आर्थोस्कोपी: जोड़ों के चोट के लिए काफी कारगर

नोएडा। सदियों में जोड़ों का दर्द अधिक सताता है, क्योंकि इन दिनों लोग आराम अधिक करते हैं और शारीरिक सक्रियता कम हो जाती है। दिन छोटे और रातें बड़ी होने से जीवनशैली बदल जाती है, खान पान की आदतें भी बदल जाती हैं। लोग व्यायाम करने से कतराते हैं, जिससे यह समस्या और गंभीर हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक हालिया अध्ययन के मुताबिक 30 साल से अधिक उम्र की तकरीबन 20 फीसदी शहरी आबादी किसी न किसी जोड़ के दर्द से पीडित है। दर्द निवारक दवाइयों से इसे दबाने पर पेट में अल्सर, शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा में बढ़ोतरी, गुर्दे व लीवर खराब हो सकते है। आज नये अविष्कृत अनूठे यंत्र आर्थोस्कोपी से जोड़ के दर्द के कारण की जांच और इलाज दोनों एक साथ हो सकते हैं।

दोष पूर्ण जीवन शैली और बैठने के गलत तरीके के कारण गठिया समेत घुटने, कमर व कंधे जैसे तमाम जोड़ों के दर्द के मरीज़ों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। लोग तत्काल उपाय की सोचते हैं और दर्द निवारक इवाईयों का सेवन करने लगते हैं। यही कारण है कि टेलीविजन, पत्र-पत्रिकाओं में दर्द निवारक दवाइयों के विज्ञापनों की भरमार है। विज्ञापन आक्रामक और विश्वसनीय प्रतीत होते हैं फलतः लोग अभ्यस्त हो जाते हैं। इसके अत्यधिक सेवन से दवा का प्रभाव समाप्त हो जाता है। साथ ही शरीर में एसिडिटी की मात्रा बढ़ जाने से पेट में गैस विकार ओर अत्सर हो सकते हैं।

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आमतौर पर कोई भी इस रोग का शिकार हो सकता है। लेकिन ऑस्टियों व इयूमेटाइड आर्थराइटिस के मरीज, अस्थि संबंधी हार्मोन विकृति वाले, दुर्घटना के शिकार लोग, मोटापा ग्रस्त, आरामपरस्त, कंप्यूटर ऑपरेटर, दुपहिया चालक, खिलाड़ी, टाइप-ए व्यक्तित्व के लोग, क्लर्क दुकानदार, घरेलू एवं अनियमित महावारी की शिकार महिलाएं और बहुमंजिली इमारतों के वाशिंदे खासतौर पर युवावस्था से ही किसी न किसी जोड़ के दर्द से पीड़ित हो जाते हैं।

यह शरीर की सभी एच्छिक क्रियाओं के संचालन में जोड़ संतुलन प्रदान करता है। जोड़ की बनावट में तीन चीजें-क्रुशिएट लिगामेंट जोड़ को स्थायित्व प्रदान करता है। यह दो प्रकार का होता है- अग्र (इंटेरियर) और पश्च (पोस्टेरियर). अस्थि खंड के छोर पर चिकनी परत होती है। इसे कार्टिलेज कहते हैं। यह जोड़ में फिसलन पैदा करती है। मेनिसकस जोड़ में शांक आब्जार्बर का काम करता है।

अधिकांश मामले में जोड़ के दर्द के सटीक कारण का पता नहीं चलता है। मरीज कई चिकित्सकों से दिखा चुके हैं और दर्द निवारक दवा आजमा रहे होते हैं परंतु दर्द ज्यों का त्यों रहता है। वास्तव में होता यह है कि क्रुशिएट लिंगामेंटस, कार्टिलेज या मोनिसकस के क्षतिग्रस्त होने पर, मामूली फेक्सर होने पर, संक्रमण होने पर, जोड़ के अंदर की लाइनिंग या पट्टड्ढी (साइनोबियम) बिगड़ जाने पर वहां एक्सरे पर कुछ दिखता ही नहीं हैं। इस कारण चिकित्सकों को भी दर्द के कारण का पता नहीं चलता है।

चाहे दर्द का कारण जो भी हो उससे स्थायी तौर पर छुटकारा पाने के लिए आर्थोस्कोपी एकमात्र कारगर उपाय है। आर्थोस्कोपी फाइबर ऑस्टिक क्रांति का कमाल है। जापान में इसका पहला प्रयोग घुटने में टीबी के इलाज में हुआ। आर्थोस्कोपी एक यंत्र समूह है. इसमें चार मिलीमीटर छोटा एक खास यंत्र होता है। जांच व इलाज के वक्त यंत्र के एक सिरे को जोड़ के अंदर डाला जाता है। दूसरा सिरा तीन भागों में बंटा होता है। एक भाग प्रकाश स्रोत का होता है। दूसरे भाग को साफ करने के लिए इसका प्रयोग होता है। तीसरा भाग कैमरे और कंप्यूटर से जुड़ा होता है। कैमरा जोड़ के अंदर की तस्वीर को कंप्यूटर स्क्रीन पर उतरता है। यह तस्वीर कई गुना अधिक आवर्धित होती है। शल्य चिकित्सक कारण का पता लगा लेते हैं। उसी दौरान कु्रशिएट, मेनिसकस या कार्टिलेज की मरम्मत करना हो और जोड़ की खराब लाइनिंग (साइनोबियम) को या कटे-फटे माँस के टुकड़े को बाहर निकालना हो, जोड़ के अंदर इंफेक्शन, टीबी या ट्यूमर ठीक करना हो या जोड़ के अंदर पानी भरे होने पर ऊतक जांच (बायोप्सी) के लिए नमूना लेना हो, सभी प्रकार की शल्य क्रिया ऑथ्रोस्कोपी की मदद से बड़ी आसानी से की जा सकती है।

आर्थराइटिस के मरीजों के लिए आर्थेस्कोपी वरदान साबित हो रहा है। उम्र बढ़ने के साथ अब कार्टिलेज का घिसना शुरू होता है और जोड़ में घर्षण होने लगता है तो आर्थोस्कोपी से जोड़ के अंदर कार्टिलेज को पुनरू चिकता (स्मूथ) बनाया जा सकता है। इससे आर्थराइटिस का विकास रूक जाता है। कभी-कभी 40 साल के युवा में आर्थराइटिस काफी बढ़ जाने से जोड़ के अंदर कार्टिलेज के छोटे-छोटे टुकड़े पड़े होते हैं। ऐसे मरीज में उम्र कम होने की वजह से कृत्रिम जोड़ लगाना उचित नहीं होता है। उनके लिए आर्थोस्कोपी का सहारा लिया जाता है।

डॉ. अमित नाथ मिश्रा, डायरेक्टर और एचओडी- आर्थोपेडिक्स एंड जॉइंट रिप्लेसमेंट, यथार्थ सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, ग्रेटर नोएडा

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