छोटे बच्चों का भविष्य गर्त में न धकेलें


बहुत सारे अशिक्षित और बुरी आदतों के शिकार लोग आपने देखा होगा अपने बच्चों से या किसी और के बच्चों से गुटखा,बीड़ी, तम्बाकू, सिगरेट जैसी नशीली चीजें  यहां तक कि ताश की गड्डी तक मंगवा लेते हैं। छोटे बच्चों का मस्तिष्क एक कच्चे घड़े के समान होता है, जैसा उसे ढालोगे वैसा ही वह ढलेगा। जब मेरे सामने एक बहुत छोटे बच्चे के गुटखा लाने की घटना गुज़री मुझे बहुत गुस्सा आया और मैं सोचने पर मजबूर हो गया। मैं सोचने लगा सिर्फ यही बच्चा नहीं, ऐसे कितने बच्चों के भविष्य गर्त में धकेले जाते होंगे।आज इनसे नशीली वस्तुऐं मंगवायी जा रही हैं, कल यह इन्हें खाना सीख जायेंगे और बड़े होकर यही जुआरी, शराबी, नशेड़ी बन जायेंगे और इनका भविष्य अंधकारमय हो जायेगा।
मैं एक परचून की दुकान पर कुछ सामान ले रहा था। तभी चार या पांच साल का एक छोटा बच्चा आया और दुकानदार से बोला कि मुझे गुटखा दे दो, मैं यह सुनकर चकित रह गया।इतना छोटा बच्चा और उसकी ज़ुबान पर गुटखा। मैंने उस बच्चे से पूछा किसने मंगवाया है। उसने कहा मेरे अंकल ने, मैंने उस दुकानदार से कहा इस बच्चे को ही नहीं किसी भी छोटे बच्चे को आप नशीले पदार्थ से संबंधित वस्तुऐं न दें और अपने बच्चों को भी ऐसी चीजों से बचायें। क्योंकि आज आप इनके हाथों में यही चीज़ें देंगे, कल यह बड़े होकर इन्ही गलत आदतों में पढ़ जायेंगे। फिर मैंने उस छोटे बच्चे से कहा जिन अंकल ने ये मंगाया है उनके पास ये गुटखा नहीं मुझे लेकर चलिए। मैंने जाते ही उन साहब से कहा आपको शर्म नहीं आती इतने छोटे बच्चे से गुटखा मंगाते हुए, इस छोटे बच्चे पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? आप खुद तो सुधर नहीं पाये इस बच्चे को भी उसी संगत में डालना चाहते हैं। यह बच्चे देश का भविष्य हैं इन्हें गर्त में न धकेलें। मैंने उन्हें सख्त हिदायत दी आइंदा अपने बच्चे या किसी भी बच्चे से कोई भी नशीला पदार्थ नहीं मंगवाएं।
लिखते लिखते मेरे दिमाग में बहुत सारे सवाल आने लगे। फिर मेरी नज़र पांच साल से दस या बारह साल तक के उन छोटे-छोटे  बच्चों की दयनीय स्थिति पर भी गई, जिनके हाथों में किताबें होनी चाहिए थीं, वो रोडबेस अड्डों पर , स्टेशनों पर, रोड्स के किनारे गुटखा, बीड़ी, सिगरेट ,तंबाकू व अन्य सामान बेच रहे होते हैं। यह उनकी मजबूरी समझ लो या बदनसीबी।यह सब वो बच्चे हैं जिनके परिवार आर्थिक रूप से बहुत कमज़ोर हैं, किसी बच्चे के सर पर वाप का साया नहीं है,किसी के माता-पिता विकलांग हैं,जो झोपड़ी पट्टियों में निवास करते हैं। अपने परिवार की दयनीय स्थिति के कारण यह छोटे-छोटे बच्चे इसी बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू, अन्य धंधों से कुछ पैसे कमा कर जैसे तैसे गुजारा करते हैं।ऐसा तब हो रहा है, जब हमारे देश में बाल संरक्षण अधिनियम, निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा (आरटीई) अधिनियम,बाल संरक्षण आयोग,बाल कल्याण समिति जैसे कई कानून,आयोग और समितियां अमल में हैं, किन्तु इनका प्रभाव नज़र नहीं आता कानून तो बन जाते हैं, बहुत सारी योजनाएं लायीं जाती हैं पर ज़मीन पर कुछ नज़र नहीं आता बस कागजों और एडवरटाइजिंग तक सीमित रह जाते हैं। जो बजट आता है बच्चों के संरक्षण, सुधार और शिक्षा के लिए उसका भी पता नहीं चलता कहां गया।आते-जाते उन जन प्रतिनिधियों, सांसद-विधायाको, प्रशासनिक अधिकारियों और सरकारों को सब दिखता है इन बच्चों की दयनीय स्थिति के बारे में लेकिन इस और ध्यान किसी का नहीं जाता। न पिछली सरकारों ने कुछ किया और न मौजूदा सरकारों का ध्यान है इस तरफ़।
आज हमारे देश में उन सांसदों और विधायकों की जो अपने आप में सक्षम और आर्थिक रूप से बहुत मजबूत हैं उनकी पेंशन भत्ते बढ़ते रहते हैं उन विधवाओं, विकलांगों, आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों को आज भी इस महंगाई के दौर में हजार से पंद्रह सो रुपए महीने की पेंशन मिलती है कुछ को तो वो भी नहीं मिलती होगी। अब ऐसे में उनके बच्चे कैसे शिक्षा हासिल कर सकते हैं? यह बच्चे अपनी भूख मिटायें या शिक्षा हासिल करें। इन बच्चों का भविष्य कैसे अंधकार से निकलेगा? यह बच्चे भी देश का भविष्य हैं। भारत आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है।मेरी सरकार से अपील है कि ऐसे तमाम बच्चे जो अपने परिवार की आर्थिक स्थिति के कारण शिक्षा से दूर हैं और काम कर रहे हैं। उनकी और उनके परिवार की काउंसलिंग कराई जाए जो आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं उन्हें हर माह इतनी मदद तो दी जाए जिससे उनके परिवार का भरण-पोषण होता रहे और उनके बच्चे बेफिक्र होकर अच्छी शिक्षा हासिल कर सकें।

मो राशिद अल्वी (विधि छात्र एवम सोशल एक्टिविस्ट)

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