नोटबंदी के चार साल
चार साल पहले आज ही के दिन नोटबंदी हुई थी। उसी दिन से सत्यानाश की कहानी शुरू हो गई। कई तरह के दावे हुए कि ये ख़त्म हो जाएगा वो ख़त्म हो जाएगा। मूर्खतापूर्ण फ़ैसले को भी सही ठहराया गया। बड़े और कड़े निर्णय लेने की सनक का भारत की अर्थव्यवस्था को बहुत गहरी क़ीमत चुकानी पड़ी है। दशकों की मेहनत एक रात के फ़ैसले से तबाह हो गई। हफ़्तों लोग लाइन में लगे रहे। लोगों के घर में पड़े पैसे बर्बाद हो गए। सबको एक लाइन से काला धन करार दिया गया और काला धन कहीं और के लिए बच गया। उसके लिए बना इलेक्टोरल फंड। जिसमें पैसा देने वाले का नाम गुप्त कर दिया गया। उस वक्त इस फ़ैसले को सबसे बड़ा फ़ैसला बताया गया मगर अपनी मूर्खता की तबाही देख सरकार भी भूल गई। मोदी जी तो नोटबंदी का नाम नहीं लेते है। मिला क्या उस फ़ैसले से ?
मोदी सरकार ने नोटबंदी कर लघु व छोटे उद्योगों की कमर तोड़ दी। हिन्दू मुस्लिम नफ़रत के नशे में लोग नहीं देख सके कि असंगठित क्षेत्र में मामूली कमाने वाले लोगों की कमाई घट गई। उनका संभलना हुआ नहीं कि जीएसटी आई और फिर तालाबंदी। तीन चरणों में अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर देश को बेरोज़गारी की आग में झोंक दिया। लाखों करोड़ों घरों में आज उदासी है। भारत को संभावनाओं का देश बनाने की जगह कपोर-कल्पनाओं का देश बना दिया। युवाओं की एक पूरी पीढ़ी बर्बाद हो गई। उनके सपनों में नफ़रत भर दी गई। बुज़दिल बना दिए गए। उन्हें हर बात में धर्म की आड़ में छिपना बतला दिया। महान बनने की सनक का दूसरा नाम है नोटबंदी।