शमशाद रज़ा अंसारी

कोरोना से स्वस्थ होकर लौटे उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य राज्यमंत्री द्वारा अपने अनुभव साझा करने के लिए अपने निवास स्थान कविनगर ग़ाज़ियाबाद पर आयोजित की गयी पत्रकार वार्ता में उन्हें उस समय अप्रिय स्थिति का सामना करना पड़ गया जब प्रेसवार्ता में उपस्थित एक पत्रकार ने स्वास्थ्य राज्यमंत्री से प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराने को लेकर सवाल पूछ लिया। हालांकि बाद में अतुल गर्ग ने अपने व्यवहार पर खेद भी प्रकट किया।

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दरअसल 18 अगस्त को उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य राज्यमंत्री अतुल गर्ग की कोरोना पॉज़िटिव रिपोर्ट आने पर उन्हें कौशाम्बी स्थित यशोदा अस्पताल में भर्ती कराया गया था। अस्पताल से 29 अगस्त को डिस्चार्ज होने के बाद से अतुल गर्ग अपने फार्म हाउस में आइसोलेट थे। कोरोना के अपने अनुभव को साझा करने के लिए अतुल गर्ग ने अपने निवास स्थान पर मंगलवार को प्रेसवार्ता का आयोजन किया। प्रेसवार्ता में सब कुछ ठीक चल रहा था कि तभी एक पत्रकार ने अतुल गर्ग से सरकारी अस्पताल में इलाज न करवा कर प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराने का कारण पूछ लिया। यह सवाल सुनते ही स्वास्थ्य राज्यमंत्री का मिज़ाज बिगड़ गया। पत्रकार के उचित प्रश्न पर अनुचित प्रतिक्रिया देते हुये उन्होंने कहा कि इस तरह के सवाल न पूछें। प्राइवेट अस्पताल में इलाज करवाने को लेकर सफाई देते हुये अतुल गर्ग ने कहा कि “मैं सम्पन्न परिवार से हूँ, मेरे परिवार का बचपन से ही प्राइवेट अस्पताल में इलाज होता है। यदि मैं स्वास्थ्य राज्यमंत्री होकर सरकारी अस्पताल में इलाज कराता तो यह ड्रामा लगता। इसलिये मैंने प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराया। इसके अलावा मेरे सरकारी अस्पताल इलाज कराने पर अन्य मरीजों के इलाज में विघ्न उत्प्नन होता”।

अपनी सफाई देते समय स्वास्थ्य राज्यमंत्री यह भूल गये कि वर्तमान में वह सम्पन्न परिवार से होने के अलावा जनप्रतिनिधि एवं स्वाथ्य राज्यमंत्री भी हैं। विडम्बना यह है कि जो नेता चुनाव के समय ग़रीब के घर खाना खाने में भी संकोच नही करते  चुनाव जीतने के बाद वही नेता सरकारी अस्पताल में इलाज करवाने में अपना स्टेट्स देखते हैं। जिन नेताओं को चुनाव के समय ग़रीब के घर खाना पीना ड्रामा नही लगता उन्हें सरकारी अस्पताल में इलाज करवाना ड्रामा लगता है।

जबकि देखा जाए तो यदि इस समय अतुल गर्ग सरकारी अस्पताल में अपना इलाज कराते तो आमजन में यह सन्देश जाता कि दिल्ली के सरकारी अस्पतालों की तरह उत्तर प्रदेश के सरकारी अस्पताल की सुविधाओं में कोई कमी नही है। ज्ञात हो कि बड़े नेताओं के अलावा देश के प्रधानमन्त्री भी दिल्ली के सरकारी अस्पताल एम्स में इलाज कराने जाते हैं। लेकिन शायद स्वास्थ्य राज्यमंत्री प्रदेश के सरकारी अस्पतालों की स्थिति से भलीभांति परिचित थे। इसलिये इन्होंने सरकारी अस्पताल जाना मुनासिब नही समझा।

पत्रकार के सवाल पर भड़कने के बाद उत्प्नन हुई स्थिति को देख कर अतुल गर्ग को अपनी ग़लती का अहसास हुआ। जिसके बाद अतुल गर्ग ने अपने व्यवहार पर खेद जताया। अपने कोरोना के अनुभव के बारे में बताते हुये अतुल गर्ग ने बताया कि जब उन्हें कोरोना के लक्षण महसूस हुये तो उन्होंने चेकअप कराया।जिसकी रिपोर्ट पॉज़िटिव आई। रिपोर्ट पॉज़िटिव आने के बाद मैंने मुख्यंमत्री को सूचना देते हुये बताया कि मैं होम कोरन्टाइन होना चाहता हूँ। मुख्यमंत्री ने अपनापन एवं नियमों का हवाला देते हुये कहा कि साठ से अधिक आयु के व्यक्ति को होम कोरन्टाइन नही कर सकते। इसलिये आपको अस्पताल में भर्ती होना चाहिए। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद मैं अस्पताल में भर्ती हुआ।

स्वास्थ्य राज्यमंत्री अतुल गर्ग ने बताया कि कोरोना से डरने की नहीं बल्कि सावधान रहने की जरूरत है। यदि कोई व्यक्ति कोरोना संक्रमित पाया जाता है या फिर उसे कोरोना के लक्षण दिखाई देते हैं तो उसे अपना टेस्ट करवा कर समय से इलाज करा लेना चाहिए। जल्द इलाज मिलने से कोरोना के खतरे से निपटा जा सकता है। अंत में अतुल गर्ग ने कहा कि मेरी सबसे अपील है कि अपनी सेहत का ख़्याल रखें। कोरोना जैसी गम्भीर बीमारी का बचाव ही सबसे बेहतर इलाज है।

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