दया सागर

लद्दाख सीमा पर चीनी सेना की जिद और चीन के खिलाफ आम जनता का गुस्सा देखते हुए भारत सरकार ने दबाव बनाने के लिए पहले 59 और अब 47 यानी 106 चीनी एप्स पर प्रतिबंध लगा दिया. ये एप्स मोबाइल फोन के जरिए घर-घर में घुस गए थे. लेकिन ये प्रतिबंध ऊंट के मुंह में जीरे की तरह हैं. पिछले पांच सालों में चीन ने भारत की अर्थव्यवस्था में अपनी जड़ें काफी गहरे नीचे तक जमा ली हैं, जिन्हें भारत के लिए एकदम से बाहर निकाल पाना आसान नहीं. ऐसी ही एक बड़ी चाइनीज टेक कंपनी है-अलीबाबा. इसके अरबी नाम पर मत जाइए. ये चीन की एक बहुत बड़ी कंपनी है. इसका दुनिया का सबसे बड़ा ऑनलाइन बाज़ार है. जहां साठ करोड़ इंटरनेट उपभोक्ता हैं. बाकी आनलाइन कंपनियां फुटकर सामान घर घर पहुंचाती है जबकि अलीबाबा की साइट होलसोल माल कही बिक्री करती है. अगर आप अखबार छापने की करोडों रूपए की मशीन आनलाइन मंगाना चाहते हैं तो अलीबाबा हाजिर है. अलीबाबा दुनिया में अमेज़न और ईबे दोनों को मिला दें तो उससे भी ज्यादा माल ऑनलाइन बेचता है. इस कंपनी का इतिहास पन्द्रह साल से ज्यादा पुराना नहीं है. अलीबाबा के चीनी मालिक का नाम है-जैक मा का. उम्र होगी कोई 55 साल. वह चीन में एक स्कूल मास्टर था. कहते हैं जै‌क एक दफा अमेरिका गया. उसने ऑनलाइन चीनी बियर मंगानी चाही तो पता चला कि अमेरिका में चीनी एक भी बियर ऑनलाइन उपलब्‍ध नहीं. तभी उसे लगा कि ऑनलाइन के धंधे में अभी बहुत संभावनाएं हैं. उसने टीचरी छोड़कर चीन में ऑनलाइन धंधा शुरू कर दिया. तब चीन में तो ऑनलाइन धंधा न के बराबर था. क्योंकि चीनी कंस्टमर, उत्पादन कंपनियों पर भरोसा नहीं करते थे. अलीबाबा भरोसे की डोर बन गया. उसने ऐसा आनलाइन टूल बनाया कि जिससे चीन के लोग सुरक्षित और सस्ती खरीदारी कर सकते थे. अलीबाबा ने दोनों को पेमेंट की सुरक्षा का गारंटी दी. उसने अपनी कंपनी का कोई चीनी नाम नहीं रखा. उसने अरबी नाम रखा अलीबाबा. अलीबाबा असल में ‘अलीबाबा और चालीस चोर’ नाम की मशहूर कहानी का मशहूर किरदार है. यह कहानी अरब की मशहूर किताब वन थॉउजेंट एंड वन नाइट्स’ शनी ‘एक हजार एक रातें’ में संकलित कहानी का हिस्सा है. ‘अलीबाबा डॉट कॉम’ ने अपना नाम यहीं से मिला. अब ये करीब 15 अरब डालर की कंपनी है.     

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चीन ने ऐसी नीतियां बनाई कि बाहरी कंपनियां चीन में अपना कारोबार न फैला सकें. इसलिए चीनी कंपनियों ने खूब पैसा कमाया. जब चीन में संभावनाएं कम हो गईं तो इन कंपनियों ने बांग्लादेश, श्रीलंका, पाकिस्तान, इंडोनेशिया जैसे पडोसी देशों में पांव फैलाने शुरू कर दिए. भारत की मेक इन इंडिया जैसी उदारवादी नीतियों से तो जैसे इनकी लाटरी लग गई. भारत में स्‍टार्ट अप का दौर शुरू हो रहा था. इसमें आप बिजनेस का कोई नया और नायाब ऑनलाइन आइडिया लेकर आइए और पैसा लगाने के लिए अलीबाबा जैसी चीनी कंपनी तैयार बैठी थी.

लेकिन इसी के साथ अलीबाबा बड़ी चालाकी से चुपचाप भारत की मीडिया में दाखिल हो गया.अलीबाबा ने मोबाइल और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर UC Web नाम की एक कंपनी खोली जिसका बाद में नाम बदल कर UC Browser कर दिया गया . कंपनी का शुरूआती निवेश 50 मिलियन डालर था जो तीन साल में बढ़कर 200  मिलियन डालर तक पहुंच गया. UC Browser के इंडिया हैड थे डेमोन शी. वे आमतौर पर चीन में रहते थे और अपना एक चीनी प्रतिनिधि यहां इंडिया में रखते थे. इन्होंने गुरूग्राम में एक दफ्तर खोला जिसमें कुछ पत्रकार, आईटी और एमबीए के लड़के रखे. लेकिन इन छोटे पत्रकारों को आउट सोर्स पर रखा गया. पर इन सबको इनकी हैसियत से कहीं ज्यादा सेलरी दी गई. लेकिन UC Browser की कोर टीम सीधे अलीबाबा के पेरोल पर थी. इन पत्रकारों की सेलरी लाखों में थीं. इन्हें अलीबाबा कंपनी के महंगे शेयर भी दिए गए.  

इन्होंने UC Browser में तमाम भारतीय मीडिया वेबसाइटों से खबरें अपने एप के जरिए मोबाइल फोन पर देनी शुरू कर दीं.  न्यूज सर्विस के लिए UC Browser ने शुरू में मीडिया हाउस को पैसा भी दिया. बाद में उन्हें पैसा देना बंद कर दिया क्योंकि तमाम मीडिया हाउस की खबरों के हिट्स आसमान छूने लगे थे. वेबसाइटस के हिट्स बढ़ रहे थे सो उन्होंने परवाह भी नहीं की और मुफ्त में खबरें देने लगे. यूजर भी खुश था क्योंकि UC Browser के जरिए उसे उसके फोन पर एक जगह सभी वेबसाइटों की पल पल ‌की खबरें मिलना शुरू हो गईं. इस एप को डाउनलोड करते ही मोबाइल फोन यूजर का सारा डाटा चीनी सर्वर पर चला जाता. इसमें उसके रोजमर्रा के बैंक लेनदेन से लेकर उसके पासवर्ड तक का डाटा शामिल होता.

Browser कंपनी कंटेंट जेनेरेश और सर्विस प्रोवाइडिंग के मामले में नंबर-1 बन गई है. इसके भारत में 13 करोड़ से ज्यादा यूजर हो गए. इसी कंपनी के एक पत्रकार ने बाद में UC Browser की “कथित देश विरोधी” कारस्तानियों का खुलासा करते हुए कंपनी पर मुकदमा ठोंक दिया. यह भी कहा गया कि UC Browser का इंडिया हैड डेमोन शी जब भारत आता था, तो वह अपने यहां रहने का गलत पता देता था. वह भारत में महीनों रहा करता था. कहां रहता था क्या करता था, ये किसी को पता नहीं. यही नहीं UC Browser  केवल चुनी हुई खबरें ही प्रसारित करता है. अगर कोई खबर चीन से जुड़ी है तो पेंगिंग से अप्रूवल के बाद ही प्रसारित होगी.

लेकिन इसके पीछे की असली कहानी इससे भी ज्यादा दिलचस्प है. जो देश के तमाम बड़े बड़े कथित राष्ट्रवादी पत्रकारों का असली चेहरा उजागर करती है. वो कहानी अगली कड़ी में.जारी

दया सागर, पूर्व संपादक, हिंदुस्तान टाइम्स, इलाहाबाद

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