तानाशाह सिस्टम की भेंट चढ़ा हर्षित, बीमार पत्नी एवम पुत्र की देखभाल के लिए सिपाही को नहीं मिली छुट्टी

(शमशाद रज़ा अंसारी)
इटावा। कहते हैं कि पिता के कन्धों पर सबसे बड़ा बोझ उसकी संतान की अर्थी का होता है। संतान के लिए दुखों का पहाड़ भी हँसकर उठा लेने वाला पिता नहीं चाहता कि उसकी संतान की अर्थी उसके कंधों पर जाए। पिता से अलग यह दृश्य देखने वालों के लिए भी पीड़ादायक होता है। ऐसा ही एक दृश्य जनपद इटावा में देखने को मिला, जिसके पीछे की वजह पता चलने पर हर कोई तानाशाही का रूप ले चुके उस सिस्टम को कोसने लगा,जिसमें विशेष परिस्थिति में छुट्टी मांगने पर भी सिपाही को छुट्टी नहीं मिली और सिपाही का पुत्र इस सिस्टम की भेंट चढ़ गया। पुत्र की मौत के बाद सिपाही पुत्र को लेकर एसएसपी कार्यालय जाकर धरने पर बैठ गया। इस दौरान उसने अधिकारियों के सामने ऐसे सवाल रख दिए, जिनका उनके पास कोई जवाब नहीं था। मौके पर उच्चाधिकारियों ने सिपाही को समझा-बुझाकर वापस घर भेज दिया।


पूरा मामला इटावा की फ्रेंड्स कॉलोनी थाना क्षेत्र की एकता कॉलोनी का है। मूल रूप से मथुरा का रहने वाला सिपाही सोनू चौधरी पुलिस लाइन में तैनात था। एकता कॉलोनी में वह किराए पर रह रहा था। सोनू 7 जनवरी से छुट्टी मांग रहा था। लेकिन अधिकारी उसको छुट्टी नहीं दे रहे थे।
दरअसल उसकी पत्नी कविता करीब 15 दिनों से बीमार चल थी। सिपाही का कहना है कि उसकी पत्नी कविता के तीन ऑपरेशन हुए हैं। वह कविता और अपने 2 साल के बेटे हर्षित की देखभाल के लिए छुट्टी मांग रहा था।
सिपाही का बेटा हर्षित बुधवार सुबह अचानक गायब हो गया। पड़ोसियों ने जब हर्षित की खोजबीन की तो वह घर के बगल में पानी भरे गड्ढे में मिला। आनन-फानन में उसे जिला अस्पताल ले जाया गया। जहाँ डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया। इसके बाद सोनू शव को लेकर एसएसपी कार्यालय पहुँच गया और धरने पर बैठ गया। उसने विभाग के अधिकारियों पर आरोप लगाते हुए कहा कि अगर उसे छुट्टी मिल जाती, तो यह हादसा नहीं होता। उसने कहा ऐसी नौकरी करके अब मैं क्या करूंगा? जब मेरे परिवार में कोई बचा ही नहीं है।’ मौके पर पहुंचे एसपी सिटी और सीओ सिटी ने सिपाही को समझा-बुझा कर घर भेज दिया। मासूम की मौत से परिवार के लोग सदमे में हैं।
मामले में एसपी सिटी कपिल देव ने कहा कि सिपाही के बेटे की मौत बुधवार सुबह हुई है। उस समय सिपाही अपने घर पर ही था। सिपाही के आरोपों की हम लोग जांच कर रहे हैं। छुट्टी न देने का कारण भी पता करने की कोशिश करेंगे। जो भी साक्ष्य सामने आएंगे, उसके आधार पर फैसला लिया जाएगा।
बहरहाल क्या जाँच होगी और क्या रिपोर्ट आएगी,यह तो भविष्य के गर्भ में छुपा है। लेकिन इस समय जब चुनाव भी टल गए हैं और प्रदेश में कोई विषम परिस्थितयां भी नहीं हैं, ऐसे में सिपाही को अपनी अपनी बीमार पत्नी एवम पुत्र की देखभाल के लिए छुट्टी न मिलना सिस्टम पर सवाल खड़े कर रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि मानवीय संवेदनाओं की जगह तानाशाही ने ले ली है।
वहीं पुलिस से जुड़े लोगों का कहना है कि छुट्टी के लिए मानसिक तौर पर प्रताड़ित करना अधिकारियों का रिवाज बन गया है। यहाँ तक कि विशेष परिस्थितियों में भी छुट्टी के लिए अधिकारियों के चक्कर काटने पड़ते हैं। कुछ कहने पर अनुशानहीनता की कार्यवाही का डर दिखाकर चुप करा दिया जाता है।

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