पुरानी कहावत है बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी यह कहावत अब भारतीय संविधान पर पूरी तरह लागू होती है I देश में मोदी युग शुरू होते ही इसकी आत्मा को तिल तिल कर के मारा जाता रहा है लेकिन अब इसे पूरी तौर से समाप्त करने का मन बना लिया गया है जिसका एलान प्रधान मंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति के चेयरमैन विवेक देबराय के एक लेख द्वारा कर दिया गया है I इस लेख में उन्हों ने भारतीय संविधान को उपनिवेश का दस्तावेज़ बताते हुए इसे समाप्त करने और एक नया संविधान बनाए जाने की ज़रूरत पर जोर दिया है I विवेक देबराय का यह लेख न केवल भारतीय संविधान के लिए खतरे की घंटी है बल्कि उन स्वतंत्रता सेनानियों और संविधान सभा के सदस्यों का भी अपमान है जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ कर देश को आजाद कराया और संविधान सभा में अपनी बेहतरीन सलाहियतों का प्रयोग करते हुए देश को एक ऐसा संविधान दिया जो न केवल दुनिया का सब से बड़ा विस्तृत और बहुआयामी दस्तावेज़ है बल्कि जो दुसरे देशों के लिए भी मिसाल बना और भारत के बाद आज़ाद हुए बहुत से देशों ने भारतीय संविधान की बुनियाद पर ही अपने संविधान तैयार किये Iभारत जैसे एक बहु आयामी और अनेकताओं और विवधताओं से भरे देश को एक लड़ी में पिरोए रखने में इस संविधान ने महतवपूर्ण भूमिका निभाई है Iसदियों से दबे कुचले और शोषण का शिकार लोगों को बराबरी के अधिकार दिए और एक सम्मान पूर्वक जिंदगी गुज़ारने की कानूनी और संवैधानिक गारंटी दी, देश के हर वर्ग को चाहे देश में उसकी संख्या कितनी ही कम क्यों न हो बराबरी का अधिकार दिया गया और यह गारंटी दी गयी की उनकी भाषा संस्कृति रीत रिवाज और धर्म को इस नए भारत में वही अधिकार और सम्मान प्राप्त होंगे जो अधिक संख्या वाले समूह को प्राप्त हैं I ऐसे संविधान के साथ किया जाने वाला कोई भी खिलवाड़ वास्तव में देश की अखंडता एकता और सुरक्षा के साथ खिलवाड़ होगा I विवेक देबराय का लेख सामने आने के बाद जब हंगामा हुआ तो इसे उनके निजी विचार कह कर सरकार ने पल्ला झाड लिया गया I लेकिन यह इतना सीधा नहीं है, इतने महत्वपूर्ण पद पर बैठा व्यक्ति बिना प्रधान मंत्री की मर्ज़ी के ऐसे विचार पेश नहीं कर सकता और यदि उसने यह जुर्रत की है तो जनता में संविधान के प्रति विश्वास बनाये रखने के लिए उन्हें तुरंत उनके पद से हटा दिया जाना चाहिए था I संविधान पर अविश्वास प्रकट कर के कोई व्यक्ति संवैधानिक पद पर कैसे बना रह सकता है ?
वास्तविकता तो यह है की आरएसएस शुरू से ही इस संविधान की विरोधी रही है जब देश के बेहतरीन दिमाग बुद्धजीवी, कानूनविद,उच्च शिक्षा प्राप्त हमारे सियासतदां संविधान सभा में एक एक बिंदु पर हफ़्तों बहस कर के किसी नतीजे पर पहुँचते थे और जब बाबा साहब आंबेडकर उनको शब्दों में पिरोते थे तो संघी सब इसे बेकार की मेहनत कह के उसकी खिल्ली उड़ाते थे उनका मत था की जब हमारे ऋषियों मुनियों द्वारा तैयार की गयी मनु स्मृति हमारे पास है तो हमें किसी नए संविधान की आवश्यकता ही नहीं है I संघी देश को उसी युग में वापस ले जाना चाहते थे (अब भी चाहते हैं ) जहां वर्ण व्यवस्था लागू हो एक मनुष्य को दुसरे मनुष्य से नीचा समझा जाए एक शोषक वर्ग हो एक शोषित वर्ग हो जहां महिलाओं को कोई अधिकार न हों वह बचपन में बाप पर जवानी में पति पर और बुढापे में बेटों पर ही आश्रित रहें I ज़ाहिर है यह दकियानूसी सोच बीसवीं सदी के आज़ाद भारत में नहीं चल सकती थी संविधान सभा के सदस्यों ने दिन रात मेहनत कर के एक संविधान तय्यार किया जिसे बाबा साहब ने किताब का रूप दिया और देश नए युग की नयी कल्पनाओं की उड़ान के साथ आगे बढ़ा इस संविधान ने देश के हर वर्ग को हर धर्म हर जाति हर क्षेत्र हर भाषा और हर संस्कृति को बराबरी और सुरक्षा की गारंटी दी इतनी विविधताओं वाले इस देश को एक सूत्र में पिरोये रखने में हमारा संविधान सफल रहा और दुनिया हैरत से देख रही है कि इतनी कम शिक्षा दर वाले, छोटे छोटे वर्गों में बंटे समाज,विभिन्न भाषाओं बोलियों विभिन्न खान पान और विभिन्न संस्कृतियों वाले देश को एक ऐसा संविधान दिया गया है जो हर समस्या का हल पेश करता है हर ज़ख्म पर मरहम रखता है गरीब से गरीब कमज़ोर से कमज़ोर व्यक्ति को बराबरी और सुरक्षा देता है I
जैसा कि पहले ही बताया गया आरएसएस ने दिल से इस संविधान को स्वीकार नहीं किया आज़ादी के बाद विशेषकर राष्ट्रपिता की ह्त्या के कलंक के कारण वह वर्षों तक खून का घूँट पीते हुए खामोश रही 1967 में उसे कांग्रेस विरोधी विपक्ष के गठजोड़ संयुक्त विधायक दल में शामिल होने का अवसर मिला जिससे उसे सम्मान और सत्ता मिली जिसका उपयोग उस ने सिस्टम में अपने आदमी बिठाने के लिए किया राजनीति का चक्र चलता रहा और आरएसएस की सियासी शाखा भारतीय जनसंघ और उसके बाद बनी भारतीय जनता पार्टी का सियासी भाग्य चमकता रहा I इसी समय तत्कालीन प्रधान मंत्री स्व इंदिरा गांधी ने आने वाले खतरे का आभास कर लिया था और संविधान में संशोधन कर के उसमें सेकुलरिज्म और सोशलिज्म जोड़ दिया था क्योंकि आरएसएस को मूल दुशमनी इन्ही दो शब्दों और व्यवस्था से रही है I अटल जी की पहली सरकार तो केवल कुछ दिन ही चली लेकिन जब वह दुबारा प्रधान मंत्री बने तो आरएसएस के संविधान विरोधी एजेंडे को आगे बढाने के लिए उन्होंने जस्टिस चंद्रचूड़ (मौजूद चीफ जस्टिस के पिता श्री ) की अध्यक्षता में 11 जजों की एक संविधान पुनर्लोकन समिति (Constitution Revision Committee ) बनाई लेकिन अव्वल तो अटल जी की सरकार दूसरी पार्टियों की बैसाखी पर आश्रित थी दुसरे इस समिति ने भी संविधान में कोई कमी नहीं पायी और अपनी रिपोर्ट दी की “संविधान ने हमें नही बल्कि हम ने संविधान को असफल किया है I इस लिए संविधान को बदलने की बात वहीँ समाप्त हो गयी I ध्यान रहे की संविधान सभा को भारतीय संविधान की मूल प्रति पेश करते हुए इसके रच्यिता बाबा साहब ने कहा था “संविधान चाहे जितना अच्छा बना लिया जाए मगर इसकी अच्छाई उसे लागू करने वालों पर निर्भर करती है” I विगत दस वर्षों से जो कुछ सामने आ रहा है उससे बाबा साहब और जस्टिस चन्द्रचूड दोनों की बातें सच साबित हो रही है I
इस समय मोदी के नेत्रित्व में बीजेपी पूर्ण बहुमत से सत्ता में है उससे भी बड़ी बात यह है की उस ने हिन्दी पट्टी में विशेषकर समाज के एक बड़े वर्ग को अपनी विचारधारा का हिमायती बना लिया है यहाँ तक की समाज के जिस वर्ग को इस संविधान ने ही सब कुछ दिया वही वर्ग आज इस संविधान के विरोधियों की सब से बड़ी ताक़त बना हुआ है उसे शायद यह एहसास नहीं हो रहा है की अगर यह संविधान नहीं रहा तो उनकी हालत वही हो जायेगी जो कभी उनके दादा परदादा की थी I मोदी सरकार ने भारतीय दंड संहिता दंड प्रक्रिया संहिता (IPC और CrPC) में परिवर्तन कर ही दिया है और कहीं से विरोध का कोई ख़ास स्वर नहीं उठा अगर संविधान पूरा नहीं तो उसके बुनियादी ढांचे में ही परिवर्तन कर दिया तो शायद ही कोई विरोधी आवाज़ उठे राष्ट्रपति उसे मंजूरी देही देंगी सुप्रीम कोर्ट में वर्षों मामला लंबित रह सकता है I लेकिन देश को इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी यह ध्यान रखना होगा की केवल हिंदी पट्टी ही भारत नहीं है दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर राज्य भी भारत का हिस्सा हैं अभी से उन्हें हिंदी पट्टी का वरदहस्त (Hegemony) स्वीकार नहीं है दुसरे देश के 25 करोड़ मुसलमान जो इस सरकार और सत्ताधारी दल के निशाने पर हैं उनके अधिकारों पर कुठाराघात हुआ तो वह भी चुप नहीं बैठेंगे और हर संभव तरीके से अपने अधिकारों की रक्षा करेंगे मानवाधिकारों और लोकतंत्र पर किसी भी प्रकार के हमले का विदेशों में भी विरोध होगा इस मामले में पहले से ही भारत कटहरे में खड़ा है I संख्या सत्ता और बहुसंख्यकवाद के किसी भी नशे में आ कर देश के संविधान के साथ कोई छेड़ छाड़ हुई तो यह देश की एकता अखंडता ही नही शान्ति और व्यवस्था के लिए भी बड़ा खतरा होगी।
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