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बदायूं कांड के ‘गुनहगारों’ को बचाना चाहता है प्रशासन!, महिला के पोस्टमार्टम की नहीं कराई गई वीडियोग्राफी

बदायूँ: उत्तर प्रदेश में बदायूं के उघैती क्षेत्र के एक गांव में आंगनबाड़ी कार्यकर्ती महिला की हत्या व दरिंदगी के साथ दुष्कर्म की घटना के बाद पुलिस द्वारा बरती गई लापरवाही जगजाहिर है लेकिन अब इस मामले में स्वास्थ्य महकमे की भी बहुत बड़ी कमी निकल कर सामने आई है। जिसमें महिला के शव की पोस्टमार्टम प्रक्रिया की वीडियोग्राफी नहीं कराई गई है और इसके लिए स्वास्थ्य विभाग के बड़े अधिकारी सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं।

महिला के शव का पोस्टमार्टम मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा गठित तीन डाक्टरों के पैनल द्वारा किया गया था। नियमानुसार महिलाओं के दुष्कर्म अथवा अन्य संदिग्ध मामलों में पैनल द्वारा की जाने वाली पोस्टमार्टम प्रक्रिया की वीडियोग्राफी कराना अनिवार्य होता है। जिससे आवश्यकता पड़ने पर मेडिकल एक्सपर्ट्स द्वारा पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी को देखकर उनकी एक्सपर्ट ऑपिनियन लिए जाने का प्रावधान है किंतु इस मामले में पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी ही नहीं कराई गई और प्रशासन और स्वास्थ्य महकमा पोस्टमार्टम रिपोर्ट को छुपाने में ही अपनी ऊर्जा खर्च करता रहा।

इस मामले पर बदायूं के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ0 यशपाल सिंह से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उनको प्रशासन द्वारा वीडियोग्राफी कराने के कोई भी निर्देश नहीं दिए गए थे इसलिए उन्होंने शव के पोस्टमार्टम प्रक्रिया की वीडियोग्राफी नहीं कराई यदि प्रशासन उन को निर्देश देता तब तो वह अवश्य ही शव की वीडियो ग्राफी कराते।

उल्लेखनीय है कि घटना के बाद 07 जनवरी को जब बदायूं के मुख्य चिकित्सा अधिकारी यशपाल सिंह से पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाबत बात की गई थी तो उन्होंने कहा था कि महिला की पसली टूटी हुई है। उसके एक पैर में फ्रैक्चर है, कुल्हे पर घिसटने के निशान हैं और उस महिला के प्राइवेट पार्ट्स में चोटों के निशान पाए गए हैं। डॉक्टरों के पैनल द्वारा किए गए पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में अत्यधिक रक्त स्त्राव एवं सदमे की वजह से उसकी मौत होना दर्शाया गया है ।

यशपाल सिंह से पूछा गया कि महिला के प्राइवेट पार्ट में किस प्रकार की चोटें हैं क्या उसमें कोई राड अथवा नुकीली चीज डाली गई है । इस पर उन्होंने कहा कि इसका जवाब तो मेडिकल एक्सपर्ट ही दे पाएंगे। अब जब मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा शव की वीडियोग्राफी ही नहीं कराई गई है, ऐसे में सवाल उठता है कि मेडिकल एक्सपर्ट्स भी अपनी ओपिनियन कैसे दे पाएंगे और यदि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर मेडिकल एक्सपर्ट अपनी ओपिनियन देते हैं तो वह तो पहले से ही पोस्टमार्टम करने वाले पैनल द्वारा दे दी गई है। इस बड़ी खामी की वजह से स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह लग गया है जो इस केस को सुलझाने के बजाए और पेचीदा बना रहा है।

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