बापू! तुम हर साल अपने जन्म दिन पर बहुत याद आते हो। मगर केवल एक दिन के लिये। बापू!क्या तुम्हें मालूम है कि हिन्दुस्तान का हाल क्या है? वही देस जिसके लिये तुमने न जाने कितने पापड़ बेले थे। अपना ऐश व आराम खोया था, बल्कि अपनी जान तक क़ुर्बान कर दी थी। तुम्हें ज़रूर मालूम होगा, बल्कि हो सकता है तुम देख भी रहे हो। क्योंकि तुम तो आवागमन और पुनर्जन्म में विश्वास रखते थे ना! पता नहीं तुम इस वक़्त किस रूप में हमें देख रहे हो। ख़ैर छोड़ो, मैं तुम्हें बताता हूँ कि जिस देश के लिये तुमने सत्याग्रह किया था उस देश का सत्यानाश हो गया है।
बापू! सबसे बड़ा परिवर्तन तो यह आया है कि तुम्हारे क़ातिल अब और भी ज़्यादा बे-रहम और ज़ालिम हो गए हैं, उन्होंने तुम्हारे चाहने वालों का जीना दूभर कर दिया है। अरे वही गोड्से के चाहने वाले, वही जिन्होंने तुम्हारे क़त्ल पर दिये जलाए थे, मिठाइयाँ बाँटी थीं। तुम्हें मालूम है उसी गोड्से का मन्दिर बन गया है। वही लोग आज सत्ता के मज़े लूट रहें। ज़बान से भले ही तुम्हारा नाम लेते हों। मगर दिल में गोड्से की तस्वीर है। अब तुम ख़ुद ही सोच सकते हो कि तुम्हारे देश का क्या हाल होगा।
बापू! तुम सत्य, अहिंसा और उदारता के प्रचारक थे, तुमने सारी ज़िन्दगी इन पर अमल किया। मगर आज तुम्हारे ग़ैर ही नहीं अपनों ने भी तुम्हारी शिक्षाओं को भुला दिया है। वे तुम्हारे नाम को अपने साथ लगाते ज़रूर हैं मगर धोका देने के लिये। सेक्युलरिज़्म जिसको तुमने इस हाल में भी पसन्द किया जबकि तुम्हारे सामने ही मज़हब के नाम पर अलग देश बन गया था। मगर वही सेक्युलरिज़्म आज हमारे यहाँ वेंटिलेटर पर है।
बापू! तुमने हिन्दू और मुसलमानों को अपनी दो आँखें कहा था ना! बोलो कहा था कि नहीं! मगर अब तुम्हारी एक आँख फोड़ दी गई है। बापू! तुम तो ईश्वर अल्लाह तेरे नाम का जाप करते थे मगर अब अल्लाह और ईश्वर अलग-अलग हो गए हैं। अल्लाह का नाम लेना अब पाप हो गया है। अल्लाह का नाम लेने वालों से ज़बरदस्ती राम कहलवाया जा रहा है। अगर कोई न कहे तो मार दिया जाता है।
बापू! क्या तुम्हें मालूम है अब इन्साफ़ के पैमाने भी बदल गए हैं, अब अदालत के फ़ैसले सुबूत और गवाहों के बजाय आस्था और अक़ीदत के नाम पर दिये जाते हैं, तुम्हारे ज़माने में अँग्रेज़ जज काले और गोरों में भेद करते थे, हमारे ज़माने में कालों की जगह मुसलमानों और दलितों को दे दी गई है। तुम्हारे ज़माने में मालदार लोग इन्साफ़ ख़रीद लेते थे मगर हमारे ज़माने में इन्साफ़ राजा का ग़ुलाम है।
बापू! अभी हाल (30 सितम्बर) ही की बात है बाबरी मस्जिद जिसे छः दिसम्बर 92 को दिन के उजाले में गिरा दिया था। गिरानेवाली एक भीड़ थी, मगर बापू! तुम तो जानते हो भीड़ तो किसी के पीछे होती है। किसी के इशारे पर काम करती है। जैसे तुम्हारे इशारे पर अँग्रेज़ों के ख़िलाफ़ हो गई थी। ऐसे ही छः दिसम्बर को नेताओं के इशारे पर उसने मस्जिद ढा दी थी। बापू! अदालत ने उन सारे नेताओं को बा-इज़्ज़त बरी कर दिया। कह दिया कि कोई सुबूत ही नहीं है। भला कोई बताए कि दिन में सूरज को अपनी मौजूदगी साबित करने के लिये भी क्या सुबूत की ज़रूरत है?
बापू! जबकि उन नेताओं की तो वीडियो, ऑडियो भी हैं। जिसमें वो भीड़ को मस्जिद गिराने पर उकसा रहे हैं और मस्जिद गिरते वक़्त ख़ुशी के फैसलों पर गौड्से की विचारधारा के प्रभाव मालूम पड़ते हैं। बापू! इसलिये उसको वीडियो दिखाई नहीं देती और ऑडियो की आवाज़ सुनाई नहीं पड़ती। इससे पहले बाबरी मस्जिद की जगह मन्दिर को दे दी गई थी, जहाँ राम का भव्य मन्दिर बन रहा है। अब काशी और मथुरा की बारी है।
बापू! लूट,चोरी, डकैती, क़त्ल, ज़िना तो तुम्हारे सामने भी होते थे। मगर कुछ तो शर्म व हया थी। मगर अब तो सब नंगे हो गए हैं।
बापू! अब वो डकैत नहीं हैं जो जंगलों में रहते थे, जो बड़े-बड़े साहूकारों की तिजोरियाँ लूट कर ले जाते थे, अब तो सफ़ेद कपड़े पहने हुए, पढ़े-लिखे, बंगलों में रहने वाले डकैत हैं जो बैंकों में जमा ग़रीबों का धन हड़प कर जाते हैं।
बापू! अँग्रेज़ों ने जो पुल बनाए थे वो आज तक बाक़ी हैं। लेकिन हम जो पुल बना रहे हैं वो तो अपने उदघाटन से पहले ही टूटकर गिर जा रहे हैं, तुम्हारे ज़माने में एक क़त्ल पर इन्सानियत चीख़ उठती थी मगर अब तो रोज़ाना हज़ारों क़त्ल पर भी दुनिया चुप है। अब तो मॉब-लिंचिंग है ।
बापू! तुम शायद इस शब्द को जानते भी न हो। क्योंकि तुम्हारे ज़माने में यह शब्द कहाँ था। जानते हो मॉब-लिंचिंग क्या है बापू! एक भीड़ एक इन्सान को लाठी-डंडों से मार-मारकर जान से मार डालती है। इसलिये कि वह उसकी जाति और धर्म का नहीं है। इसे मॉब-लिंचिंग कहते हैं।
बापू! ज़िना और बलात्कार का मत पूछिये। शैतान भी डरने लगा है कि कहीं उसके साथ ऐसा न हो जाए। अभी कुछ साल पहले दिल्ली में निर्भया के साथ जो हुआ था वह अभी पन्द्रह दिन पहले हाथरस में मनीषा बाल्मीकि के साथ हो गया। इससे पहले कठुआ की आसिफ़ा ने इसी तकलीफ़ में जान गँवाई थी। कल बलरामपुर की एक दलित लड़की को कुछ दरिन्दों ने नोच डाला। निर्भया, आसिफ़ा और मनीषा ही क्या, न जाने कितनी अबलाओं के साथ यह दुष्कर्म रोज़ होता है। कोई मामला बढ़-चढ़ जाता है तो सामने आ जाता है वरना ज़्यादा तर मामले ठण्डे बस्ते में चले जाते हैं।
बापू! तुमने ऊँच-नीच और भेदभाव ख़त्म किया था। लेकिन तुम्हारे बाद हमने दोबारा पैदा कर लिया। ये ऊँची जाति के लोग दलितों के साथ बहुत बुरा सुलूक कर रहे हैं।
बापू! तुम्हें मालूम है, हमारी नई सरकार जो भी क़ानून बनाती है। वो कुछ पूँजीपतियों को फ़ायदा पहुँचाने वाला होता है या देश के रहने वालों के ख़िलाफ़ होता है। जन्नत जैसे कश्मीर के तीन हिस्से कर दिये, NRC के नाम पर देशवासियों को ही बाहरी बताने लगे, किसान बिल के ज़रिए किसानों को कम्पनियों का ग़ुलाम बनाने का प्रोग्राम है। बापू देस का बहुत बुरा हाल है। महँगाई आसमान छू रही है। बेरोज़गारी बढ़ रही है, किसान ख़ुदकुशियाँ कर रहे हैं, औरतें अपनी इज़्ज़त बचाने में नाकाम हैं, धर्म और जाति का भेद पैदा किया जा रहा है, आदमी ही आदमी से डर रहा है। राजा अपनी प्रजा में भेद कर रहा है। धर्म के नाम पर लड़ाया जा रहा है, मुसलमानों को तो देश का दुश्मन साबित करने पर सारा ज़ोर लगाया जा रहा है। इन्साफ़ अन्धा हो गया है। तुम्हारे सत्य, अहिंसा और उदारता को तो कोई पूछने वाला ही नहीं रहा।
बापू ! तुम ये सब जानकार कितने दुखी होगे, अपने संघर्ष और अँग्रेज़ों को भगाकर तुम पछता रहे होगे, पछताओ मत बापू, इस अँधेरी रात का भी एक दिन सवेरा ज़रूर होगा।
रात तो वक़्त की पाबन्द है ढल जाएगी।
देखना ये है चराग़ों का सफ़र कितना है॥
कलीमुल हफ़ीज़, नई दिल्ली