति में बुनियादी आज़ादी को संरक्षण मिला हुआ है अर्थात किसी की भी  बुनियादी आज़ादी छीनी नहीं जा सकती इसके अलावा भारत इतनी विवधताओं का देश है जिस पर कोई समान नागरिक संहिता लागू करना लगभग असंभव है I केवल धर्मों में ही विवधता नहीं है बल्कि धर्मों के अंदर ही क्षेत्र,जाति गोत्र आदि को ले कर भी विविधताएँ है उनके अपने रस्मो रिवाज है संस्कृति है मान्यताएं है, तौर तरीके हैं उनपर समानता थोपना भानमती का पिटारा खोलना होगा I अदालतों में इतने मुक़दमे पहुंचेंगे की मुक़दमों के बोझ से पहले से ही दबी अदालतें चरमरा उठेंगी I दुसरे नीति निर्देशिका में केवल समान नागरिक संहिता की बात नहीं कही गयी है उसमें जन हित के और भी बहुत से मुद्दे है जिनमें कोई विरोध भी नहीं है जैसे पूरे देश में शराब बंदी लागू करना शिक्षा और स्वास्थ सेवाओं का समान आधिकार आदि सरकार इन्को क्यों नहीं लागू करती केवल समान नागरिक संहिता ही देश की समस्या नहीं है उसे ही प्राथमिकता देने का सियासी मकसद सभी समझ रहे हैं I कांग्रेस के वरिष्ट नेता जय राम रमेश ने कहा भी है कि विधि आयोग को अपनी विरासत का ध्यान रखना चाहिए और यह भी याद रखना चाहिए कि देश हित बीजेपी की राजनीतिक महत्वकांछाओं से अलग होते हैं

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इन्ही सब अमली समस्याओं को देखते हुए 2018 में विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता लागू न करने की बात की थी लेकिन कर्नाटक हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस ऋतू राज रस्तोगी की अध्यक्षता में गठित नए विधि आयोग ने पहले तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवहेलना करते हुए देश में राजद्रोह कानून को और सख्त करने तथा आधिक सज़ा देने का कानून बनाने की सिफारिश की जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अंग्रेजों के जमाने में स्वतंत्रता आन्दोलन को कुचलने के लिए बनाए गए इस  कानून की लोकतांत्रिक भारत में कोई आवश्यकता न होने की बात कही थी, क्योंकि लोकतन्त्र की बुनियाद ही सरकार का विरोध और आलोचना है I राजद्रोह कानून के तहत सरकार ऐसे किसी भी व्यक्ति पर राजद्रोह का मुक़दमा चला कर उसे वर्षों जेल में सडा सकती है जो सरकार की आलोचना करे या उसका विरोध करे I ध्यान रहे की इन्ही  जज साहब ने कर्नाटक में मुस्लिम क्षात्राओं के हिजाब पर सरकार द्वारा लगाई गयी पाबंदी को दुरुस्त बताने वाला फैसला दिया था I अपने पद पर रहते हुए भी आरएसएस के कई जलसों में उनकी शिरकत पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं इन्ही जज साहब ने अब समान नागरिक संहिता का शोशा छोड़ कर 2024 के आम चुनाव का एजेंडा तैयार कर दिया है I

अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और कश्मीर  से धारा 370 हटा कर मोदी सरकार ने आरएसएस के दो महत्वपूर्ण एजेंडों को लागू कर दिया है हालांकि धारा 370 हटाने की संवैधानिकता को सुप्रीम  कोर्ट में चैलेंज किया जा चुका है I इसके बाद अब उसके तीसरे एजेंडे समान नागरिक संहिता  को लागू करने की पूरी तय्यारी  कर ली गयी है I बीजेपी की उत्तराखंड सरकार ने इस के लिए जस्टिस रंजना देसाई की अध्यक्षता में एक कमिटी गठित की थी जिसकी रिपोर्ट तैयार हो गयी है और बीजेपी ने उत्तराखंड सरकार को इसे तुरंत लागू करने का निर्देश दिया है  इसके बाद बीजेपी की उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात की सरकरें भी इसे लागू कर देंगी उधर विधि आयोग ने देश भर में इसे लागू करने के लिए सभी धार्मिक संगठनों और हितधारकों से सुझाव मांगे हैं I हालंकि होना तो यह चाहिए था की विधि आयोग समान नागरिक संहिता का मसविदा (Draft resolution) जनता के सामने रखने के बाद उस पर सबसे सुझाव मांगता लेकिन चूँकि सरकार इस मामले में जल्दी में है ताकि चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले इस पर अमल कर लिया जाए इस लिए यह शार्ट कट अपनाया जा रहा है और जस्टिस रंजना देसाई कमेटी की सिफारिश ही समान आचार संहिता का ड्राफ्ट होने की पूरी संभावना है Iअनुमान यही है कि मोदी सरकार इसे तुरंत लागू करने का अध्यादेश जारी कर देगी  बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट जाएगा और अन्य बहुत से मामलों की तरह यह भी वहां की फाइलों में दब जाएगा लेकिन बीजेपी को चुनाव में इसे भुनाने का पूरा मौक़ा मिल जाएगा I

सवाल यह है कि समान नागरिक संहिता में क्या क्या शामिल किया जाएगा सूचना के अनुसार इसमें शादी और शादी की आयु ,तलाक, गुज़ारा भत्ता गोद लेने की प्रक्रिया, गार्जियनशिप (Guardian ship)आदि मामलों ने सम्बन्धित एक जैसे कानून होंगे I एक आम ख्याल यह है और पहले ऐसा हुआ भी है समान नागरिक संहिता के नाम पर सब से ज्यादा मुसलमान ही भड़कते हैं मगर इस बार उन्हें ठन्डे दिल ओ दिमाग से देश के समाजी  और सियासी हालत को ध्यान में रख कर ही अपना रिएक्शन देना चाहिए I मुसलमानों में शादी का कोई ख़ास मस्ला  नहीं लड़का लड़की गवाहों की मौजूदगी में एक दुसरे को कुबूल कर लें बस निकाह मुकम्मल हो जाता है सरकार अगर लड़का लड़की की शादी/निकाह की कोई उम्र निर्धारित करती है तो इस पर किसी को एतराज़ नहीं होना चाहिए वैसे भी अब तालीम के बढ़ने के साथ साथ शादी /निकाह की आयु कानून के दायरे से भी आगें निकल ही जाती है चार शादियाँ तो दरकिनार अब दूसरी शादी भी करने का रिवाज करीब करीब खत्म हो रहा है नेशनल सैंपल सर्वे (NSSO) की रिपोर्ट के अनुसार बहु विवाह की प्रथा मुसलमानों से ज्यादा हिन्दुओं (जन जातियों ) में है इस लिए अगर इसे रेगुलेट किया जाता है तो भी विरोध का कोई औचित्य नहीं बनता है तलाक़ के मामले को सुप्रीम कोर्ट  पहले ही निपटा चुका  है I एक ही बार में तीन तलाक को गैर कानूनी घोषित किया जा चुका है I कुरान में भी कहीं एक बार में ही तीन तलाक का ज़िक्र नहीं है इस लिए यह भी कोई ख़ास मस्ला नहीं बचा I तलाक़ के बाद गुज़ारा भत्ता एक मसला ज़रूर होता है लेकिन शाह बनो केस में राजीव गांधी की सरकार ने एक कानून बनाया था जिसके तहत मुस्लिम तलाक शुदा महिला चाहे तो नए कानून के तहत गुज़ारा भत्ता ले या शरई कानून के तहत गुज़ारा भत्ता ले उसके सामने दो विकल्प रख दिए गए हैं I शाह बानो case को आरएसएस का प्रचार तन्त्र बुरी तरह तोड़ मरोड़ कर पेश करता है और उसे ही सच मान लिया गया है की राजीव गांधी ने मुस्लिम कट्टर पंथियों के दबाव में आ कर सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदल दिया था जो कानूनन संभव ही नहीं है I सभी जानते हैं की जो भी नया कानून बनता है वह तत्काल प्रभाव से लागू  होता है पिछले मुक़दमे उससे प्रभावित नहीं होते I राजीव गांधी की सरकार ने एक नया कानून बना दिया था जो शरई कानून से मिलता जुलता है परंतु जिस कानून के तहत सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो को गुज़ारा भत्ता दिलाया था (दफा 125) वह समाप्त नहीं किया गया था इस प्रकार मुस्लिम तलाक़ शुदा महिला दोनों में से किसी भी एक  कानून के तहत गुज़ारा भत्ता की दावेदार हो सकती है I हमारे ख्याल में समान नागरिक संहिता में मुसलमानों के सामने जो सब से बड़ी समस्या खड़ी होगी वह है गोद लेने की क्योंकि इस्लाम में दत्तक पुत्र पुत्री जैसा कोई रिश्ता नहीं होता I दत्तक रिश्ते में सब से बड़ा घाटा भतीजे भतीजियों भांजे भांजियों का होता है क्योंकि सारी जायदाद  दत्तक पुत्र को मिल जाती है और भाई बहन के बेटे बेटी पुश्तैनी हिस्से से महरूम हो जाते हैं I

अक़ल्मंदी और दूरदर्शिता का तकाजा यह है की मुस्लिम संगठन इस मामले में कोई Over reaction न दें और दुसरे वर्गों/धर्मों  के reaction का इन्तिज़ार करें क्योंकि बीजेपी को सियासी फायदा केवल मुसलमानों के रिएक्शन से ही मिलता है और उसे यह मौक़ा देना अक़्लमंदी नहीं होगी।

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