महर्रम कोई पर्व नहीं शोक का महीना है। इस महीने के शोक दिवसों से हमारा शताब्दीयों पुराना संबंध है। विपरीत और घातक परिस्थितीयों में भी हम  अपने अपने सांस्कृतिक रूप में शोक मनाते,अज़ादारी करते रहे हैं,और हम ऐसा क्यों न करते कि हमारी रचना तथा हमारा असतित्व ही शोक और अज़ादारी हेतु है।

करबला से बहुत पहले,रसूल अल्लाह ने अपने नाती इमाम हुसैन के जन्म अवसर पर अपनी इकलौती बेटी और इमाम हुसैन की पवित्र माता सय्यिदा फ़ातिमा को भविष्य में होने वाली इमाम हुसैन की सपरिवार शहादत से अवगत करा दिया था,जिस पर इमाम हुसैन की पवित्र माता सय्यिदा फ़ातिमा ने अपने पिता से पूछा था कि फिर उनके पुत्र का शोक कौन मनायेगा? इस प्रश्न पर उनके पिता मुहम्मद रसूल अल्लाह ने उन्हें सूचित किया था कि अल्लाह इमाम हुसैन और करबला के शहीदों का शोक मनाने हेतु और उनकी अज़ादारी करने के लिए एक समुदाय,एक क़ौम पैदा करेगा। हम शोक मनाने वाले इमाम हुसैन पवित्र माता सय्यिदा फ़ातिमा की मनोकामना हैं,रसूल की सूचना का प्रतिफल हैं और अल्लाह द्वारा इमाम हुसैन के शोक तथा अज़ादारी हेतु रचित एक समुदाय हैं, एक अहिंसावादी क़ौम हैं।

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इमाम हुसैन की अज़ादारी विश्व भर में होती है। भारत में अज़ादारी का शांतिपूर्ण तथा गौरवमयी इतिहास सम्राट काल से लेकर लोकतांत्रिक युग तक फैला हुआ है। ऐसी मान्यता और आस्था है और लोग बताते रहे हैं कि करबला में इमान हुसैन के स्मारक पर नियुक्त सेवक स्वप्न में अवगत हुआ कि मुहर्रम का चाँद निकलते ही इमाम हुसैन भारत की ओर प्रस्थान कर जाते हैं और दस दिन वहीं रहते हैं। पुरानी पुस्तकों के हवाले से करबला कथा वाचक कहते हैं कि करबला में इमाम हुसैन ने यज़ीदी फ़ौज से इच्छा व्यक्त की थी कि उन्हें भारत चला जाने दिया जाये। रसूल अल्लाह का कथन और हदीस है कि भारत से स्वर्ग की सुगंध आती है। निसंदेह भारत में इमाम हुसैन की अज़ादारी को सर्व धर्म समर्थन प्राप्त है और जैसा मुहर्रम यहाँ होता है कहीं और नहीं होता।

इस वर्ष कोरोना वायरस के कारण सब सारा विश्व आहत है। ऐसे में मुहर्रम से ले कर सवा दो महीने तक होने वाले हमारे परम्परागत अज़ादारी कार्यक्रम भी प्रभावित हो रहे हैं। हम जिस प्रकार अज़ादारी करते रहे हैं वैसे इस इस वर्ष न कर के कोविड की स्थापित गाइड लाइन पर करेंगे, मगर करेंगे।

मुहर्रम का चाँद दिखते ही हमारे घरों में शोक ग्रहों की स्थापना हो जाती है। इमाम हुसैन का शोक मनाने के लिए जिन शोक ग्रहों को घरों में स्थापित और सज्जित किया जाता है उसी को अज़ा ख़ाना या इमाम बाड़ा कहा जाता है,यह अज़ा ख़ाने घरों के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर भी होते हैं। इन सभी शोक ग्रहों में प्रतीकात्मक अलम ताज़िया ताबूत आदि स्थापित होतें हैं जिन पर दस दिन तक फूल माला चढ़ाया जाता रहता है और दसवें दिन दस मुहर्रम को शोक ग्रहों में स्थापित यह ताज़िये ताबूत और चढ़ाये जाने वाले फूल प्रतीकात्मक अर्थी के रूप में विश्व भर की विभिन्न स्मारक करबलाओं में दफ़्न हो कर विसर्जित होते हैं। ताज़ियों के जल विसर्जन की भी परम्परा है। हमारे घरों में शोक ग्रह,अज़ा ख़ाने इमाम बाड़े सज चुके हैं, पवित्र प्रतीक स्थापित कर दिये गये हैं,अनुमति अनुसार लोगों के बीच निर्देशित सतर्कता बरतते हुए करबला कथा हो रही है,दस मुहर्रम इमाम हुसैन के शहीदी दिवस पर ताज़ीयों ताबूतों और फूलों के विसर्जन की आवश्यक अनुमति मिलनी चाहिये।

इमाम हुसैन हमारे आदर्श हैं। उन्होंने यज़ीद की क्रूर चरित्रहीन हिंसक पथ-भ्रष्ट और जन विरोधी सत्ता को समर्थन न देकर विरोध करते हुए अपने परिवारजनों समर्थको सहित तीन दिन की भूख और प्यास सहन करते हुए अपने प्राणों की आहुती दी थी। इमाम हुसैन के परिवार और समर्थकों में अरब के अजेय योद्धा थे। वह चाहते वह चाहते तो करबला का युद्ध यज़ीद से जीत सकते थे। मगर वह जानते थे कि उद्देश और विचारधारा की जीत युद्ध की जीत से बड़ी है। युद्ध की जीत इतिहास से अधिक कुछ नहीं रच सकती मगर उद्देश और विचारधारा की जीत द्वारा सदैव मानव का पथ प्रदर्शन तथा भ्रष्टता हिंसा और आतंक का विरोध होता रहेगा। अतः एक आवश्यक सीमा तक युद्ध कर के इमाम हुसैन ने यह संदेश दे दिया कि वह दुर्बल नहीं हैं और फिर युद्ध को स्थगित कर यह बता दिया कि युद्ध जीतना उनका उद्देश नहीं है, वह अपने प्राणों का बलिदान दे कर अपने उद्देश और अपनी विचारधारा को उमरत्व प्रदान करेंगे।

हुसैनीयत एक हिंसा विरोधी और आतंक विरोधी विचारधारा का नाम है। हुसैन का प्रेम एक दैवीय चमतकार है तथा उनका शोक हृदय को इतना कोमल तथा निर्मल कर देता है कि मन किसी प्रकार की हिंसा को स्वीकार ही नहीं करता। चौदह सौ साल से हुसैनीयत मानव हृदय का संगीत और मावनता का गीत है। हुसैन से प्रेम करने,उनका शोक मनाने, हुसैनी विचारधारा का समर्थन करने तथा अन्याय हिंसा और आतंक का विरोध करने में अब तक कितने हुसैनी पड़ोस से लेकर कहाँ कहाँ शहीद हुए यह गिन पाना संभव नहीं मगर विश्व स्तर पर स्पष्ट और सिद्ध है कि हुसैनियत मानवता शांति  सदभावना एंव न्याय की वह अमिट विचारधारा है जिसे मिटाया या रोका ही नहीं जा सकता,यह बात हम भारतीय अधिक अधिकार और आधार के साथ कह सकते हैं।

(लेख – अनवर अब्बास : शायर व लेखक, प्रयागराज)

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