(मो. शाह नबी)
रामपुर। भाजपा नेता फसाहत अली खान शानू ने प्रेस को जारी बयान में कहा है कि समाजवादी पार्टी के नेता से यह बयान दिलवाया गया कि मेरे नाम के साथ मीडिया प्रभारी या पूर्व मीडिया प्रभारी न लिखा जाये। मैं मीडिया से भी अपील करता हूँ कि मुझे मीडिया प्रभारी न लिखे। मैंने तो खुद पद पर लात मारी है। मैं नहीं चाहता कि मेरा नाम उनके साथ जोड़ा जाये। हाँ यह जरूर कहना चाहता हूँ कि यह याद 20 साल बाद आई। 20 साल तक यह क्यों नहीं कहा गया।
मैंने गद्दारी नहीं की है बगावत की है। इसलिये कि मैं झूठ और गलत का साथ नहीं दे सकता।20 साल तक दिया था, यह मेरी गलती थी। जिस गलती की सज़ा भी मुझे मिली। मुझे इन्ही वीरेन्द्र गोयल ने सोशल मीडिया पर विभीषण कहा और यह भी कहा कि मैंने लंका जलाई है। चलिये यह माना तो कि लंका थी और लंका जलाने पर मुझे गर्व है। लेकिन विभीषण कौन है। यह फैसला होना चाहिये। एक तरफ समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के खिलाफ मुझसे बयान दिलवाया जाता है। मुरादाबाद, लखनऊ और अब दोबारा रामपुर के लोगों आसिम खाँ, शानी खाँ से अखिलेश जी के खिलाफ बयान दिलवाया जाता है और खुद रामपुर में स्वागत करते हैं, मुरादाबाद में साथ बैठते हैं। मैंने विरोध किया तो खुलकर किया। भाजपा का साथ भाजपा में शामिल होकर दिया। समाजवादी पार्टी के जो लोग मेरे खिलाफ अशोभनीय टिप्पणियाँ करते हैं, मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि मैं योगी जी और मोदी जी के कुशल नेतृत्व एवम नीतियों को देखकर भाजपा में शामिल हुआ हूँ। आपके नेता की तरह नहीं, जो एक तरफ तो विधानसभा में माननीय मुख्यमंत्री जी का हाथ पकड़ते हैं, अपने परिवार से माननीय मुख्यमंत्री जी की खुशामद करवाते हैं। दूसरी तरफ माननीय मुख्यमंत्री जी व भाजपा का विरोध करते हैं। मेरे बारे में समाजवादी के लोग कहते हैं कि मैं मुकदमों के डर से गया हूँ। मैं अगर मुकदमों से डरता तो 27 मुकदमे होते ही नहीं। मुकदमों की एक न्यायिक प्रक्रिया है, जो जैसी सबकी चल रही है, वैसे ही मेरी भी चल रही है। मुझे कोई स्पेशल राहत तो मिली नहीं है। अगर बेगुनाह होऊँगा तो मुझे न्यायालय से न्याय मिलेगा हाँ मैंने अब्दुल की राजनीतिक और हैसियत और अहमियत हर दल में ऐसी बना दी है कि अब कोई राजनीतिक दल उससे दरी नहीं बिछवायेगा। जहाँ तक मेरा सवाल है तो मैंने तो भाजपा में शामिल होने वाले दिन ही माननीय प्रदेश अध्यक्ष जी के सामने यह कह दिया था कि मेरी कोई ख़्वाहिश या लालसा नहीं है।
शानू ने आगे कहा कि मैं एक बार फिर बदतमीज़ और बेहूदा सामाजवादीयों से कहना चाहता हूँ कि हल्की बात नहीं करें। वरना हल्का ही जवाब पायेंगें। ज़बान ही लड्डू-पेढ़े खिलवाती है और ज़बान ही जूते-चप्पल पड़वाती है।
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