विजय शंकर सिंह
दिल्ली पुलिस को किसानों द्वारा आयोजित गणतंत्र दिवस समारोह, जो वे धूमधाम से ट्रैक्टर रैली के रूप मे मनाना चाहते हैं की, न केवल अनुमति दे देनी चाहिए, बल्कि यह आयोजन शांतिपूर्ण तरह से सम्पन्न हो, इसकी व्यवस्था भी करनी चाहिए। गणतंत्र दिवस मनाने के लिये, जुलूस और झांकी निकालने के लिये, लोगों को उत्साह से इस राष्ट्रीय पर्व में भाग लेने के लिये कैसे रोका जा सकता है ?
26 जनवरी को इस आंदोलन और धरना के दो माह पूरे हो जाएंगे। इन दो महीनों में, आंदोलनकारियों को, कभी खालिस्तानी कहा गया तो कभी टुकड़े टुकड़े गैंग, कभी पिज्जा बर्गर खाने वाले फर्जी किसान तो कभी विपक्ष द्वारा भड़काये हुए लोग। पर सरकार ने कभी भी ऐसे दुष्प्रचार पर रोक लगाने के लिये कोई कदम नहीं उठाया, यहां तक अपने दल के कुछ जिम्मेदार नेताओ को भी ऐसी बातें कहने से नही रोका। बस एक समझदार बयान रक्षामंत्री जी का आया जिंसमे उन्होंने खालिस्तानी कहे जाने की निंदा की है।
सरकार किसान बातचीत के घटनाक्रम का कभी अध्ययन कीजिए तो, उसका एक उद्देश्य यह भी है कि यह आंदोलन बिखरे, थके और टूट जाये। इसीलिए दो महीने से यह बातचीत हो रही है। थकाने की भी रणनीति होती है यह। पर जब चुनौती अपनी अस्मिता औऱ संस्कृति तथा जब, सब कुछ दांव पर लगा हो तो समूह बिखरता नहीं है, वह और एकजुट हो जाता है। उनकी मुट्ठियां और बंध जाती हैं और संकल्प दृढ़तर होता जाता है।
इन दो महीनों में एक भी ऐसी घटना किसानों द्वारा नहीं की गयी, जो हिंसक होने का संकेत देती हो। हरियाणा पुलिस के वाटर कैनन के प्रयोग, सड़क खोदने, पुल पर लाठी चलाने जैसे अनप्रोफेशनल तरीके से भीड़ नियंत्रण के तऱीके अपनाने के बाद भी किसानों ने कोई हिंसक प्रतिरोध नहीं किया। वे आगे बढ़ते रहे और जहां तक जा सकते थे गए औऱ फिर वहीं बैठ गए। उन्होंने सबको बिना भेदभाव के लंगर छकाया, व्यवस्थित बने रहे और अपनी बात कहते रहे। दुनियाभर में इस धरना प्रदर्शन के अहिंसक भाव की सराहना हो रही है। सरकार ने भी किसानों के धैर्य की सराहना की है।
सरकार ने जब जब, जहां जहां बुलाया, किसान संगठनों के नेता वहां गए। बातचीत में शामिल हुए। अपनी बात रखी। बस अपने संकल्प पर वे डटे रहे। जहां इस तरह का अहिंसक और गम्भीर नेतृत्व हो वहां उन्हें गणतंत्र दिवस के समारोह से वंचित करना सरकार और दिल्ली पुलिस का बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय नही कहा जा सकता है। जन को ही जनतंत्र के महापर्व से शिरकत न करने देना अनुचित और निंदनीय होगा।
26 जनवरी की यह ट्रैक्टर रैली, किसान संगठनों द्वारा चलाये जा रहे धरना प्रदर्शन के धैर्य की एक परीक्षा भी होगी। हिंसा किसी भी कीमत पर नहीं होनी चाहिए और आंदोलनकारियों को चाहिए कि वे पुलिस से किसी भी प्रकार का कन्फ्रण्टेशन न होने दे। आज तक इसी अहिंसा ने सरकार को बेबस बना रखा है । हिंसक आंदोलन, कितनी बडी संगठित हिंसा के साथ क्योँ न हो, से निपटना आसान होता है पर अहिंसक आन्दोलन और धरने को हटाना बहुत मुश्किल होता है। यह बेबसी अब दिखने भी लगी है।
30 जनवरी को महात्मा गांधी की हत्या हुयी थी। ऐसी जघन्य हत्या का भी औचित्य सिद्ध करने वाली मानसिकता के लोग भी आज सरकार में हैं। वे गांधी के इस जनपक्ष को न तो जानते हैं और न ही जानना चाहते हैं। गांधी ने उन्हें अपने जीवनकाल में भी असहज किये रखा और अब भी वे गांधी से चिढ़ते हैं, नफरत करते हैं, किटकिटा कर रह जाते हैं, पर वे कुछ कर नहीं पाते हैं। एक अहिंसक, शांतिपूर्ण और सामाजिक सद्भाव से ओतप्रोत 26 जनवरी का यह किसान गणतंत्र दिवस समारोह सम्पन्न हो, इससे बेहतर श्रद्धांजलि, महात्मा गांधी को आगामी 30 जनवरी को नही दी सकती है।
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