हफ़ीज़ किदवई
“कुछ लोग” कहने या लिखने में शर्म आती है या सबको लपेट लेना ज़्यादा पसन्द है। हमारी आदत हो गई है, बेहतरीन लोगों से हटकर उनकी तरफ देखने की जो पहले से बदबू मार रहे हैं। फिर हम चीख़ते रहते हैं, देखिये देश कितना बर्बाद हो गया है, यह सारे लोग आज भी हँस रहे हैं ।
राहत इंदौरी का ही नही, कोई भी मरे या जिये, मारे बीच से लोग उन्हें खोजते फिरते हैं, जिन्होंने इनकी मौत की हँसी उड़ाई हो, हम उन्हें नही देखते, जिन्होंने दुःख व्यक्त किया है। फिर एक साथ सबको लपेटते हैं, देखिये देश का स्तर कितना गिर गया है, सब लोग मरने वाले का मज़ाक बना रहे हैं।
पहली बात हर दौर में गन्दे घिनौने लोग रहे हैं। यह लोग सिर्फ “कुछ लोग ” हैं, सभी नही। फिर एक बात मेनहोल का ढक्कन हटायेगा तो गुलाब जल की खुशबू की तमन्ना मूर्खता ही है। वह पहले से गन्दे लोग हैं, उन पर अपना समय ही क्यों खर्च करते हैं।
और हाँ “कुछ लोगों” के चक्कर मे उनको भी नही लपेट लेना चाहिए,जो बेहतर हैं। जब आप कह रहे होते हैं कि देखिये हमारी संस्कृति कितनी गिर गई कि लोग हंस रहे हैं, तब आप उनको नज़रंदाज़ कर रहे होते हैं, जो रो रहे हैं।
महात्मा गाँधी की हत्या पर एक गिरोह ने मिठाई बांटी थी। अम्बेडकर की मृत्यु पर भी एक हिस्सा खुश हुआ था । इसका मतलब यह नही कि सारे लोग बुरे हुए या उनके वक़्त में संस्कृति ढह गई । बल्कि इनको उस बात चार लाइन की जगह भी नही मिली थी । यह उसमे मशहूर होना चाहते थे,जबकि इनकी तरफ मुँह भी न करके हमारे पुरखों ने इन्हें अंधेरी कोठरी में ही पड़े रहने दिया ।
अगर आप इनके लॉफिंग रिएक्शन, स्टेटस,पोस्ट पर ध्यान न दें और उन पर ध्यान दें जो अफसोस कर रहे,तो यह बजबजाते रहेंगे। मगर आपके नजदीक नही आ पाएँगे । हर मौत पर हम यह रोना लेकर बैठ जाते हैं, इससे बचिए। सेप्टिक टैंक में शहद नही होता है, तो काहे का ग़म कि देखो सेप्टिक टैंक बदबू मार रहा। यार वह बदबू मारेगा ही और उसे इत्र के एक फाहे से खुशबूदार भी नही बनाया जा सकता,बेहतर है, ढक्कन रखिये और आगे बढ़िए ।
आख़री बात “कुछ लोग” के चक्कर में सबको कहना बन्द कीजिये । कुछ मुसलमान,कुछ हिन्दू,कुछ ईसाई,कुछ सिख गलत हो सकते हैं मगर सब नही,इसलिए जब भी बात कीजिये तो बड़े हिस्से की ज़्यादा बात कीजिये, क्योंकि हम इंसान हैं, मक्खी नही जो गन्दगी ढूंढ़कर उस पर बैठें।
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