आज़म ख़ान और समाजवादी पार्टी को लेकर पढ़िए हफ़ीज़ किदवई का यह शानदार लेख

शमशाद रज़ा अंसारी
एक लीडर जिसे बेपनाह मोहब्बत मिली तो बेपनाह नफ़रत भी उसके हिस्से में आई। एक लीडर जिसने रामपुर की खानदानी सियासत को घुटनों के बल बैठा दिया। आज जब वह बीमार हैं, सालभर से जेल में हैं। उनकी फिक्र में भी बहुत लोग मायूस हैं, तो बहुत लोग खुश भी हैं। किसी भी लीडर के लिए यह मंज़िल बहुत अहमियत की होती है, जब उससे मोहब्बत और नफरत दोनों दीवानगी की तरह की जाने लगे।
आज़म खान से मोहब्बत और नफरत दोनों में बड़ा हिस्सा धर्म का है, अहम किरदार ज़ुबान का है। हम तो उन्हें देख रहे,जो आज़म खान की आड़ लेकर अखिलेश यादव पर हमले करते हैं, मुलायम सिंह को कठघरे में खड़ा करते हैं। यह ठीक उस तरफ खड़े मिलते हैं, जिधर आज़म खान से नफरत करने वाले खड़े हैं, यह भी आज़म का नाम लेकर अखिलेश और मुलायम पर हमले करते हैं।
जिन्हें आज़म खान से नफरत है, उन्हें क्या ही कहें,वह अपने दिल में नफ़रत को इतना दहका चुके हैं कि उन्हें इंसान की खूबियों से पहले उसका धर्म दिखने लगा है, इन्हें क्या ही कहें,यह तो खुद नफरत में झुलस रहे हैं।
हमें तो उनसे कहना है, जो आज़म खान से मोहब्बत करते हैं, क्या वह आज़म खान की बात मानेंगे,क्या उनके कहे पर चलने की कोशिश करेंगे। आज़म खान ने तो हमेशा समाजवादी पार्टी की ख़िदमत की है, तो क्या आप भी करेंगे। आप आज़म खान से मोहब्बत तो जताना चाहते हैं मगर सिर्फ मुलायम और अखिलेश पर हमले करने के लिए,यह मोहब्बत नही आपके लिए मौका है।
वादा करो कि अगर आज़म खान और उनका परिवार समाजवादी में खड़ा है, तो हम भी खड़े होंगे। मगर यह कैसे चलेगा कि दुकान पर किसी और की खड़े हैं और फ़िक्र किसी और की है। यह बात केवल राजनीतिक लोगों के लिए है, उन मासूम लोगों के लिए नही जिन्हें सपा, बसपा,काँग्रेस,बीजेपी,संघ सब एक जैसा लगता है।
आज़म खान और उनका परिवार संतुष्ट है,उनके लीडर और पार्टी संतुष्ट है,नही संतुष्ट हैं, तो वह,जिन्हें आज़म खान को सामने रखकर अपनी रोटी सेंकनी हैं। असल में आज़म खान शिकार हो गए हैं, शिकार उनका जो उन्हें यातना देकर खुश हैं या फिर उनकी यातना से उनकी पार्टी को कठघरे में खड़े करने वाले,वरना इस वक़्त समाजवादी पार्टी से ज़्यादा और कौन परेशान होगा,जिसका लीडर वेंटिकेटर पर है, वह लीडर,जिसे लीडर लाखों कार्यकर्ताओं ने बनाया है।
यह मत सोचना कि आज़म खान कोई भी बन सकता है। लाखों कार्यकर्ताओं की मेहनत और बड़े लीडर्स का कंधे पर जब हाथ होता है, खुद में जज़्बा और ईमानदारी होती है, जूझने की सलाहियत होती है और पार्टी का झंडा सर पर होता है, तब आज़म खान बनते हैं। अगर कोई उनके बहाने पार्टी या नेता पर सवाल उठा रहा,तो वह धूर्तता कर रहा है, उसे आज़म खान से कोई मोहब्बत नही है, वह तो बस मौके के इंतेज़ार में है कि कब कुछ हो और वह कीचड़ की बाल्टियाँ लुढ़का दें।
आज़म खान के लिए दुआएँ हैं, उनके परिवार के लिए दुआएँ हैं। उनकी पार्टी और कंधे से कंधा मिलाए खड़े नेताओं के लिए दुआएँ हैं। वह ठीक रहें और बेहतरीन सियासी पारी खेले जैसे आजतक खेलते आए हैं। लाखों समाजवादी कार्यकर्ताओं का मुकुट हैं आज़म खान,उनकी आड़ लेकर जो अपनी गन्दी सियासत खेलेंगे,उन्हें फिर कुछ नही मिलेगा,क्योंकि जनता ईमानदार को देखती है, मौकापरस्तों को नही,जो आज बीमार आज़म में अवसर देख रहे,वह कभी आज़म खान की सुनने खड़े नही हुए,उनका साथ देने की जगह उनके पैर ही खींचे हैं।
आज़म खान अब उस जगह खड़े हैं, जहाँ लाखों कार्यकर्ताओं से लैस उनका राजनैतिक परिवार है, तो दूसरी ओर उनसे नफ़रत और मोहब्बत का वक़्ती नाटक करने वाले लोग हैं । एक तरफ उनका सियासी परिवार मायूस है, तो दूसरी तरफ यह दोनों उनपर हमलावर हैं । यहाँ से निकलकर जो फिर तनकर खड़ा होगा, वह आज़म खान ही होंगे,उनकी जरूरत है इस वक़्त, इसलिए ईश्वर उन्हें खड़ा रखे और आप भी याद रखें,समाजवादी से हटकर भी उन्होंने किसी और घर में बैठना ठीक नही समझा,इसलिए बीमार आज़म को बदनाम करने का गुनाह मत करो,वह समाजवादी को जीते हैं, जीते रहेंगे, उनके हमदर्द हो तो उनके साथ आएं, वरना संघ की पिच पर खड़े खेलते रहें…

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लेखक हफ़ीज़ किदवई

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