उबैद उल्लाह नासिर का लेख: संवैधानिक लोकतंत्र की रक्षा के लिए कांग्रेस ही नही सभी दलों को आहुति देनी होगी
लोक सभा चुनाव की रण भेरी बजने ही वाली है प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने अर्धनिर्मित ही सही अयोध्या में राममंदिर का उदघाटन कर के अपना चुनावी राम बाण चल दिया,दूसरी ओर खूब सोह समझ के सियासी नफा नुकसान की गणित बिठा कर भारत रत्न की रेवड़ी भी बांटना शुरू कर दिया, एक साल में शायद ही इतने थोक भाव में भारत का यह सब से बड़ा सम्मान बांटा गया हो i राम मंदिर निर्माण के ध्वजवाहक लाल कृष्ण अडवानी ही नहीं बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय देश के प्रधान मंत्री रहे कांग्रेस के वरिष्ट नेता स्व पी वी नरसिम्हा राव तक को भारत रत्न से नवाज़ कर के उन्होंने हिंदुत्व की ज्वाला को तेज़ करने का प्रयास किया है I इसके साथ ही बिहार के पूर्व मुख्य मंत्री स्व कर्पूरी ठाकुर को भी भारत रत्न दे कर समाजी न्याय की शक्तियों को भी साधने की कोशिश की है I स्व विश्वनाथ प्रताप सिंह ने जब मंडल कमिशन की सिफारिशें लागू कर के पिछड़ी जातियों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने का रास्ता साफ़ किया था तो इसके खिलाफ कितना हिंसक आन्दोलन बीजेपी ने शुरू किया था यह कोई बहुत पुरानी बात नहीं हो गयी है I दर असल इसी मंडल की काट के लिए ही अडवानी जी ने कमंडल उठाया था अर्थात अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा शुरू की थी ,लेकिन मोदी जी ने मंडल बनाम कमंडल के समीकरण को बदलने की कोशिश की है तथा देश की राजनीति को मडल बनाम कमंडल के बजाए मंडल और कमंडल बना दिया है इस प्रकार उन्होंने जातीय जनगणना के नितीश और अब राहुल के अभियान की हवा निकालने की भी कोशिश की है I
मोदी जी की ताबड़तोड़ सियासी कार्रवाइयों से एक बात तो निश्चित है की वह ख़ुद भी न तो अपनी सरकार की सफलताओं के प्रति आश्वस्त हैं और न ही उन्हें अपने “राम बाण” की सफलता पर पूर्ण विश्वास है I वरना बिहार में नितीश जैसे घोर अविश्वासनीय व्यक्ति को बीजेपी की पाले में न लाते न ही उतने ही अविश्वासनीय जयंत चौधरी पर डोरे डालते, यही नहीं उनके निशाने पर केवल कांग्रेस ही रहती है कोई क्षेत्रीय दल नहीं क्योंकि वह जानते हैं कि चुनाव से पहले या बाद उन्हें इन दलों की आवश्यकता पड़ सकती है I लेफ्ट और लालू यादव की RJD को छोड़ कर कोई क्षेत्रीय दल ऐसा नहीं है जिसने बीजेपी के साथ सरकार न बनाई हो और समय आने पर उसके साथ न जा सकता हो, इसी कारण से मोदी जी अपना यह आप्शन खुला रखना चाहते है Iइसके साथ ही यह भी सत्य है की बीजेपी के पास एक उच्च कोटि की चुनावी मशीनरी है उसके पास संसाधनों की भरमार है केंद्र से ले कर कई राज्यों की सत्ता उसके हाथ में है संवैधानिक संस्थाओं पर उसका कब्जा है और उसके कार्यकर्ताओं का जोश सातवें आसमान पर है अर्थात कुल मिला कर 2024 का चुनाव बीजेपी आसानी से जीत सकती है फिर भी उसका विश्वास क्यों डिगा हुआ है यह समझ से परे है ?
दूसरी ओर कांग्रेस जैसे अभी से हार मान चुकी है चुनाव जीतने के लिए जिस मारक सोच (Killer instinct) की आवश्यकता होती है वह उस में कहीं नजर नहीं आती है I केवल राहुल गांधी बिना थके, बिना हार माने मोर्चा संभाले हैं लेकिन चुनाव जीतने के लिए केवल लोकप्रियता ही काफी नहीं है इसके लिए स्ट्रेटेजी भी बनाने पड़ती है इसी मामले में कांग्रेस पिछड़ जाती है I विपक्षी दलों का जो INDIA गठ्बन्धन बना था उस ने बीजेपी के होश उड़ा दिए थे, चुनावी राजनीति में परसेप्शन सब से महत्वपूर्ण होता है सभी विपक्षी दलों के एक प्लेटफोर्म पर आने से यह परसेप्शन विपक्ष के प्रति बन गया था मगर कांग्रेस के अंदर घुसे उसके दुश्मनों ने अपना खेल कर दिया I मध्य प्रदेश राजस्थान और छत्तीस गढ़ के विधान सभा चुनावों में यह परसेप्शन तितरबितर हो गया क्योंकि कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी को इन तीनों राज्यों में कोई सीट नहीं दी, यदि कुछ सीटें दे कर इन पार्टियों को साधे रखा होता तो INDIA का मोमेंटम बना रहता और शायद कांग्रेस भी जीती हुई बाज़ी न हारती I यही नहीं इन तीनों राज्यों में चुनाव अभियान के चक्कर में INDIA को बिलकुलl भुला ही दिया गया यहाँ तक कि कमल नाथ ने एकतरफा तौर से भोपाल की मीटंग ही केंसिल कर दी, कमल नाथ और अखिलेश यादव की तू तू मैं मैं से रही सही कसर भी पूरी हो गयी I इन तीनों राज्यों में कांग्रेस की सफलता के प्रति सभी आश्वस्त थे लेकिन गलत स्ट्रेटेजी और ख़ुद गरजी के कारण खेल बिगड़ गया I INDIA के बचे खुचे दलों के बीच भी अभी सीटों का ताल मेल फाइनल नहीं हो पाया है जबकि होना तो यह चाहिए था की अब तक उम्मीदवार फाइनल कर के उन्हें मैदान में उतर दिया जाता उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने एकतरफा तौर से उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी है ख़ुद ही अपनी तरफ से कांग्रेस के लिए 11 सीटें छोड़ी हैं समझ में नहीं आता कि यह ऊँट किस करवट बैठेगा I मायावती को इस गठबंधन में लाने की कोशिश की जा रही है मगर उनका रुख अभी साफ़ नहीं है, फिलहाल उन्होंने अकेले ही लड़ने का एलान किया है I अगर ऐसा हुआ तो वह ख़ुद तो शायद ही कोई सीट जीत सकें लेकिन कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का भट्टा ज़रूर बिठा देंगी, बीजेपी यही चाहती भी है I उधर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठजोड़ से दोनों पार्टियों को कोई ख़ास फायदा नहीं होगा सिवाय इसके के मुस्लिम वोटों का बटवारा रुक सकता है लेकिन बीजेपी इसे ध्रुवीकरण के लिए खूब हवा देगी और 2017 के असम्बली चुनाव जैसी हालत हो सकती है I
कांग्रेस की अपनी गलतियाँ और खामियां अपनी जगह मगर सच्चाई यह है की कांग्रेस की समस्याएँ भी अन्य पार्टियों के मुकाबले में बिलकुल अलग है I उसके सामने सब से बड़ी समस्या क्षेत्रीय दल हैं I सच्चाई यह है कि कांग्रेस के ही वोट बैंक छीन कर इस स्थिति में पहुंचा कोई भी क्षेत्रीय दल कांग्रेस को मज़बूत होते नहीं देख सकता I इन में लालू यादव की रजद को छोड़ कर कोई ऐसा दल नहीं है जिसने बीजेपी से मिल कर सत्ता सुख न भोगा हो यह दल किसी भी समय पाला बदल सकते हैं I यह भी हो सकता है कि जो दल आज अलग हुए हैं या अलग होने की सोच रहे हैं वह चुनाव बाद पाला बदल के बीजेपी के साथ चले जाएँ , एसे में कांग्रेस एक हद से ज्यादा इन क्षेत्रीय दलों की मान मुनव्वल नहीं कर सकती जबकि क्षेत्रीय दल चाहते हैं कि कांग्रेस उनके प्रभाव क्षेत्र में केवल एक दो सीटें लड़ कर बाक़ी सब सीटें उनके लिए छोड़ दे I इन दलों को यदि देश की तबाह हो चुकी अर्थ व्यवस्था,बिखरे हुए समाजी ताने बाने और संवैधानिक लोकतंत्र को बचाने की चिंता होती तो शायद वह कांग्रेस से इस प्रकार की दूरी न बनाते I आज संघी सोच वालों को छोड़ दे तो सब का यह ख्याल है की यह देश का आखरी चुनाव भी हो सकता है I सत्य पाल मालिक खुले आम विगत वर्षों से यह बात कहते आये हैं, खडगे जी ने राज्य सभा में खुले आम यह बात कही I हालत भी यही बताते हैं संस्थाओं पर मोदी जी की ऑक्टोपस जैसी पकड़ ने उन्हें सफ़ेद हाथी बना दिया है ,चुनाव् फॉर्मेलिटी बनते जा रहे हैं रामपुर उप चुनाव के बाद चंडीगढ़ के मेयर के चुनाव में जो हुआ वह बानगी मात्र है Iअब भी न चेते तो बहुत देर हो जाएगी I हालात को बदलने की ज़िम्मेदारी केवल कांग्रेस पर ही नहीं है सभी दलों संस्थाओं और अवाम को आने वाले खतरों और तबाही का एहसास करना होगा।