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सुभाष जंयती पर ओवैसी को नेता जी के साथ आई आबिद हसन सफ़रानी की भी याद, जानें कौन थे सफ़रानी

नई दिल्लीः नेता जी के नाम से मशहूर महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस की आज जयंती है. उनकी जयंती पर जहां पूरा देश उन्हें याद कर रहा है, वहीं एक नाम ऐसा भी है जिन्हें बहुत कम याद किया जाता है. यह नाम है नेता जी के साथी आबिद हसन सफरानी का, नेता जी की जयंती के मौक़े पर ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलेमीन के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने सफरानी को भी याद किया है.

ओवैसी ने सोशल मीडिया पर टिप्पणी करते हुए लिखा कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती पर उन्हें शत् शत् नमन . मैं दुआ करता हूं कि नेताजी का साहस और देश को दिये गये योगदान को हमारे द्वारा जीवित रखा जाए. तस्वीर में उनके बगल में हैदराबाद का बेटा आबिद हसन सफरानी हैं और ये वही शख्स जिन्होंने ‘जय हिंद’ का नारा दिया था!’ आबिद हसन सफरानी भी नेताजी के साथ 1943 में पनडुब्बी में सवार होकर जर्मनी से जापान तक गए थे.

कौन थे आबिद हसन सफ़रानी

आबिद हसन हैदराबाद के ऐसे परिवार में बड़े हुए जो उपनिवेशवाद का विरोधी था. किशोरावस्था में ही ये महात्मा गाँधी के अनुयायी बन गए और इन्होंने साबरमती आश्रम में कुछ समय बिताया. आगे चल कर जब इनके सारे साथी इंग्लैंड के विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने चले गए, तब आबिद ने इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के लिए जर्मनी जाने का फैसला किया. यहीं 1941 में पहली बार इनकी मुलाक़ात नेताजी से भारतीय युद्ध कैदियों से मिलने के दौरान हुई.

इस करिश्माई नेता से प्रेरित हो आबिद ने पढ़ाई छोड़ने का फैसला किया. इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर आबिद नेताजी के निजी सचिव और इनके जर्मनी में ठहरने के दौरान उनके दुभाषिया बन गए. इसके बाद ही, आईएनए के प्रशिक्षण के दौरान नेताजी ने अपने करीबी सहयोगियों से एक ऐसे अभिवादन को लेकर बात की जो जाति-धर्म के बंधन से परे हो और सेना में एकीकरण को प्रोत्साहित करे. ये आबिद ही थे जिन्होंने तब छोटा, लेकिन प्रभावशाली संबोधन ‘जय हिन्द’ अपनाने का सुझाव दिया, जिसे तुरंत ही नेताजी की स्वीकृति मिल गयी.

आज़ादी के बाद कुछ दिनों के लिए ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में रहे, पर जल्द ही इस संगठन को छोड़, हैदराबाद में बस गए. स्वतन्त्रता के बाद ये भारतीय विदेश सेवा मे शामिल हो गए. एक राजनयिक के रूप में लंबे और शानदार करियर के बाद आबिद 1969 में डेनमार्क में राजदूत के रूप में रिटायर हुए और हैदराबाद वापस आ गए. इन्होंने कई देशों में भारतीय राजदूत के रूप में काम किया. इनका निधन 1984 में 73 वर्ष की उम्र में हुआ. कम ही लोग जानते होंगे कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के भतीजे अरबिंदो बोस ने आगे चलकर आबिद हसन की भतीजी सुरैया हसन से विवाह किया!

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