क्या हस्बोले जी और नितिन गडकरी भी अर्बन नक्सल हैं
(उबैदउल्लाह नासिर)
मेरे आशियाँ को छोडिये की वह जल रहा है जला करे
ज़रा इन हवाओं को रोकिये कि सवाल सारे चमन का है I
देश के सियासी फलक पर घृणा, हिंसा, बदला, झूट और नफरती प्रोपगंडे के ऐसे गहरे बादल छा दिए गए हैं कि देश किस आर्थिक समाजिक और नैतिक तबाही के गड्ढे में गिर रहा है इसकी समाज के एक बड़े वर्ग को चिंता नहीं है और जो चिंतिति है उसे देश द्रोही,पाकिस्तानी एजेंट, अर्बन नक्सल, खान मार्किट गैंग जैसी उपमाओं से नवाज़ कर उसे समाज में बदनाम करने का प्रयास किया जाता है I लेकिन क्या आरएसएस के सह सर संघ चालक श्री हस्बोले और केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी को भी इसे ग्रुप में रखा जा सकता है जिन्होंने कुछ दिनों पूर्व ही खुले आम देश में बढ़ रहे आर्थिक संकट,बेरोज़गारी और मंहगाई पर चिंता ज़ाहिर की थी I अवाम को सच्चाई से आगाह करना और उनके जमीर को जगाने का जो नैतिक और संवैधानिक कर्तव्य मीडिया को निभाना चाहिए वह उसे भुला चुका है और पूरी बेशर्मी और ढिठाई के साथ अवाम से न केवल सच्चाई छुपाता है बल्कि सरकार के प्रचार विभाग के तौर पर काम कर रहा है और जो पत्रकार /मीडिया हाउस अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं उन्हें आर्थिक मार समेत न जाने कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है I
देश की आर्थिक स्थिति का अंदाजा डालर के मुकाबले रूपये के गिरते मूल्य से लगाया जा सकता है विगत चंद महीनों में यह गिरावट इतनी तेज़ हुई है की देश की अर्थव्यवस्था के लिए यह बोझ उठाना कठिन हो गया है I आज एक डालर लगभग 83/- का है जबकि जनवरी में यह 74/- का था दुनिया के किसी देश की करंसी में ऐसी गिरावट शायद ही आई हो जैसी भारतीय रूपये में आई है जिसके कारण हमारा बैलेंस आफ पेमेंट बुरी तरह डिसबैलेंस हो गया है केवल दो मदों में ही हमारी विदेशी मुद्रा का बड़ा भाग खर्च हो रहा है एक कच्चे तेल की खरीदारी दूसरा भारत पर हो चुके करीब 140 लाख करोड़ के क़र्ज़ के सूद का भुगतान (मूल से मतलब ही नहीं है )I रिज़र्व बैंक आफ इंडिया ने इसे एक गहरी चिंता का विषय बताया है I ध्यान रहे की अक्टूबर 2021 में हमारे पास 645 अरब डालर की विदेशी मुद्रा थी जो लगभग एक साल बाद घट कर 532 के आस पास है अर्थात एक साल में करीब 114 अरब डालर की गिरावट इसका मुख्य कारण हमारे आयात निर्यात का अनुपात बिगड़ना है सोचिये चीन से तिरंगा झंडा मंगाने पर बेश कीमती विदेशी मुद्रा खर्च करने का क्या औचित्य हो सकता है ?
कोढ़ में खाज के तौर पर तेल पैदा करने वाले देशो के संगठन ओपेक प्लस ने जिसमे अब रूस भी शामिल हो गया तेल की पैदावार घटाने का फैसला किया है जिसके कच्चे तेल के दाम बढ़ेंगे जिसका अप्रभाव दुनिया के सभी देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा I अमरीका के राष्ट्रपति जोए बिडेन ने सऊदी अरब से इस फैसले पर पुनर्विचार की अपील की है लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ उधर रूस युक्रेन युद्ध के कारण सभी देशों को आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा जिसके बंद होने के फिलहाल तो कोई आसार नहीं दिखाई देते ऐसे में कच्चे तेल के दाम बढ़ने से आर्थिक संकट और गहरा हो जाएगा I ओपेक प्लस का कहना है की कच्चे तेल, के दाम 120 डालर से गिर कर 80 डालर के आस पास आ जाने से उनको भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है जिसके कारण मजबूरन उन्हें यह निर्णय लेना पड़ा लेकिन फिलहाल तो युद्ध और उसके कारण आर्थिक पाबंदी झेल रहा रूस इस फैसले से फायदे में रहेगा दुनिया के अन्य देश झेलें तो झेलें I भारत पर भी इसका नकारात्मक असर ज़रूर पड़ेगा लेकिन जब तेल सस्ता था तब मोदी सरकार ने इसका कोई फायदा जनता को नहीं दिया था और टैक्स के रूप में खरबों रुपया वसूल किया था इसलिए तेल के दाम बढ़ने से भारतीय अवाम को कम से कम गुजरात विधान सभा के चुनाव तक कोई बोझ नहीं उठाना पड़ेगा इतना इत्मीनान तो रखा जा सकता है,और उसके बाद सूद ब्याज समेत सब वसूल कर लिया जायेगा I
देश के खजाने में भर पूर विदेशी मुद्रा का मौजूद रहना बहुत आवश्यक होता है इसे उस देश के आथिक स्वास्थ का पैमाना भी कहा जाता है, इसका मकसद यह होता है की अगर उस देश की करंसी में तेज़ी से गिरावट हो या देश दिवालिया हो रहा हो तो तो देश के केन्द्रीय बैंक जो भारत में रिज़र्व बैंक कहलाता है उसके पास बैकअप फंड मौजूद रहे ताकि वह देश की अर्थव्यवस्था को संभाल सके,इसमें विदेशी मुद्रा के साथ साथ सोने का भंडार ट्रेजरी बिल आदि शामिल होते है I देश के इतिहास में पहली बार जब मोदी सरकार ने रिज़र्व बैंक से उसके सुरक्षित फंड से करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपया ले लिया था तब भी अर्थशास्त्रियों ने इस पर चिंता जताई थी क्योंकि पिछली सरकारों ने चीन और पाकिस्तान से ही कई युद्धों के बावजूद इस फंड को हाथ नहीं लगाया था I इसके साथ ही देश का सोने का भंडार भी घट रहा है पहले हमारे पास 46 अरब डालर का सोना था जो अब मात्र 38 अरब डालर का रह गया है I विदेशी मुद्रा में कमी का एक कारण जिसे लुच अर्थशास्त्री मुख्य कारण भी बताते हैं फारेन करंसी असेट (FCA) में गिरावट है यह कुल विदेशी मुद्रा का सबब से महतवपूर्ण भाग होता है जो 30 सितम्बर को घट कर 473 अरब डालर रह गया है I
एक और बहुत बड़ा आर्थिक संकट देश के सामने मुंह बाए खड़ा है वह है अपने कुल विदेशी क़र्ज़ का लगभग 40% अगले 6 महीनों में अदा करना I जानते हैं भारत पर कुल विदेशी क़र्ज़ कितने डालर है 621 अरब डालर, इसमें 40% अर्थात करीब 267 अरब डालर अगले 6 महीनों में अदा करना है I सोचिये क्या भारत्त अपने विदेशी मुद्रा के खजाने से यह क़र्ज़ चुका पायेगा या क़र्ज़ चुकाने के लिए उसे फिर क़र्ज़ लेना पड़ेगा और क़र्ज़ के इस मकड़जाल का अंजाम क्या होगा ?एक और भयानक तथ्य ध्यान में रखियेगा हमारे पास जितना विदेशी मुद्रा भंडार है विदेशी क़र्ज़ उससे कहीं ज़्यादा है I
विगत दिनों रिज़र्व बैंक आफ इंडिया की एम्प्लाइज यूनियन के महासचिव सी एच वेंकटचलम ने एक पत्रकार वार्ता में कहा था की मोदी सरकार की अदूरदर्शी आर्थिक नीतियों के कारण देश कठिन आर्थिक संकट में फंसता जा रहा है उन्होंने कहा की आयत बढ़ने और निर्यात घटने के कारण बैलेंस आफ पेमेंट बिगड़ गया है जिसके कारण विदेशी मुद्रा भंडार घटता जा र्हान्हाई और यदि इसे न सुधारा गया तो देश श्रीलंका जैसी समस्या से दो चार हो सकता है I लेकिन वेंकटचेलम जी ने समस्या का केवल एक ही रुख बताया है वह है विदेश मुद्रा के संकट का लेकिन हमारी अर्थव्यवस्था की सम्पूर्ण समस्या और भी गहरी है देश में रोज़गार का भीषण संकट है और सरकार का हर क़दम रोज़गार की संभावनाएं कम करने वाला है एक ओर तेज़ी के साथ निजीकरण किया जा रहा है अरबों रुपया मालियत वाली सरकारी कम्पनियों को कोडियों के मोल बेचा जा रहा है दूसरी ओर सरकारी नौकरियां घटाई जा रही हैं और हर जगह यहाँ तक की सेना में भी संविदा पर नौकरी दी जा रही है,पेंशन अटल जी के समय ही समाप्त हो गयी थी I सरकारी नौकरी पा कर अपना ही अपने परिवार का भविष्य सुरक्षित रखना अब सपना हो गया है Iदूसरी ओर मंहगाई आसमान छू रही है सभी घरों का बजट बिगड़ चुका है कारोबार चौपट पड़े हैं बससाम्प्रदायिक घृणा और हिंसा की फसल लहलहा रही है यहे स्थित देश को कहाँ ले जायेगी इस पर सोचने का समय न सरकर के पास है न साम्प्रदायिक घृणा का शिकार हो चुकी जनता के पास है और न ही आत्मा बेच चुकी मीडिया के पास है I
(इनपुट के लिए गिरीश मालवीय का आभार )