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Operation Martyrdom आत्मघाती हमले गैर-इस्लामी

Operation Martyrdom आत्मघाती हमले गैर-इस्लामी

10 नवंबर की शाम लाल किले के पास हुई भीषण आतंकवादी घटना ने दिल और दिमाग को झकझोर कर रख दिया है। इस कायराना और निंदनीय घटना के बाद से, जिसने लगभग 14 निर्दोष लोगों की जान ले ली, कई परिवारों को तबाह कर दिया और 30 से ज़्यादा लोगों को गंभीर रूप से घायल कर दिया, जिनके दिल और दिमाग न जाने कब तक इस आघात से जूझते रहेंगे।
इस भयावह घटना के बाद टीवी चैनलों पर जो विवरण सामने आए हैं, उसके बाद से मेरा मन व्यथित और चिंतित है कि अगर हमारी पुलिस और एजेंसियों ने समय पर कार्रवाई करके इस साज़िश का पर्दाफ़ाश न किया होता और इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक सामग्री बरामद न की होती, तो पता नहीं क्या होता। मैं उस दिन से ही इस बारे में कुछ लिखने की सोच रहा था, लेकिन कल जब मैंने इस घटना के असली ज़िम्मेदार डॉ. उमर नबी का यह वीडियो टीवी पर देखा, जिसमें वे फिदायीन हमलों को “ऑपरेशन शहादत या ऑपरेशन Martyrdom” कह रहा है, तो मुझे एहसास हुआ कि आतंकवादी संगठन अपनी गंदी और कायराना हरकतों और अपने निजी लाभ को इस्लाम की शब्दावली के पीछे छिपाने और उचित ठहराने की कोशिश करते हैं और जानबूझकर इस्लाम की स्पष्ट और शुद्ध शिक्षाओं, जो पूरी तरह से दया, शांति और सुरक्षा के उसूल पर आधारित हैं, को बदनाम करने और इस्लाम को बदनाम करने की कोशिश करते हैं। सोचने वाली बात यह है कि इन आतंकवादी संगठनों या उनके आकाओं की हरकतों से इस्लाम या मुसलमानों को फ़ायदा होने के बजाय नुक़सान हुआ है, और दुनिया में इस्लाम और मुसलमानों की छवि धूमिल हुई है। हैरानी की बात है कि इस गैर-इस्लामी और निंदनीय सोच और विचारधारा को लागू करने के लिए, वे इस्लामी शिक्षाओं से अनजान कुछ भटके हुवे युवाओं पर अपनी गैर-इस्लामी और निंदनीय सोच और विचारधारा थोपते हैं और तरह-तरह से उनका ब्रेनवॉश करते हैं, इस हद तक कि उनकी इन कायराना घटनाओं से न तो इस्लामी देश बचे हैं, न ही मुसलमान। न मस्जिदें बची हैं, न कब्रिस्तान। न मासूम बच्चे, न बुजुर्ग और न ही महिलाएं। वे सभी को निशाना बनाते हैं और निर्दोष लोगों की जान लेने को जिहाद या शहादत कहते हैं, जबकि इस्लामी शिक्षाएं और पवित्र कुरान की आयतें उनकी झूठी विचारधारा का पूरी तरह से खंडन करती हैं और किसी भी निर्दोष व्यक्ति की जान लेना इस्लाम में महापाप माना जाता है। यह भी सोचने वाली बात है कि डॉ. उमर और उनके जैसे विचारधारा वाले प्यादे जो “ऑपरेशन शहादत या ऑपरेशन martyrdom” जैसी गैर-इस्लामी विचारधारा का प्रचार करते हैं, अपनी जान बचाते हैं और कभी फिदायीन बनकर खुद को उड़ाने की कोशिश नहीं करते। बल्कि, वे इस काम के लिए ऐसे युवाओं को चुनते हैं जिन्हें इस्लाम की स्पष्ट शिक्षाओं की जानकारी नहीं है, जैसा कि डॉ. उमर जो अपनी वीडियो में सोच सोच कर बोल रहा हे ओर उस विचारधारा या “शहादत ” की शब्दावली को समझाने की कोशिश कर रहा हे जबकि मुझे नहीं लगता उसने इस्लाम धर्म की पर्याप्त शिक्षा किसी प्रसिद्ध या अधिकृत इस्लामिक शिक्षा संस्थान से ली हो । डॉ. उमर एक आधुनिक शिक्षित व्यक्ति था और जैसा कि उस्की बहन ने बताया, वे एक गरीब परिवार से था, जिन्होंने बड़ी मुश्किलों और गरीबी का सामना करके उसे डॉक्टर बनाया। उसके परिवार को उम्मीद थी कि अब उनके दिन फिरेंगे और उमर उनकी गरीबी दूर करेगा। लेकिन अपने निजी स्वार्थों के लिए, किन परिस्थितियों में आतंकी संगठनों के आकाओं ने डॉ. उमर जैसे युवाओं को आतंकवादी बनाया और इस्लाम की आड़ में उनके मन में एक गलत और झूठी विचारधारा का प्रचार किया? यह जाँच का विषय है। लेकिन इस्लाम के एक पवित्र शब्द की गलत व्याख्या करके, डॉ. उमर ने न केवल कई बेगुनाह और निर्दोष लोगों की जान ले ली, बल्कि अपने लिए भी नर्क का टिकट पक्का कर लिया और अपने परिवार और दर्जनों अन्य लोगों का जीवन अपने बाद नर्क बना दिया और इस्लाम और मुसलमानों की छवि को धूमिल कर दिया।
ओसामा बिन लादेन को “ऑपरेशन शहादत या martyrdom या आत्मघाती हमलों ” के विचार का जनक माना जाता है। इससे पहले, आत्मघाती या फिदायीन हमलों का कोई उदाहरण नहीं था। जबकि इस्लाम और मुसलमानों के नाम पर कई युद्ध लड़े गए थे। अल्लाह के रसूल मुहम्मद साहब के ज़माने में, फिर चारों खलीफाओं के ज़माने में और उसके बाद के ज़माने में, अब्बासी ज़माने में, उमय्यद ज़माने में, फ़ातिमी ज़माने में, उस्मानी ख़िलाफ़त में जंगें तो हुईं, लेकिन आत्मघाती हमलों की विचारधारा नहीं थी। ओसामा बिन लादेन ने इस ग़ैर-इस्लामी और झूठी विचारधारा का प्रचार किया, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि उसने ख़ुद कभी इस पर अमल नहीं किया, बल्कि दूसरों को इसके लिए बहकाया। जबकि साफ़ हदीस है कि मज़हब में कोई भी नई चीज़ बनाना जो उसमें शामिल न हो, नामंजूर है, यानी उसका इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं। इसी तरह आज आतंकवादी संगठनों के सरगना इस्लामी शिक्षाओं से अनभिज्ञ और नासमझ युवाओं को इस ग़लत विचारधारा के जाल में फँसा रहे हैं। डॉ. उमर भी फ़िदायीन हमले के लिए किसी ओर को तैयार कर रहा था, लेकिन जब कोई और तैयार नहीं हुआ और उसे यकीन हो गया कि उसके साथी पकड़े जा चुके हैं और वह भी जल्द ही पकड़ा जाएगा, तो वह आनन-फानन में लाल किले के पास उसने खुद को उड़ा लिया ।
अब आइए पवित्र कुरान की उन आयतों पर गौर करें जिनका सहारा लेकर और उनकी गलत व्याख्या करके आतंकवादी संगठनों के नेता इस्लाम की स्पष्ट शिक्षाओं से अनभिज्ञ युवाओं को अपने जाल में फंसाते हैं।
निर्दोष और मासूम लोगों की जान लेने के लिए कुरान की सूरह संख्या 2 की आयत 154 और कुरान की सूरह संख्या 9 की आयत 111 का संदर्भ लेकर उन्हें संदर्भ के बग़ैर (out of context) गलत व्याख्या की जाती है, जबकि कुरान में स्पष्ट तौर पर इन आयतों की की गई गलत व्याख्या के विपरीत अर्थ रखने वाली आयतें हैं , जो स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं कि इस्लाम में किसी निर्दोष व्यक्ति की जान लेना कितना बड़ा अपराध और पाप है। सबसे पहले, सूरा 2 की आयत 155 इस सिद्धांत को खारिज करती है, जिसकी पिछली आयत 154 से गलत व्याख्या की गई है। आयत 155 कहती है कि अल्लाह निश्चित रूप से ईमान वालों को उनके जीवन और संपत्ति में किसी बुरी चीज, उनकी फसलों में नुकसान, डर और भूख से परखेगा, लेकिन जो लोग धैर्य रखते हैं उन्हें खुशखबरी (यानी स्वर्ग) देगा। यहाँ, स्वर्ग का वादा धैर्य और परीक्षण के आधार पर किया गया है, न कि किसी की हत्या करके और बदला लेकर। सूरा 5 की आयत 32 एक प्रसिद्ध आयत है जिसका अर्थ है, “जिसने किसी व्यक्ति को अन्यायपूर्वक मार डाला, उसने मानो पूरी मानवता को मार डाला।” सूरा 4 की आयत 29 का अंतिम भाग स्पष्ट रूप से कहता है, “अपने आप को न मारो, क्योंकि अल्लाह तुम पर अत्यंत दयावान है।” इसी प्रकार, सूरा 2 की आयत 195 का अर्थ है, “अल्लाह के मार्ग में खर्च करो और विनाश में न पड़ो, और लोगों पर दया करो। अल्लाह दया करने वालों को प्रिय है।” सूरा 7 की आयत 56 का अर्थ है, “और सुधार के बाद धरती में उत्पात न फैलाओ, बल्कि भय और आशा के साथ उसे पुकारो। निस्संदेह, अल्लाह की दया नेक काम करने वालों के निकट है।” सूरा 6 की आयत 108 का अर्थ है, “अल्लाह के अलावा जिन लोगों को पुकारते हैं, उनकी बुराई न करो।”
कुरान की इन सभी आयतों से स्पष्ट है कि इस्लाम में किसी निर्दोष व्यक्ति की हत्या की कोई गुंजाइश नहीं है और आत्मघाती हमलों की विचारधारा पूरी तरह से गैर-इस्लामी है। जो लोग कुरान की कुछ आयतों की गलत व्याख्या करते हैं और अपनी झूठी विचारधारा का इस्तेमाल करके कुछ युवाओं को अपने स्वार्थ के लिए गुमराह करते हैं, वे कुरान के खिलाफ हैं और उसे अस्वीकार करते हैं। ऐसे लोग भय और आतंक फैलाकर अपने गलत मकसद में कामयाब हो सकते हैं, लेकिन वे पूरी मानवता, खासकर इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ एक बड़ा अपराध करते हैं और उन्हें बदनाम करने का माध्यम बनते हैं। इस्लाम और मुसलमानों का ऐसे लोगों से कोई लेना-देना नहीं है, और आज तक उनके कार्यों से इस्लाम और मुसलमानों को नुकसान के अलावा कोई फायदा नहीं हुआ है। यह विचारणीय है कि जो धर्म दूसरे धर्मों के लोगों को बुरा-भला कहने से भी मना करता है, वह किसी निर्दोष व्यक्ति की हत्या और धरती पर उत्पात फैलाने को कैसे बर्दाश्त कर सकता है? जो इस्लाम युद्ध के समय भी महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों की हत्या पर रोक लगाता है, वह निर्दोष लोगों की हत्या की इजाजत कैसे दे सकता है? अल्लाह के रसूल मुहम्मद साहब की एक हदीस में एक भूखी-प्यासी बिल्ली को पानी पिलाकर उसकी जान बचाने वाले को स्वर्ग की खुशखबरी दी गई, तो जिस धर्म में एक बिल्ली की जान बचाने वाले को स्वर्ग की खुशखबरी दी गई उसमें निर्दोष और मासूम लोगों की जान लेकर कोई जन्नत कैसे पा सकता है?
बासित नदवी
इस्लामिक स्कॉलर

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