नई दिल्ली : ईद उल-फ़ित्र और ईद उल-अज़हा के अलावा भी मुस्लिमों का एक मुख्य त्योहार है जिसे ईद मिलाद उन-नबी कहा जाता है, ये मुसलमानों के लिए एक बेहद खास दिन माना जाता है, पैगंबर हजरत मोहम्मद (SAW) का यौम-ए-पैदाइश (जन्मदिन) दुनियाभर में धूमधाम के साथ मनाया जाता है, इस दिन को ईद मिलाद उन-नबी या ईद-ए-मिलाद या मालविद के नाम से भी जानते हैं इस्लामिक कैलेंडर के तीसरे महीने रबिउलअव्वल की 12 तारीख को मनाए जाने वाले इस त्योहार की अपनी अहमियत है, इस दिन आखिरी नबी और पैगंबर हजरत मोहम्मद (SAW) का जन्म हुआ था, इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग जश्न मनाते हैं मिठाइयां बांटते हैं और जुलूस निकालते हैं.
ईद मिलाद उन-नबी इस्लाम के इतिहास का सबसे अहम दिन माना जाता है, पैगम्बर हजरत मोहम्मद (SAW) का जन्म इस तीसरे महीने के 12वें दिन हुआ था, इस दिन को मनाने की शुरुआत मिस्र से 11वीं सदी में हुई थी, फातिमिद वंश के सुल्तानों ने इस ईद को मनाना शुरू किया, पैगम्बर के इस दुनिया से जाने के चार सदियों बाद इसे त्योहार की तरह मनाया जाने लगा, इस मौके पर लोग रात भर जागते हैं और मस्जिदों में हजरत मोहम्मद (SAW) द्वारा दी गई कुरआन और दीन की तालीम का जिक्र किया जाता है, इस दिन मस्जिदों में तकरीर कर हजरत मोहम्मद (SAW) के बताए गए रास्ते और उनके आदर्शों पर चलने की सलाह दी जाती है.
ईद मिलाद उन-नबी के साथ-साथ इस दिन को बारावफात भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन पैगंबर हजरत मोहम्मद (SAW) के यौम-ए-पैदाइश के साथ वफात भी हुई थी, दुनिया को अलविदा कहने से पहले हजरत मोहम्मद (SAW) बारह दिन तक बीमार रहे थे, 12वें दिन उन्होंने इस दुनिया को जाहिरी तौर पर अलविदा कह दिया था और इत्तेफाक से आप का जन्म भी आज ही के दिन हुआ था, इसलिए इस दिन को बारावफात के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन इस दिन मुसलमान ग़म मनाने की बजाए आज के दिन जश्न मनाते हैं.
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