समझा है जिस क़द्र हक़ और शहीदाने कर्बला को,
बाबा-ए-कौम तेरी एही अदा दुनिया पे छा गयी।।
महात्मा गाँधी का शुमार बीसवीं सदी के अज़ीम शख़्सियात में किया जाता है। गाँधी की शख़्सियत मुख़्तलिफ़ रंगों की आईना-ए-दार थी। उनकी ज़ात में क़ुदरत ने बैयकवक़त बहुत सी ख़सुसीआत जमा कर दी थीं। वो आलम दीन थे। मुदीर थे और दानिश्वर भी। वो एक सियासत दां भी थे और सहाफ़ी भी।
दिलचस्प बात ये है कि ये कहना मुश्किल है कि इनकी कौन सी ख़ुसूसीयत बाक़ी तमाम ख़सुसीआत पर हावी थीं। वो अपनी ज़ात मैं ख़ुद एक अंजुमन थे, मिल्लत का दर्द उन के सीने में पिनहां था, वो सच्चे मुहब वतन और जद्द-ओ-जहद आज़ादी के अलमबरदार थे।
गाँधी ने सैकूलर हिंदुस्तान की तामीर में अहम किरदार अदा किया है। उन्होंने आज़ादी के हुसूल के लिए क़ौमी यकजहती के उसूल को फ़रोग़ दिया, उन्होंने हिंदू मुसलम इत्तिहाद और मुशतर्का तहज़ीब की हिफ़ाज़त को हमेशा अव्वलीन तर्जीह दी।
मुल्क की आज़ादी के लिए उन्होंने इंडियन ऑपिनियन, यंग इंडिया, नवजीवन और हरिजन अख़बार के ज़रीया अवाम-ओ-ख़वास तक आज़ादी का पैग़ाम पहुंचाया। उनकी तहरीर का जादू ये था कि आज़ादी की तहरीक अवामी तहरीक बन गई और लोग दिल-ओ-जान से इसमें शरीक होने लगे।
उसी बाबा-ए-कौम ने इमाम हुसैन की अज़ीम शहादत को याद कर पूरी दुनिया में अमन-ओ-शांति और भाईचारे का पैग़ाम दिया है। उनका कहना था कि भारत को कामयाब मुल्क़ बनाने के लिए नक्श-ए-हुसैन पर चलना होगा। मेरे पास हुसैन के 72 सिपाहियों की फौज होती तो मैं भारत को 24 घंटे में आज़ाद करा लेता.
(लेख- पटेश्वरी प्रसाद : सदस्य- गांधी जयन्ती समारोह ट्रस्ट व जिलाध्यक्ष पत्रकार एसोसिएशन बाराबंकी)
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