खवाब वे नहीं हो ते, जो आपको रात में सोते वक्त नींद में आए

बल्कि खवाब वे होते हैं, जो रात में सोने ही न दें।’

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आलमी दिफाई नख्शे पर मुल्क को एक अहम पहचान दिलाने वाले वाले भारत रत्न व साबिक सदरे जमूरिया ए-पी-जे अब्दुलकलाम की पादाईश 15 अक्टूबर 1931  को रामेश्वरम्के ऐसे आम घर मे हुई थी जो हमेशा मुसीबतो से दोचार रहता था। आगे चल कर जमहूरियत और इंसानियत की बुनियाद मजबूत करने वाले कलाम का पूरा नाम अब्दुलफाकिर जैनुल आबीदीन अबदुलकलाम था। बचपन में ही अपनी जिम्मेदारियों का एहसास करने वाले अब्दुल कलाम पढ़ाई के साथ साथ रामेश्वरम्के रेलवे स्टेशन और बस अड्डे पर जा कर अखबार इकठ्ठा करते थे। बचपन में ही खुदमुखतार बनने की तरफ उन कायह पहला कदम था।

तमाम तर मुश्किल हालात के बावाजूद कलाम ने स्कूली तालीम हासिल की और उसके बाद तिरूचिरापल्ली के सेंटजो सेफ्स कॉलेज में दाखिला लिया, जहाँ से उन्होंने सन 1954 में physics में ग्रेजूएशन की डिग्री हासिल की। आंखो मे बडे सपने लिए कलाम 1955 में वो मद्रास चले गए जहाँ कलाम ने मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की पढाई पूरी की। शरूआती तालीम से लेकर एरोनोटिक्ल इंजीनयारिग इम्तीयाजी तालीम हासिल करने के बाद अब एक ऐसे मरहले की शुरूआत हो चुकी थी जब कलाम अपने कारनामो से एक खास पहचान कायम करने की तरफ गामजन थे। मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की पढाई पूरी करने के बाद कलाम अपने इरादो को पंखे देने के लिए 1958 में Defense Research And Development Organization यानी DRDO में एक साईसटिस्ट के तोर पर शामिल हो गए। सैना के लिए एक छोटे है हैलिकोपटर का डिजाईन तैयार कर के कलाम ने बहुत जल्द अपनी काबलियत का सबूत पेश कर दिया था। शायद कलाम को अपनी मंजिल का पहले से पता था जिस के सबब वह जल्द Indian Space Research Organization चले गए, जहाँ वे SLV-III के प्रोजेक्ट डायरेक्टर थे, डायरेक्टर के तोर पर भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह (एसएलवीतृतीय) प्रक्षेपास्त्र बनाने का सेहरा डॉक्टर अब्दुलकलाम को ही जाता है।

1982  में DRDO के साथ दोबारा जुड़ कर, कलाम ने कई कामयाब मिसाइलो को बनाने वाले प्रोग्राम की हिकमते अमली बनाई जिससे पृथ्वी और अग्नि मिसाईल स्वदेसी तकनीक से बनी जिसके बाद आलामी दिफाई नख्शे पर हिन्दुस्तान को एक अलग पहचान मिली। यही वह वक्त था कलाम को मिसाइलमैन” का खिताब मिला।

दुनिया को हिन्दुस्तान की एटोमिक ताकत का अहसास दिलाने वाले कलाम 1992 से 1999 तक कलाम वजीरे दिफा के दिफाई मुशीर भी रहे . इस दौरान वाजपेयी सरकार ने पोखरण में दूसरी बार न्यूक्लियर टेस्ट भी किया और हिन्दुस्तान ऐटोमिक हथियार बनाने वाले देशों में शामिल हो गया। दूसरे पोखरण एटोमिक टेस्ट में कलाम ने जो कारहाए नुमाया अंजाम दिया उसने कलाम को कोमी हीरो बना दिया . भले ही आलमी सतह पर भारत के इस कदम को लेकर फिक्र जाहिर की गई पर कलाम का मानना था कि पोखरन न्यूकिलयर टेस्ट मुल्क को अगले 20 सालो मे तरक्की याफता मुल्को की जमात मे खडा करने मे एक कलीदी रोल अदा करेगा।

अपने फन और जिम्मेदारियो से हिन्दुस्तान को तरक्की की राह पर ले जान वाले और हिन्दुस्तानी मिसाइल प्रोग्राम के रूहे रवा एपीजे  अब्दुलकलाम  ने 25जूलाई 2002 को जब मुल्क के 11वें सदरे जमहूरिया के तोर पर हल्फ लिया तो मुल्क के हर साईसदा का सर फख्र से ऊंचा हो गया। मुल्क को मिसाईल ताकत बनाने के बाद कलाम मुल्क के पहले शहरी बने और फिर’ जनता के राष्ट्रपति भी कहलाए। एपीजे अब्दुलकलाम ने मुल्क की नई नस्ल को खवाब देखने और उन्हे पूरा करने की जो तरकीब दी उसी का नतीजा है कि सदरे जमहूरिया के तोर पर उन्हे लाफानी मकबूलियत हासिल हुई। साईस और टेक्नोलोजी के जरिए मुल्क को तरक्की की राह दिखाने वाले कलाम ने बतोर सदरे जम्हूरिया जिस सादगी और ईमानदारी का के साथ जम्हूरियत और इंसानी कद्रो को तकवियत दी वे आज हमारे सियासी रहुनुमा और दिगर ओहदारान के लिए एक मिसाल का जामिन बन चुकी है। कलाम उन राष्ट्रपतियों में थे जिन्हों ने इस ओहदे के नए मायने और अहमियत से हर हिन्दुस्तानी को वाखिफ कराया, पूरी जिंदगी मुल्क व कोम को वकफ करने वाले कलाम काबिलियत और सादगी की एक मसाल तो थे ही साथ ही तरकक्की का जो रास्ता उन्होने दिखाया है वह हमेशा हमारे मुल्क के लिए एक असासे का काम करता रहेगा। सदरे जमहूरिया के ओहदे से सबुकदोश होने के बावाजूद भी कलाम की न मसरूफियात जरा भी कम हुई और नही उनकी मकबूलियत पर जरा भी मनफी असर पडा। शायद यह कहना गलत न होगा की कलाम किस भी ओहदे से बडी शख्सियत का नाम था।

डॉ कलाम देश के ऐसे तीसरे सदरे जम्हूरिया थे जिन्हें सदरे जम्हूरिया बनने से पहले ही भारत रत्न ने नवाजा जा चुका था। सदरे जम्हूरिया के औहदे से सबुकदोश होने के बाद डॉ कलाम दरसोतदरीस, तहरीर, और तहकीकी सरगरमियो से वाबस्ता रहे। कलाम हमेशा से देश के नोजवानो और उन के मुस्तकबिल को बेहतर बनाने के बारे में बातें करते थे। इसी जिमन में उन्होंने मुल्क के नोजवानो के लिए “व्हाटकैन आई गिव’ पहल की शुरुआत भी की जिसका मकसद बद उदवानी का सफाया है।

दरसो तदरीस के फराईज अलावा डॉ कलाम ने कई किताबे भी लिखी । मुल्क और माअशरे के लिए किये गए उनके कामो के लिए, डॉ कलाम को कई इजाजात से नवाजा गया है। लगभग 40 यूनिवर्सीटीस ने उन्हें मानद डॉक्टरेट की डिग्री दी और हकुमते हिन्द ने उन्हें पद्म भूषण, पद्म विभूषण और भारत के सबसे बड़े सिविल अवार्ड ‘भारतरत्न’ से नवाज कर उनकी खिदमात का ऐतराफ किया।

हिन्दुस्तानी मिसाइल प्रोग्राम के रूहे रवा और जनता के राष्ट्रपति के रूप में मकबूल हुए साबिक सदरे जमहूरिया डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम 27 जुलाई 2015 को शिलांग के आई आई एम में एक लेकचर देने के दौरान गिरने के बाद अपने मालिके हकीकी से जा मिले। आखरी साँस तक मुल्क और कोम की खिदमत करने वाले कलाम ने अपनी हयात मे जिन कारनामो को अंजाम दिया है उस की मिसाल वह खुद है। भले ही कलाम जिस्मानी तोर पर हमारे दरमियान मोजूद नही लेकिन जो अजीम विरासत कलाम हमारे लिए छोड कर गए है वह हमेशा बाकी रहेगी और इस अजीम रहनुमा की हम सब को याद दिला ती रहेगी।

मुह़म्मद सालिम, प्रोड्यूसर दूरदर्शन उर्दू 

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