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मुस्लिम लड़की अनीसा खेत में काम करते तथा बकरियाँ चराते हुये बन गयी क्रिकेटर

मुस्लिम लड़की अनीसा खेत में काम करते तथा बकरियाँ चराते हुये बन गयी क्रिकेटर

राजस्थान
राजस्थान के बाड़मेर की मुस्लिम लड़की ने वह कारनामा कर दिखाया है,जो अब से पहले राज्य की किसी मुस्लिम लड़की ने नही किया था। खेतों में काम करने वाली तथा बकरियाँ चराने वाले मुस्लिम लड़की अनीसा राजस्थान की पहली ऐसी मुस्लिम हैं जो महिला क्रिकेट में राज्य स्तर तक पहुँची हैं। शुरू में अनीसा को खेलने से रोकने वाले अनीसा के परिजनों को भी आज अनीसा की सफलता पर गर्व है।
कानासर की रहने वाली अनीसा सुबह स्कूल जाती और दोपहर में घर लौटकर बकरियाँ चराती थी। इसके अलावा दूसरी लड़कियों की तरह घर के काम में मां का हाथ भी बंटाना पड़ता था। लगभग चार वर्ष पूर्व टीवी पर क्रिकेट मैच देखते हुये अनीसा के मन में भी क्रिकेट खेलने की इच्छा हुई। आठवीं की पढ़ाई के दौरान खेतों में खेलना शुरू किया। साथ में खेलने के लिए कोई लड़की तैयार नहीं हुई तो अपने भाइयों व गांव के बच्चों के साथ खेलना जारी रखा। अपनी दिनचर्या में से समय निकालकर गांव की पगडंडियों पर बच्चों के साथ क्रिकेट खेलना अनीसा का शौक बन गया। अनीसा ने चार साल तक क्रिकेट का अभ्यास जारी रखा। अनीसा पढ़ाई के साथ क्रिकेट में भी गहरी रूचि रखने लगी थी। वह स्कूल से आते ही बैट लेकर खेतों में पहुंच जाती और परिवार के बच्चों के साथ खेलती रहती। आठवीं में पढ़ते हुए खेलना शुरू किया और बारहवीं में पढ़ते हुये अपनी लगन व मेहनत के बल पर अनीसा ने राजस्थान चैलेंजर क्रिकेट ट्रॉफी अंडर-19 में चयन का करिश्मा कर दिखाया। अनीसा अल्पसंख्यक समुदाय की पहली बेटी है जिसका क्रिकेट में राज्य स्तरीय टीम में चयन हुआ है। शिव तहसील के कानासर गांव की बेटी अनीसा बानो मेहर बताती हैं कि पढ़ाई के दौरान टीवी पर क्रिकेट मैच देखा तो मेरे मन में खेलने की इच्छा हुई। विपरित परिस्थितियों में खुद पर रखा भरोसा ही ताकत बना। लगातार अभ्यास के कारण राजस्थान क्रिकेट टीम में चयन होना किसी बड़े सपने से कम नहीं है। बेटियां में प्रतिभाएं खूब हैं, बस जरूरत उन्हें तलाशने की है।


कभी अनीसा को क्रिकेट खेलने से रोकने वाले अनीसा के पिता याकूब खां बताते हैं कि कानासर की सरकारी स्कूल में आठवीं की पढ़ाई के दौरान अनीसा ने क्रिकेट खेलना शुरू किया। स्कूल से आते ही वह बच्चों के साथ खेत में बेट लेकर खेलने पहुंच जाती थी। मैंने उसे कई बार समझाया कि बेटी पढ़ाई करो क्रिकेट में कुछ भी नहीं है। यहां खेल मैदान है न सुविधाएं। क्यों अपना समय बर्बाद कर रही हो। गांव के लोग भी ताने मार रहे हैं कि बेटी को बच्चों के साथ क्यों क्रिकेट खेला रहे हों। लेकिन वह क्रिकेट छोड़ने को तैयार नहीं थी। रोजाना खेलना उसकी आदत में शुमार हो गया। परिवार के बच्चों के साथ खेलना जारी रखा। उसकी मेहनत व जुनून की वजह से राजस्थान चैलेंजर क्रिकेट ट्रॉफी अंडर-19 में चयन होना किसी सपने से कम नहीं है।
अनीसा के भाई रोशन खां बताते हैं कि अल्पसंख्यक समुदाय में बेटियों की पढ़ाई का माहौल नहीं है। खेल से तो कोई वास्ता ही नहीं है। इसके बावजूद अनीसा ने क्रिकेट में कैरियर बनाने की ठान ली। शुरुआत में उसके पास क्रिकेट खेलने के लिए बैट था न किट। मैदान के अभाव में खेतों में ही खेलना शुरू किया। विकट हालातों के बावजूद हिम्मत नहीं हारी और संघर्ष जारी रखा।

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