उबैदउल्लाह नासिर का लेख: ऐतिहासिक अन्याय समाप्त किये बिना मध्यपूर्व में शांति संभव नहीं

केवल इस्राइल, इस्राइल की सेना और वहां की जनता ही नहीं पूरी दुनिया आश्चर्यचकित है कि अजेय समझी जाने वाली उसकी सेना को हमास के कुछ सौ  लड़ाकों ने किस तरह तहस नहस कर दिया, कैसे अभेद समझे जाने वाले उसके लौह गुंबद को एक साथ पांच हज़ार मिज़ाइल बरसा कर ताश के पत्तों की तरह बिखेर दिया और कैसे दुनिया की सब से बेह्तरीन और मारक समझी जाने वाली उसकी ख़ुफ़िया एजेंसी मोस्साद और अमरीका की सी आई ए दोनों को हमास के इस हमले की कानों कान खबर नहीं हुई I ज़ाहिर है कि ज़मीन हवा और समुद्र से किये गए हमास के इस हमले की तय्यारी उस ने वर्षों नहीं तो महीनों पहले ज़रुर की होगी और जिस ख़ुफ़िया एजेंसी के बारे में यह कहा जाता था की फ्रंट लाइन के अरब देशों विशेषकर मिस्र सीरिया जॉर्डन इराक आदि के राष्ट्रपति रात में क्या खाना खायेंगे उसका पता मोसाद को दोपहर में ही चल जाता था, वह इस तय्यारी की भनक तक नहीं पा सकी I 1948 में अपनी स्थापना से ले कर उस दिन के हमले तक इस्राइल को कभी किसी अरब देश की सेना या किसी फिलस्तीनी प्रतिरोधी संगठन से ऐसा गहरा ज़ख्म नहीं मिला जैसा इस हमले से उसे मिला है Iहमास ने चंद घंटों के हमले में ही इसराइल के करीब 500 फौजी और शहरी हलाक कर दिए ( अब तक इसराइल  में ,मरने वालों की संख्या एक हज़ार  से ऊपर जा चुकी है ) I हमास के लड़ाकों ने 100 से अधिक नागरिकों को जिन में उसकी सेना के कई वरिष्ट अफसर तक शामिल हैं उन्हें बंधक बना लिया और इस्राइल व गाजा पट्टी के बीच बनी दिवार को बुलडोज़र से गिरा कर मोटरसाइकलों से इस्राइल की राजधानी तिलअबेब यरोशलम, इश्कोलिन  आदि शहरों में भी दाखिल हो गये और वहां भारी तबाही मचाई Iबंधक बनाए गए लोगों में एक जर्मन लड़की भी शामिल है उसे पकड़ते वक़्त हमास के लड़ाकों ने अल्लाह ओ अकबर का नारा लगाया I  यह पकड़  एक शर्मनाक और अक्षम्य हरकत  है जिसकी कोई सभ्य समाज इजाज़त नहीं दे सकता I उस जर्मन लड़की को तुरंत रिहा कर  दिया जाना चाहिए क्योंकि उसका हमास इस्राइल युद्ध से कुछ लेना देना नहीं है I

यहाँ एक बात याद दिलाते चलें की इस्राइल के अजेय होने का भ्रम अरबों ने कोई पहली बार नहीं तोड़ा है इससे पहले 1973 में ऐसे ही एक अचानक हमला करते हुए मिस्र और सीरिया की सेना ने इस्राइल की तबकी अभेद समझी जाने वाली बार्लीव लाइन तोड़ कर बहुत अंदर तक घुस गयी थी हालत यह हो गयी थी की इसराइल को अपना वजूद ही खतरे में दिखाई देने लगा था और परेशान हाल इस्राइली प्रधान मंत्री श्रीमती गोल्डामायर ने अमरीका से मदद की गुहार करते हुए कहा था की अगर मिस्र और सीरिया की सेनाएं ऐसे ही बढती रहीं तो इसराइल को बचाने के लिए हमें एटम बम का प्रयोग करना पड़ेगा उधर तत्कालीन सोवियत यूनियन भी मिस्र और सीरिया की हिमायत में सामने आ गया था और ऐसा लग रहा था कि क्यूबा के तनाव की तरह दोनों सुपर पॉवर फिर आमने सामने होंगी लेकिन वह खतरा टल गया I हालांकि उस युद्ध के बाद अरब देशों की राजनीति और फिलस्तीन समस्या  के प्रति उनके लगाव का इतिहास बदल गया I

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1948 में इस्राइल की स्थापना के साथ ही फिलस्तीन की मुक्ति के लिए के संगठन बने और उन्होंने एक प्रकार से इस्राइल के खिलाफ छापा मार युद्ध शुरू कर दिया और इस्राइल क्रूरता पूर्वक उनका दमन करता रहा Iइन में यासिर अरफात नाम के नवजवान इंजिनियर की अल –फतह और जॉर्ज हब्बाश नाम के डॉक्टर का संगठन सब से बड़ा था कालान्तर में इन दोनों के अलावा भी अन्य छोटे संगठनों ने मिल कर फिलस्तीन मुक्त संगठन (PLO) का गठन किया और छापा मार युद्ध के साथ ही डिप्लोमेटिक स्तर पर भी काम शुरू किया यासिर अरफात जमाल अब्दुल नासिर के बाद अरबों के ही नहीं दुनिया भर के साम्राज्य विरोधी शक्तियों और अवाम के सर्व प्रिय नेता बन गए वह दुनिया के पहले ऐसे नेता बने जो कभी आतंकवादी कहे जाते थे लेकिन जिनको UNO में अपनी बात कहने का अवसर मिला वहाँ उन्होंने ऐतिहासिक भाषण देते हुए कहा था “मैं इस अंतर्राष्ट्रीय संगठन को इस हालत में सम्बोधित कर  रहा हूँ की मेरे एक हाथ  में जैतून की टहनी  ( शांति की प्रतीक ) और दुसरे हाथ में बंदूक ( युद्ध की तय्यारी ) है अब यह आप पर निर्भर करता है की मेरे हाथ से जैतून की शाख न गिरने दें “ I मगर हुआ वही जिसका डर था ओस्लो में इसराइल के प्रधान मंत्री यिथ्जाक राबिन और यासिर अरफात के बीच समझौता हुआ , अरफात ने अपनी पुरानी पॉलिसी बदलते हुए इस्राइल के वजूद को मान लिया बदले में उन से स्वतंत सार्वभौम फिलस्तीन राज्य देने का वादा किया गया जिसकी राजधानी यरोशलम होगा मगर बदले में उन्हें फिलस्तीन अथारिटी का झुनझुना पकड़ा दिया गया जिसकी हैसियत म्युसिपिलिटी से अधिक नहीं थी  Iइस से अरफात की हैसियत बहुत कमज़ोर हो गयी इस्राइल की इस धोकेबाज़ी  ने उन्हें तोड़ के रख दिया और वह बीमार रहने लगे और बीमारी की हालत में ही स्वर्गवासी हो गए I इस्राइल की इस धोके बाज़ी और अरफात की कमजोरी फिर मौत ने कट्टर पंथी फिलस्तीनियों  को बल मिला और शेख यासीन नामी एक दिव्यांग जो व्हील चेयर पर चलते थे उन्होने हमास नामी संगठन खड़ा किया जिसने इस्राइल के प्रति पुरानी पॉलिसी अपनाई अर्थात इस्राइल के वजूद को ही अस्वीकार करते हुए पूरे फिलस्तीन को इस्राइल के कब्जे से मुक्त कराने के लिए सशस्त्र संघर्ष शुर कर दिया जिसका सब से ताज़ा उदाहरण इसराइल पर किया गया यह हमला है जिसमें इस्राइल के पूरे इतिहास में एक दिन में सब से ज्यादा लोग मारे गए और बड़े बड़े फौजी अफसर बंधक बना लिए गए Iयदि इस्राइल ने ओस्लो में यासिर अरफात से किये गए समझौते पर ईमानदारी से अमल किया होता तो हमास पैदा ही न होता I

ज़ाहिर है हमास के हाथों इस बुरी तरह पिटने और दुनिया भर में उसकी जो अजेय होने की इमेज बनी थी वह चकना चूर हो जाने के बाद इस्राइल को चुप तो नहीं बैठना था I इस्राइली प्रधान मंत्री नितिनयाहू ने ऐलान किया की हमास ने हमारे खिलाफ युद्ध छेड़ दिया और अब यह युद्ध हमास को पूरी तरह खत्म कर देने के साथ ही रुकेगा इस धमकी के साथ ही उन्होंने गाजा पट्टी पर अंधाधुंध बमबारी का आदेश दिया और आज तक की खबर  यह है की गाजा में जबर्दस्त तबाही हुई है डेढ़ हज़ार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं इसराइल ने गज़ा के लिए बिजली पानी  राशन आदि की सप्लाई रोक दी है I  इस्राइल गाजा को मलबे के ढेर में बदल देने पर उतारू है लेकिन इस्राइल की यह कार्रवाई कोई नई और पहली नहीं है फिलस्तीनी अवाम उसकी इस बर्बरता और अमानवीय कार्रवाई का सैकड़ों बार सामना कर चुके है  यह बात अलग है की इस बार वह ज़ख़्मी नाग की तरह सब को डस कर समाप्त कर  देने पर उतारू है  I

हमास ने इस हमलेसे कई लाभ हासिल किये हैं सब से पहला तो यह की  अंतर्राष्ट्रीय उथल पुथल वैश्वीकरण आदि के कारण फिलस्तीन की  समस्या को मुर्दा समझ लिया गया था, अधिकतर देश इस्राइल को न केवल मान्यता दे चुके थे बल्कि उसके हमदर्द भी हो गये थे उधर “अब्राहम समझौता”के नाम पर तीनो अब्राह्मी धर्मों इस्लाम इसाई और यहूदी को एक प्लेटफार्म पर लाने की जुगत चल  रही थी मिस्र और जॉर्डन जैसे  फ्रंटलाइन के देश न केवल इस्राइल से सम्बन्ध स्थापित कर चुके थे बल्कि उसके हितों की रक्षा भी करने लगे थे, सऊदी अरब और इस्राइल के बीच भी राजनयिक सम्बन्ध स्थापित होने वाले थे इस तरह  फिलस्तीन का मुद्दा ही समाप्त हो जाता और वह  दर दर भटकने या चूहेदान जैसे दो क्षेत्रों गाजा और वेस्ट बैंक में नारकीय जीवन बिताने पर मजबूर होते I इस हमले से हमास ने यह पूरा परिदृश्य ही बदल दिया है और 1967 से पहले जैसे हालात पैदा हो गए हैं और फिलस्तीन की समस्या को ले कर दुनिया फिर दो ख़ेमों में बंट गयी है   I अमरीका फ्रांस कनाडा  जर्मनी भारत खुल कर इस्राइल के साथ खड़े हुए हैं जबकि चीन रूस सभी 57 मुस्लिम देश (UAE को छोड़ कर ) फिलस्तीन के साथ खड़े हैं I सऊदी अरब जिसका ढुलमुल रवय्या फिलस्तीनियों को चिंतित किये था वह खुल कर उनके साथ खड़ा है, ईरान तो खैर शुरू से ही पूरी ताक़त के साथ फिलस्तीन के साथ खड़ा रहा है और आज भी है, I इस प्रकार हमास ने  इस्राइल को सामरिक ही नहीं राजनयिक तौर से भी जबर्दस्त शिकस्त दी है और अपनी समस्या को केंद्र बिंदु पर ले आया है यही उसकी सब से बड़ी सफलता है I

और अंत में अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को एक बात समझ लेनी चाहिए कि फिलस्तीन एक रिसता हुआ घाव है जिससे उस वक्त तक खून बहता रहेगा जब तक इस समस्या का न्याय और सम्मान पूर्ण हल नहीं निकलता और यह हल है दो राज्यों के सिद्धांत पर , अर्थात इस्राइल और फिलस्तीन नाम के दो सार्वभौम और  स्वतंत्र देशों की स्थापना जिस पर इस्राइल और फिलस्तीन के नेताओं के बीच 1992 में  ओस्लो में समझौता हो चुका है  मगर इसराइल इससे मुकर रहा है,यही नहीं यह समझौता करने वाले अपने प्रधान मंत्री यिथ्जाक राबिन की कट्टर वादी ज़िओनिस्ट (Zionist) ने हत्या भी कर  दी थी।

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