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भारत छोड़ो, अगस्त क्रांति : ख़ुर्शीद अह़मद अंसारी

“…1939 वर्धा गुजरात मे अखिल भारतीय कॉंग्रेस पार्टी ने एक विधेयक पास किया “अगर  ब्रिटिश साम्राज्य युद्ध में हिस्सा इसलिए ले रहा है कि वो दुनिया मे देशों की संप्रभुता और लोकतंत्र को प्रचारित प्रसारिक करते हुए उसको सशक्त करता है तो उसे राष्ट्रों से अपनी उपनिवेशिक साम्राज्यवाद को समाप्त करना होगा और भारत में लोकतंत्र स्थापित करना होगा,और भारतीय नागरिकों के स्व निर्धारण  का अधिकार तुरंत देना होगा। मुक्त लोकतांत्रिक भारत अपने को दूसरे स्वतंत्र देशों से संबंध बनाएगा अपनी संप्रभुता की रक्षा के साथ दूसरे देशों में( ब्रिटिश) साम्राज्यवाद के विरुद्ध भारत उनसे आर्थिक और परस्पर सहयोग की दिशा में आगे बढ़ेगा” हालांकि इस ज्ञापन के।समर्थन में गांधी जी नही थे क्योंकि उनको विश्वास था अहिँसा आंदोलन पर! इस अधिवेशन की परिणति द्वितीय विश्व युध्द के दौरान आठ अगस्त 1942 को एक आंदोलन में परिवर्तित हो गई जिसे “भारत छोड़ो आंदोलन या अगस्त आंदोलन” के नाम से जाना गया.

क्रिप्स मिशन के फ़ेल होने के बाद गांधी जी के नेतृत्व में 8 अगस्त 1942 को बंबई के गोवालिया टैंक मैदान में भारत मे ब्रिटिश साम्राज्य के अंत का आवाहन किया और अंग्रेज़ो भारत छोड़ो की स्पीच में करो या मरो का नारा दिया। हालांकि विश्व युद्ध चल रहा था लेकिन आततायी साम्राज्यवाद सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए कांग्रेस के पूरे नेतृत्व को जेल में डाल दिया।यह भी इतिहास है कि इस स्वतंत्रता आंदोलन के विरोध में मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अलावा उद्योगपतियो और राजशाही राज्यो ने मुखर विरोध किया।और भारत छोड़ो आंदोलन के समर्थन में अगर कोई बाहरी देश खड़ा था तो संयुक्त राज्य अमेरिका।

अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूज़वेल्ट ने तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल पर दबाव बनाया कि भारतीय आंदोलनकारियो के आंशिक ही सही, मांगो को मंज़ूर किया जाना चाहिए। चर्चिल वैसे ही गांधी जी से घोर घृणा करता था इसलिए उसने आंदोलन को बर्बरता पूर्वक दबाया और किसी भी हाल में विश्व युद्ध की समाप्ति से पहले किसी स्वतंत्रता संधि पर आगे बढ़ने साफ़ इनकार कर दिया।

8 अगस्त भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का ऐसा पड़ाव है जिसने देश भर मे  न सिर्फ़ अपना  विस्तार किया बल्कि कई स्थानों पर हिंसक रूप भी धारण करता गया।

अगस्त आंदोलन ज़िंदाबाद, क्विट इंडिया मोमेंट ज़िंदाबाद।

(ख़ुर्शीद अह़मद अंसारी, हमदर्द यूनिवर्सिटी दिल्ली)

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