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रवीश का लेख : क्यों की बीजेपी विधायक ने किसानों को जूते मारने की बात

मुज़फ़्फ़रनगर की महापंचायत में बड़ी संख्या में किसान जमा हो गए। इस महापंचायत के पहले गोदी मीडिया ने मोदी की रैली की तरह दिन रात कवरेज से माहौल नहीं बनाया था। सिर्फ़ एक एलान पर कई हज़ार किसान जमा हो गए।

यह पंचायत पश्चिम यूपी को फिर से ज़िंदा करती है। इसकी ज़मीन को बाँटने के लिए 2014 से पहले दंगों की साज़िश रची कोई। किसान समझ नहीं सके। देखते देखते उनके आपसी रिश्ते टूट गए। किसान इतना कमजोर हो गया कि अब वह नेताओं के हाथ में खेलने लगा। दंगों के दौरान उस पर मुक़दमे हुए सो अलग।

एक मेहनतकश समाज मुक़दमों के चक्कर में फँसा हिन्दू मुस्लिम ज़हर को पीता गया। उसे दिन रात इसी का इंजेक्शन दिया गया। कैराना में पलायन का फ़र्ज़ी भूत खड़ा किया गया। वो कमजोर हो गया।

उसकी कमजोरी को हरियाणा में जाट आरक्षण के समय भयानक दमन से भी जोड़ा जा सकता है। धर्म की राजनीति ने किसानों को बाँट दिया और किसान ख़त्म हो गए।

आज की महापंचायत पश्चिम यूपी में एकता की नई ज़मीन तैयार कर सकती है। अपनी गलती से सबक़ लेकर यह ज़मीन फिर से एक हो सकती है।

फिर से इस इलाक़े के लोग किसान हो सकते हैं ताकि राजनीतिक दल सम्मान से पेश आएँ। धर्म की राजनीति ने उनके पास पहचान की जो सुरक्षा थी, उसे ख़त्म कर दी थी।

बीजेपी के विधायक का किसानों को जूते मारने का बयान शर्मनाक है। कोई चुना हुआ प्रतिनिधि ऐसी भाषा कैसे बोल सकता है? क्या किसानों की ये हालत हो गई है? धर्म की राजनीति से किसानों को ये मिला कि जूते मारने की बात होगी?

राकेश टिकैत का रोना कमजोरी के आंसू नहीं थे। उस भरोसे को टूटने के आंसू थे जिसे लेकर एक किसान समाज में जीता है। जब तक जनता धर्म की राजनीति से अलग नहीं करेगी, राजनीति को धर्म से अलग नहीं करेगी उन्हें लाख कोशिश कर लें हिन्दू मुस्लिम राजनीति की चपेट में आ जाएगी।

किसानों को पहचान चाहिए तो जनता बनना होगा । अगर वे धर्म के नाम पर चल रही अधर्म की राजनीति का मोहरा बनेंगे तो ऐसे तमाम शक्तिप्रदर्शन के बाद भी ख़त्म कर दिए जाएंगे।

(लेखक जाने माने पत्रकार हैं, यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है)

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