(शमशाद रज़ा अंसारी)
ग़ाज़ियाबाद। अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा शुक्रवार को गाज़ियाबाद पहुंची। जहाँ उन्होंने शहर विधानसभा-56 से प्रत्याशी सुशांत गोयल के लिए विजयनगर क्षेत्र के बागू इलाके से तिगरी गोल चक्कर तक चुनाव प्रचार किया। चुनाव प्रचार के दौरान विभिन्न स्थानों पर समर्थकों ने प्रियंका गांधी का पुष्प वर्षा कर स्वागत किया।
इस दौरान प्रियंका गांधी ने सुशांत गोयल के लिए डोर टू डोर चुनाव प्रचार किया। प्रियंका गाँधी लगातार भाजपा पर शब्दों के बाण चलाती रहीं।
प्रियंका ने कहा कि एक फरवरी को केंद्र सरकार ने जो बजट पेश किया, उसमें छोटे दुकानदारों-व्यापारियों के लिए कोई राहत नहीं है। सिर्फ बड़े उद्योगपतियों और अपने चंद मित्रों को आगे बढ़ाने की बात की है।
दुकानदारों से बात करने के बाद उन्होंने कहा कि दुकानदार बता रहे हैं कि लॉकडाउन से बिजनेस चौपट हुआ तो फिर पटरी पर नहीं आ पाया। हर दुकानदार, छोटे बिजनेस करने वालों की यही समस्या है। यहाँ तक तो सब सही चल रहा था। लेकिन जब दूसरी पार्टी की कमियाँ गिनाने के बाद अपने उम्मीदवार की खूबियाँ बताने की बात आई तो प्रियंका गांधी शब्दहीन हो गईं। जिस प्रियंका के परदादा, दादी और पिता प्रधानमन्त्री रहे, इसके बावजूद उसने सड़क पर उतरकर विपक्ष से टक्कर ली। जिस प्रियंका ने उनकी शोहरत के नाम पर ज़िन्दगी गुज़ारने और अपनी दादी-पिता की हत्या को भुनाने की बजाय जनता के बीच जाकर काम किया, उस प्रियंका को जीवन के 48 वर्ष पूरे कर चुके अपने उम्मीदवार की ख़ूबियों की जगह उसके स्वर्गीय पिता की खूबियाँ बतानी पड़ीं। प्रियंका गांधी ने सुशांत गोयल की एकमात्र ख़ूबी बताते हुए कहा कि सुशांत गोयल के पिता स्वर्गीय सुरेन्द्र प्रकाश गोयल गाजियाबाद के विधायक और सांसद रहे थे। हर बार शहर के विकास को सामने रखकर ही वे चुनाव में उतरे और जीत हासिल की। गाजियाबाद शहर जानता है कि स्वर्गीय सुरेन्द्र प्रकाश गोयल जनसेवा के लिए ही जाने जाते थे। सुशांत गोयल उनके जनसेवा के इसी कार्य को आगे बढ़ाने राजनीति में आए हैं।
गनीमत यह रही कि किसी ने प्रियंका गांधी से पलटकर यह सवाल नही किया कि जिस प्रत्याशी के लिए वह वोट माँगने आई हैं, उस प्रत्याशी का अपना वजूद क्या है। जब लॉकडाउन में जनता परेशान थी, प्रवासी मजदूर घरों को लौट रहे थे, लोगों के घरों में राशन नही था, स्वर्गीय सुरेन्द्र गोयल के जनसेवा के कार्य को आगे बढ़ाने आये सुरेन्द्र गोयल उस समय कहाँ थे। जब पार्टी के कार्यकर्ता महंगाई का विरोध करते हुए सड़क पर पिट रहे थे, जेल जा रहे थे। पुलिस के मुकदमों को झेल रहे थे। तब विधानसभा-56 के यह उम्मीदवार कहाँ थे। इन्होंने कितनी पुलिस की लाठियाँ खाईं और कितने इन पर मुकदमे हुए। प्रियंका जनता को यह भी नही बता सकीं कि जिसके लिए वह वोट माँगने के लिए दर-दर जा रही हैं, उसने जनता के लिए क्या किया है।
सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव के पिता मुख्यमंत्री रहे, लेकिन अखिलेश यादव ने वोट माँगी तो अपने नाम पर माँगी। अखिलेश यादव ने सड़क पर लाठियाँ तक खाईं। कभी अपने पिता के नाम के सहारे एसी कमरे में बैठकर राजनीति नही की।
प्रियंका गांधी की ही बात करें तो पंडित जवाहरलाल नेहरू की परपोती, इंदिरा गांधी की पोती एवं राजीव गांधी की पुत्री होने के बाद भी सड़क पर पुलिस की लाठी का सामना किया। यूपी के हाथरस में दलित युवती के साथ हुई दरिंदगी के मामले में पीड़ित परिवार से मिलने जा रहीं प्रियंका की गाड़ी ठीक डीएनडी टोल के बैरियर पर थी। वहां पर कुछ कार्यकर्ताओं ने अपने नेताओं के साथ जाने की कोशिश की। इसके बाद पुलिस ने कार्यकर्ताओं पर लाठी चार्ज किया। इसे देखकर प्रियंका गांधी वाड्रा गाड़ी से उतरीं और उन्होंने तुरंत कांग्रेस नेता को पुलिस की लाठियों से बचाया। इस बीच उन्होंने एक लाठी को भी पकड़ लिया।
पार्टी के लिए समर्पित ऐसी नेता जिसने नारा दिया है, लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ, उसे ऐसे व्यक्ति के लिए चुनाव प्रचार करना पड़ रहा है, जो लड़का होकर भी विपक्ष से नही लड़ सका। शायद सुशांत को यह उम्मीद रही होगी कि पिता के नाम के सहारे ही उनकी राजनीति चमक जाएगी। लेकिन वो यह भूल गये कि जब देश के प्रधानमन्त्री एवं प्रदेश के मुख्यमंत्री की औलादों को सड़क पर उतरकर संघर्ष करना पड़ सकता है, तो वह तो एक भूतपूर्व सांसद के पुत्र हैं।
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