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उबैदुल्लाह नासिर का लेख: इजराइल फिलस्तीन विवाद का ऐतिहासिक सच समझना ज़रूरी

उबैदुल्लाह नासिर का लेख: इजराइल फिलस्तीन विवाद का ऐतिहासिक सच समझना ज़रूरी


पश्चिमी एशिया में इजराइल फिलस्तीन युद्ध क्या अब अपने निर्णायक मोड़ पर पहुँच रहा है जहां फिलस्तीन राष्ट्र की स्थापना की विगत 75 वर्षों से जारी लडाई समाप्त हो जायेगी और इजराइल की सीमाएं उस हद तक फैल जायेंगी जो ज़ियोन्वादियों ( Zionists) ने लगभग 150 साल पहले सोची थीं  I विगत 75 वर्षों से अर्थात 1948 से यह क्षेत्र युद्ध भूमि बना हुआ है क्योंकि  इजराइल की स्थापना का एलान होते ही दुनिया भर से विशेषकर यूरोप और रूस से यहूदी समुदाय के लोग वहां आ आ कर  बसने लगे I सत्ता के बल पर वहां के असल बाशिंदों को उनके घरों और ज़मीनों से बेदखल कर  के या तो  पडोसी अरब देशों में निर्वासित कर  दिया गया और जो नहीं गए उन्हें केम्पों में नारकीय जीवन जीने के लिए मजबूर कर  दिया गया I वह अपने ही वतन में बेवतन  हो गए और डबडबाई आँखों से देखते रहे की उनके घरों खेतों खजूर और जैतून के बागों पर विदेशों से आये यहूदियों का क़ब्जा हो गया है I

यहाँ पर संक्षेप में ऐतिहासिक तथ्यों को समझना ज़रूरी है Iलगभग 4 हजार साल पहले जब मिस्र के सम्राट फिरऔन ने यहूदियों को अपने देश से निकाला था तो पैगम्बर हजरत मूसा (Moses) उन सब को लेकर नील नदी पार कर के कुनआन की ओर ले आये यह कुनआन बाद में फिलस्तीन बना I यहाँ पर यहूदी  एक दुसरे पैगम्बर हजरत ईसा के आने तक रहे मगर इस बीच उनके और ईसाईयों में  जबर्दस्त टकराव चला I कहा जाता है की किसी यहूदी ने ही जासूसी कर के हजरत ईसा को सूली पर लटकवाया था तब से ले कर आज तक यहूदियों और ईसाईयों के बीच कटुता दबी भले ही हो समाप्त नहीं हुई है Iइसाई यहूदियों को किस दृष्ट से देखते है इसका अंदाजा उन लोगों को भली भांति होगा जिन्होंने शेक्सपियर का ड्रामा मर्चेंट ऑफ़ वेनिस पढ़ा होगा I हिटलर ने यहूदियों का नरसंहार भी इसी ऐतिहासिक नफरत के कारण करवाया था I  यही नहीं यूरोप के इसाई देशों  ने बड़ी होशियारी से अपने यहाँ की यहूदी आबादी से छुटकारा पा लिया और उन सब को नवस्थापित राष्ट्र इजराइल भेज दिया इस प्रकार उनको यहूदियों की हमदर्दी भी मिली और यहूदियों को  अपने देश से निकाल भी दिया I

हजरत ईसा के  वर्षों बाद जब फिलस्तीन रोमन साम्राज्य के अधीन आया तो वहां से एक एक यहूदी को निकाल बाहर किया गया जो विभिन्न देशों में फैल गए उनकी यह दरबदरी की स्थित 1948 अर्थात इजराइल की स्थापना तक रही I छटी सदी ईसवी में फिलस्तीन इस्लामी राज्य का हिस्सा बना, वह दुसरे खलीफा हज़रत उमर के शासन का दौर था उनके समय में इस्लामी साम्राज्य का बहुत विस्तार हुआ ईरान समेत कई देश उन्होंने ने लड़ कर  जीते थे लेकिन फिलस्तीन के लार्ड पादरी ने केवल इस शर्त पर फिलस्तीन को इस्लामी राज्य में शामिल करने की मंज़ूरी दी की खलीफा ख़ुद उन से आ कर  मिलें जिस पर हजरत उमर उनसे मिलने ख़ुद गए I बेतलहम के चर्च में दोनों की मुलाक़ात हुई और लार्ड पादरी ने यरोशलम की चाबी हजरत उमर को सौंप दी I उस समय के कई किस्से मशहूर हैं उनमें एक यह भी है की चर्च में मीटिंग के दौरान जब नमाज़ का समय हुआ तो पादरी ने उनसे कहा कि यहीं चर्च में नमाज़ पढ़ ले लेकिन हजरत उमर  ने यह कह कर  वहां नमाज़ नहीं पढ़ी कि अगर मैंने यहाँ नमाज़ पढ़ ली तो कल मुसलमान इस चर्च पर दावा कर सकते हैं और उन्होने चर्च के बाहर जैतून के एक पेड़ के नीचे नमाज़ पढ़ी I हजरत उमर ने जब यारोशलम का मुआयना किया तो यहूदियों की सब से पवित्र जगह हैकल सुलेमानी/दीवार गिरया (Veiling wall ) की तलाश की वहां पहुंचे तो देखा की वहाँ  कूड़े करकट का ढेर लगा है  क्योंकि ईसाईयों ने यहूदियों के वहां जाने पर पाबंदी लगा दी थी I हज़रत उमर ने ख़ुद अपने हाथ से वह जगह साफ़ की और वहां यहूदियों को जाने  और इबादत करने की आज़ादी दी (Wikpedia देखें ) I हजरत मूसा द्वारा कुनआन (फिलस्तीन ) में बसाए जाने के कारण ही यहूदी फिलस्तीन को अपना  देश समझते हैं I उनके दिलों में यह बात बसी हुई है कि वह अल्लाह के ख़ास बन्दे (Chosen people of God ) हैं और फिलस्तीन उनको अल्लाह द्वारा दिया गया देश (Promised land )  है  I हालांकि रोमन साम्राज्य द्वारा वहां से निकाल बाहर किये जाने के बाद वहां उनकी वापसी फिलस्तीन में मुस्लिम शासन स्थापित होने के बाद ही हो सकी और उसके बाद से वह वहां शांतिपूर्वक रह रहे थे I 1948 में फिलस्तीन का बटवारा कर  के अंग्रेजों ने 55% भूभाग फिलस्तीन को और 45% इजराइल को दिया  लेकिन ज़िओनिस्ट  आतंकवादी संगठन “हगानाह” ने फिलस्तीनियों को उनके घरों ज़मीनों खेतों बागों से  ज़बरदस्ती बेदखल करना शुरू कर  दिया  जिसमें वहां तयनात ब्रिटिश फौजियों ने उनकी मदद की  I इस प्रकार फिलस्तीनियों की ज़मीन सिकुड़ती गयी और इजराइल का क्षेत्रफल बढ़ता गया और आखिर में  फिलस्तीन नाम का देश समाप्त हो गया और इजराइल चौड़ा होता गया मगर वह  अब भी संतुष्ट नहीं है उसकी नजर  पडोसी अरब देशों के बड़े भूभाग पर लगी हुई है ,खासकर जॉर्डन का वेस्ट बैंक सीरिया की गोलान की पहाड़ियां और मिस्र  का सेनाई रेगिस्तान जिसे वह अपनी सुरक्षा के लिए तो  ज़रूरी समझता ही  है उसके धार्मिक विचार के अनुसार हजरत मूसा ने उन्हें जहां बसाया था वह सारा क्षेत्र यही है और उस पर उनका धार्मिक अधिकार है  I

पहले विश्व युद्ध में  उस्मानी खिलाफत  (Ottoman empire)   जो अरब समेत मुस्लिम देशों का संयुक्त गठबंधन था  यूरोपी विशेषकर ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार को रोकने के लिए जर्मनी के साथ युद्ध में शामिल हुई थी लेकिन युद्ध में उसे शिकस्त हुई I पहला विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद  अंग्रेजों ने देखा की उस्मानी खिलाफत उनके साम्राज्य के लिए एक खतरा है तो उन्होंने इसको समाप्त करने की साज़िश शुरू की और अरब देशों को उस्मानी खिलाफत जिसका केंद्र टर्की था भडकाना शुरू किया उनमें अरब राष्ट्रवाद की भावना भड़काने के लिए लॉरेंस ऑफ़ अरबिया जिसका असल नाम थॉमस एडवर्ड लारेंस था  को उस क्षेत्र में भेजा गया I वह दरअसल एक ब्रिटिश जासूस था जो अरबों की तरह ही अरबी भाषा बोलने में पारंगत किया गया था इसके अलावा इस्लाम धर्म की भी अच्छी शिक्षा दी गयी नमाज़ रोज़ा कुरान की पढ़ना आदि में भी माहिर किया गया था I  वह सब से पहले मक्का पहुंचा और वहां के शेरिफ हुसैन से निकटता बढाई I हुसैन चूँकि पैगम्बर मोहम्मद (S) का वंशज था इसलिए अरबों में ही नहीं पूरे इस्लामी जगत में उसकी बहुत इज्ज़त थी उस्मानी खलीफाओं ने भी उनका सम्मान करते हुए उन्हें  मक्का का शेरिफ बना दिया था I लॉरेंस ऑफ़ अरबिया ने उनको तुर्कों के खिलाफ भड़काना ही नहीं शुरू किया बल्कि उनको यह सपना भी दिखाना शुरू किया की यदि वह तुकों से आज़ादी हासिल कर लेंगे तो उन्हें अरब का सम्राट भी बना दिया जाएगा I उस समय अरब जिसे तब हिजाज़ कहा जाता था वहां एक और बलशाली परिवार अल सऊद जिसका सरदार अब्दुल अज़ीज़ था यह बहुत धार्मिक प्रवृत्त के थे और इस्लाम के Puritan विचार के थे जिसमें एक ईशार्वाद (Monotheism) पर सख्ती से अमल शामिल था यह एक तरह सूफीवाद का विरोध था विशेषकर क़ब्रों मजारों आदि पर जाना वहां मन्नतें मानना और उनसे लाभ हानि की उम्मीद रखना आदि I लॉरेंस ने उनसे भी मेल जोल बढ़ाया और दोनों में तुर्कों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूँक दिया I
पहले विश्व युद्ध में हार के बाद  टर्की के उस्मानी खलीफा की सैनिक और आर्थिक शक्ति बहुत कमज़ोर हो गयी थी इस बीच यहूदियों की ज़िओन (Zion) नामी अतिवादी संस्था ने उनके सामने पेशकश रखी कि यदि वह फिलस्तीन को उन के हाथों बेच दें तो वह  उनकी सल्तनत का सारा क़र्ज़  चुकता का देंगे और उनकी नवसेना का भी आधुनीकरण कर देंगे मगर आखिरी उस्मानी खलीफा अब्दुल हमीद ने यह कह कर  इनकार कर  दिया कि “फिलस्तीन छटी सदी ईसवी में मुसलमानों के दुसरे खलीफा हजरत उमर के समय में इस्लामी राज्य का हिस्सा बना था और वह मेरे (उस्मानी खिलाफत ) के पास दुनिया भर के  मुसलमानों की अमानत के तौर पर है मैं अपनी सल्तनत के आर्थिक हित के लिए इसमें खयानत नहीं कर  सकता “ I इस तरह उस्मानी खिलाफत के दो दुश्मन तैयार हो गए एक ओर ब्रिटिश साम्राज्यवाद था तो दूसरी ओर यहूदी अतिवाद I ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने अरबों में राष्ट्रवाद का बिगुल फूँक कर अरब  क्षेत्र में उस्मानी खिलाफत के विरुद्ध बगावत करा दी नतीजा यह हुआ कि अरब लड़ाके वहां तयनात टर्की के सिपाहियों पर हमला करने लगे I मक्का में काबा के अंदर एक चींटी भी मारने की मनाही है मगर अरबों ने वहां सुरक्षा के लिए तयनात टर्की के सिपाहियों पर भी गोली चलाना शुरू कर दिया I बताते हैं की तुर्क सिपाही अपनी  जान बचाने के लिए काबा की दीवारों से चिपक जाते थे मगर जवाबी गोली नहीं चलाते थे I अरबों की इस बेवफाई से टर्की सेना का कमांडर मुस्तफा कमाल अतातुर्क भड़क गया I बताया जाता है कि मुस्तफा कमाल अतातुर्क और टर्की की नवसेना के कमांडर एडमिरल आरिफ को भी ज़िओनवादियों(Zionists) और ब्रिटिश अधिकारियों ने खलीफा के खिलाफ भड़काया था I अरबों की बेवफाई ने इस आग में पेट्रोल का काम किया और दोनों ने मिल कर खलीफा अब्दुल हमीद के खिलाफ बगावत कर दी उन्हें निर्वासित कर के विदेश भेज दिया और मुस्तफा कमाल अतातुर्क टर्की का शासक बन गया  उस ने  अरब क्षेत्र में तयनात टर्की की सेना को वापस बुला लिया जिसके बाद पूरा अरब क्षेत्र एक तरह से अंग्रेजों के हाथ में आ गया I अंग्रेजों ने इस क्षेत्र का नया भूगोल बनाना शुरू किया और नयी सरहदें बनाईं I उन्होंने हिजाज़ जिसमें मक्का और मदीना भी शामिल था आले सऊद को दे कर सऊदी अरब नाम का देश बना दिया  I हिजाज़ से काट कर जॉर्डन (अरबी उर्दू में उर्दन ) को अलग किया और  मक्का के शेरिफ हुसैन के  एक बेटे अब्दुल्लाह को वहां का सम्राट बना दिया जबकि इराक में उनके दुसरे बेटे फैसल को बादशाह बनाया गया मगर कुछ दिनों बाद वहां सैनिक तख्ता पलट हो गया शाह फैसल को निर्वासित कर  दिया गया और प्रधान मंत्री नूरी अल सईद जो जान बचा कर भागने की कोशिश कर  रहे थे पकड़ लिया गया और फांसी दे दी गयी Iपूरे अरब क्षेत्र की नयी हदबंदी कर दी गयी नए देश और नयी सरहदें बना दी गयी  नए शासक नियुक्त कर दिए गए मगर फिलस्तीन को अंग्रेजों ने अपने पास ही रख कर  उसे  अपना संरक्षित क्षेत्र ( British Protected Territory) बना दिया I  यह दरअसल एक गहरी साज़िश थी जिसका भांडाफोड़ हुआ 1917 मे,जब तत्कालीन ब्रिटिश विदेश मंत्री लार्ड बाल्फोर्स ने ज़िओनिस्ट लीडर हरज़ेल को पत्र लिख कर सूचित किया  कि ब्रिटेन की महारानी फिलस्तीन में एक यहूदी राज्य इजराइल के गठन को स्वीकृत देंगी  अर्थात उस्मानी खलीफा अब्दुल हमीद ने जिस काम  से इनकार कर  दिया था वह ब्रटिश साम्राज्य ने पूरा कर  देने का ऐलान कर  दिया I

दरअसल यह समय ब्रिटिश साम्राज्य के लिए समस्याओं का दौर था I 1917  में रूस में कम्युनिस्ट क्रान्ति हो चुकी थी सेंट्रल एशिया के अधिकतर देश  ही नहीं यूरोप के भी कई देश सोवियत यूनियन का हिस्सा बन चुके थे और सोवियत यूनियन डूब रहे ब्रिटिश साम्राज्य और उभर रहे अमरीकी साम्राज्य के सामने चैलेंज बन कर खड़ा हो गया था I भारत में भी जंग आज़ादी जोर पकड़ रही थी यहाँ भी ब्रिटिश साम्राज्य अपने आखिरी दिन गिन रहा था I अंग्रेजों के शातिर दिमाग एक अन्य प्रकार का साम्राज्यवाद स्थापित करने का मन बना चुके थे जिसके तहत किसी देश पर अपना डायरेक्ट क़ब्ज़ा करने के बजाए वहां अपनी पिट्ठू सरकारें बनवा कर  उन्हें अपने अधीन भी रखा जाए और उनके प्राकृतिक संसाधनों का भी अपने यहाँ उपयोग किया जाए I अरब देशों को उस्मानी खिलाफत से बाहर ला कर वहां अपनी कठपुतलियां भी बिठाई गयीं और इजराइल नाम का दरोगा भी तयनात कर दिया गया  I इस तरह अरब देशों का तेल यूरोप अमरीका के कारखानों का ही नहीं पूरी जिंदगी की जीवन रेखा उनके indirect कब्जे  में आ  गया तेल की दौलत से  अरबों  देशों में खुशहाली तो आई उन्हें हर तरह की आधुनिक सुविधाएँ मिलीं लेकिन वह  अपने पैरों पर नहीं खड़े होने दिए गए यहाँ तक कि वह  अपने लिए वह एक क़लम एक छतरी भी नहीं बना सकते थे, हर वास्तु हर सुविधा हर निर्माण के लिए उनको यूरोप और अमरीका पर आश्रित रखा गया और जब कभी उन्होंने ताक़तवर होने की कोशिश की तो इजराइल से उन्हें पिटवा भी दिया गया I उनके हाथों खरबों डालर के असलहे बेचे गए वह या तो सत्ता की रक्षा के लिए उपयोग हुए या show piece बने रहे Iइसी पॉलिसी के तहत  भारत के सीने पर भी आरा चलाया गया I  अँगरेज़ जानते थे कि अगर भारत एक रहा तो वह एक विश्व शक्ति  के तौर पर उभरेगा जो उनके  नए साम्राज्यवाद  के लिए भी वैसा ही खतरा होगा जैसा वह उनके मौजूदा साम्राज्य के लिए बना हुआ है, इसलिए मुसलमानों में जिन्नाह और हिन्दुओं में सावरकर को खडा कर  के भारत के सीने पर आरा चला दिया गया I सोचिये एक ही काल खंड में धर्म के नाम पर दो राष्ट्र इजराइल और पाकिस्तान क्यों और कैसे बने  जबकि दुनिया के किसी भी अन्य देश में धर्म राष्ट्रीयता की बुनियाद नहीं है और न ही हो सकता है I क्या दुनिया के मुसलमान सऊदी अरब को अपना देश और राष्ट्र मान सकते हैं या दुनिया भर में बसे हिन्दू भारत को अपना देश और राष्ट्र कह सकते हैं ? फिलस्तीन पर जिन कारणों से यहूदी अपना दावा करते हैं उन्हीं कारणों से इसाई क्यों नहीं कर  सकते  क्योंकि हजरत ईसा भी तो फिलस्तीन में पैदा हुए थे ?

लगभग एक सदी हो गयी फलस्तीनी अवाम अपने वतन के लिए लड़ रहे हैं उन्होंने अपने वतन का बटवारा भी स्वीकार कर  लिया है मगर इजराइल अमरीका ब्रिटेन और अन्य साम्राज्यवादी ताकतों के इशारे पर फिलस्तीन को उसका जायज़ हक देने को भी तैयार नहीं है ओस्लो में उसने फिलस्तीनी नेता यासिर अरफात से इस आशय का समझौता भी कर  लिया लेकिन जो देश दिया उसकी हैसियत म्युनिसिपिलटी से अधिक नहीं है वह संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्तावों अंतर्राष्ट्रीय कानूनों अन्य देशों की अपीलों आदि पर कुछ ध्यान नहीं देता और अपना विस्तारवादी रवय्या जारी रखते हुए विवादित ज़मीन पर अपनी बस्तियां बसा रहा है लेकिन फिलस्तीनी भी कम जीवट वाले नहीं हैं har प्रकार की कुर्बानी दे कर वह मातृभूमि की आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे हैं और यह पक्का है कि जब तक नयी नहीं होगा यह क्षेत्र अशांति रहेगा यहाँ आग और खून की होली होती ही रहेगी I

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