Header advertisement

लेख : एक थी ‘छप्पन छुरी’ : ध्रुव गुप्त

ध्रुव गुप्त

बीसवी सदी के पूर्वार्द्ध ने भारतीय उपशास्त्रीय संगीत का एक स्वर्णकाल देखा था। ठुमरी, दादरा, पूरबी, चैती कजरी जैसी गायन शैलियों के विकास में उस दौर की तवायफ़ों के कोठों का सबसे बड़ा योगदान था। तब वे कोठे देह व्यापार के नहीं, संगीत के केंद्र हुआ करते थे। उन कोठों की कुछ बेहतरीन गायिकाओं में एक थी जानकीबाई ‘छप्पनछुरी’। उनके जीवन के बारे में जो थोड़ा कुछ पता है उसके अनुसार बनारस की उनकी मां मानकी धोखे से इलाहाबाद के एक कोठे के हाथों बिक गई। कालांतर में वह उस कोठे की मालकिन भी बनी। जानकी की संगीत में रूचि देखते हुए मानकी ने उसे संगीत की शिक्षा दिलाने के साथ उर्दू, फ़ारसी, हिंदी, अंग्रेजी भाषाओं की जानकार भी बनाया।

संगीत की समझ और मधुर आवाज़ की वज़ह से जानकी के कोठे को शोहरत मिलने लगी। सांवले रंग और मोटे नाकनक्श की जानकी देखने में कुछ सुन्दर नहीं थी, लेकिन संगीत की प्रतिभा और आवाज़ के जादू ने उनकी इस कमी की भरपाई की। खुद्दार जानकी ने संगीत में अश्लीलता को कभी प्रोत्साहन नहीं दिया। एक बार किसी प्रशंसक की अश्लील फरमाईश पर वे उससे लड़ बैठी। अपराधी किस्म के उस व्यक्ति ने उसके चेहरे पर छुरी से छप्पन बार वार कर उनका चेहरा बिगाड़ दिया। ‘छप्पनछुरी’ का नाम तब से जानकी के साथ हमेशा के लिए जुड़ गया।

इतने जख्म खाकर भी जानकी के दिल से संगीत का जुनून कम नहीं हुआ। वह घूंघट से अपने जख्मों को ढांककर गाती रही। धीरे-धीरे उनका का यश फैला तो उन्हें संगीत-सभाओं और राजाओं, नवाबों, रईसों की महफ़िलों से बुलावा आने लगा। धीरे-धीरे उनकी कला उनके चेहरे पर हावी होती चली गई। संगीत सभाओं में उनपर पैसे बरसते थे। जानकी की लोकप्रियता को भुनाने में ग्रामोफोन कम्पनी ऑफ इंडिया भी पीछे नहीं रहीं। गौहर जान के साथ जानकी देश की पहली गायिका थीं जिनके गीतों के डेढ़ सौ से ज्यादा डिस्क बने। इन गीतों में ठुमरी, दादरा, होरी, चैती, कजरी, भजन और ग़ज़ल सब शामिल थे।

गायन के अलावा जानकी गीत भी लिखती थीं। अपने तमाम गाए गीत उन्होंने ख़ुद लिखे थे। उनके गीतों का एक संग्रह तब ‘दीवान-ए-जानकी’ नाम से छपा था। उनका एक गीत ‘इस नगरी के दस दरवाज़े / ना जाने कौन सी खिड़की खुली थी / सैया निकल गए मैं ना लड़ी थी’ बेहद लोकप्रिय हुआ था। राज कपूर ने अपनी फिल्म ‘सत्यम शिवम् सुन्दरम’ में कुछ फेरबदल के साथ इस गीत का इस्तेमाल किया था। उनके कुछ और प्रसिद्द गीत हैं – राम करे कहीं नैना न उलझे, यार बोली न बोलो चले जाएंगे, नाहीं परत मोहे चैन,प्यारी प्यारी सूरत दिखला जा, एक काफिर पे तबियत आ गई, रूम झूम बदरवा बरसे, मैं भी चलूंगी तोरे साथ, और कान्हा न कर मोसे रार। अपने लिखे गीतों की धुन भी वह ख़ुद बनाती थीं। गायिका के तौर पर तो अद्भुत वह थीं ही।

अपनी तमाम जवानी संगीत को समर्पित करने के बाद बढ़ती उम्र में जानकी ने इलाहाबाद के एक वकील से शादी की लेकिन वह रिश्ता जल्द ही टूट गया। उनके जीवन का शेष भाग सामाजिक कार्यों के लिए समर्पित हो गया।1934 में उनकी मौत हुई। वह समय रसूलन बाई जैसी गायिकाओं के उत्कर्ष और बेगम अख्तर जैसी गायिका के उदय का था। उनकी मृत्यु के साठ साल बाद एच.एम.वी ने 1994 में ‘चेयरमैन्स चॉइस’ श्रृंखला के अंतर्गत उनके कुछ गीतों के ऑडियो ज़ारी किए थे जिन्हें सुनने वाले संगीत प्रेमियों की संख्या आज भी कम नहीं है।

No Comments:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *