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आईएएस अंसार शैख़ की वेटर से लेकर आईएएस बनने तक की पूरी कहानी

आईएएस अंसार शैख़ की वेटर से लेकर आईएएस बनने तक की पूरी कहानी

आईएएस अंसार शैख़ की कहानी दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल से आईपीएस बनने वाले फ़िरोज़ आलम से कम दिलचस्प नही है। अंसार की कहानी पूरी तरह फ़िल्मी नज़र आती है। इसमें शराब पीकर माँ को पीटता ग़रीब ऑटो चालक बाप है,खेत में काम करती माँ है,पढ़ाई में मदद करता भाई है,हौसला बढ़ाता अध्यापक है, मज़ाक़ उड़ाते सहपाठी हैं,मुस्लिम होने की उपेक्षा है, बाप से घूस मांगता अफसर है। अंत में कदम चूमती सफलता है। सार यह है कि अंसार की कहानी बॉलीवुड की कहानी की तरह है।

अंसार हर उस युवा के लिए एक प्रेरणा हैं जो आर्थिक स्थिति, पिछड़े समाज और अपने धर्म और जाति को एक कठिनाई के रूप में देखते हैं। अंसार ने न केवल इन सब मुश्किल परिस्थितियों का सामना किया, बल्कि अपनी मेहनत और एकाग्रता से अपना लक्ष्य भी हासिल किया। बेहद कम उम्र में आईएएस बन अंसार ने ये साबित किया कि यदि आपके अंदर प्रतिभा है और कुछ कर दिखाने का जूनून है तो कोई भी परिस्थिति आपके हौसले से बड़ी नहीं। 

अगर आपके इरादे पक्के हों तो आप जिंदगी में कोई भी मुकाम हासिल कर सकते हैं’ ये लाइन महाराष्ट्र के जालान के छोटे से गांव में रहने वाले अंसार अहमद शेख पर एकदम फिट बैठती है। अहमद शेख ने महज 21 साल की उम्र में देश की प्रतिष्ठित यूपीएससी परीक्षा 2015 के परिणाम में 361वीं रैंक हासिल की। उनकी इस कामयाबी ने सभी को हैरत में डाल दिया, क्योंकि जिस परिस्थिति में अंसार ने परीक्षा दी थी उसमें इतनी कठिन परीक्षा पास कर पाना किसी सपने से कम नहीं है। लेकिन अंसार की लगन और कड़ी मेहनत ने उनको उनके मुकाम तक पहुंचा ही दिया।

पुणे के फर्गुसन कॉलेज से राजनीति विज्ञान में बीए की परीक्षा पास करने वाले अंसार अहमद शेख ने अपने कठिनाई भरे दिनों को याद करते हुए कहा कि सिविल सर्विसेज की तैयारी करने के लिए ही वह शहर आए थे। मुस्लिम होने की वजह से उन्हें शहर में रहने के लिए अच्छा घर नहीं मिल पा रहा था। उन्होंने बताया कि इस बात का ध्यान रखते हुए अपना नाम शुभम बताने लगा। नाम बदलने के बाद आसानी से पीजी मिल गया।

अंसार ने खुद बताया कि उनके पिता ऑटो रिक्शा चलाते थे और मां अज़ामत शैख़ जोकि उनके पिता की दूसरी पत्नी थीं, खेत में मजदूरी करती थीं। अंसार बताते हैं बचपन में मेरी नींद शोर-शराब के कारण टूट जाती थी। पापा देर शराब पीकर घर लौटते और माँ से झगड़ा करते थे। पापा प्रतिदिन सिर्फ सौ से डेढ़ सौ रुपये तक कमाते थे। जिसमें उनकी अम्मी-अब्बा समेत दो बहनें, एक भाई और अंसार अहमद का खर्चा चलता था। ऐसे में पढ़ाई-लिखाई करना काफी मुश्किल था। घर में पढ़ाई-लिखाई का कोई माहौल नहीं था। उनके छोटे भाई ने स्कूल में ही पढ़ाई छोड़ दी और बड़ी दो बहनों की शादी छोटी उम्र में ही कर दी गई थी। छोटा भाई पढ़ाई छोड़ कर चाचा के गैरिज में काम करने लगा।


घर के हालात इतने बुरे थे कि पढ़ाई छोड़ने की भी नौबत आ गई थी। उन्होंने बताया कि जब वह चौथी कक्षा में थे तब घर के हालात खराब होने की वजह से रिश्तेदारों और अब्बा ने उनसे पढ़ाई छोड़ने को कहा। रिश्तेदारों ने अब्बा से कहा कि काम करेगा तो चार पैसे कमा कर घर लायेगा। पढ़ाई करके ही कौन सी नौकरी लग जाएगी। रिश्तेदारों के कहने पर अब्बा पढ़ाई छुड़ाने के लिए मेरे स्‍कूल भी चले गए लेकिन मेरे टीचर पुरुषोत्तम पडुलकर ने ऐसा करने से मना कर दिया। अंसार कहते हैं कि अगर परुषोत्तम सर नहीं होते तो आज वे भी ऑटो ही चला रहे होते। जब टीचर ने मेरे अब्बू को समझाया कि मैं पढ़ाई में बहुत अच्छा हूँ, मुझे रोकना नहीं चाहिए। तब जाकर मैंने किसी तरह दसवीं की। इसके बाद अंसार ने 12वीं कक्षा में 91 फीसद अंक हासिल करके सबको चौंका दिया था। उन्होंने अपने उस दौर का जिक्र करते हुए बताया कि उस वक्त मिड डे मील ही भूख मिटाने का जरिया होता था और अक्सर उन्हें इस खाने में कीड़े मिलते थे। जब 12वीं में 91 फीसद अंक हासिल किए तो घरवालों ने फिर कभी उन्हें पढ़ाई के लिए नहीं रोका। पिता अपनी कमाई का छोटा सा हिस्सा मुझे भेजते थे तथा भाई अपना वेतन जोकि छह हज़ार रूपये था,मेरे खाते में डलवा देता था।


अहमद कहते हैं, मैंने बारहवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी करने के लिए पैसे जुटाने का सोचा इसलिए मैंने होटल में वेटर का काम किया। यहाँ सुबह 8 से रात 11 तक की इस नौकरी में बीच में दो घंटे का ब्रेक मिलता था। अंसार इसी ब्रेक में खाना खाते और कंप्यूटर क्लास अटेंड करने जाते। इस होटल में अंसार ने अपनी क्षमता से दोगुने साइज के पानी के बर्तन को कुंए से भरने से लेकर, टेबल पोछने और रात में होटल का फर्श साफ करने तक का काम किया, पर वे खुश थे कि अपनी फीस भर पा रहे हैं।

अंसार बताते हैं मैंने यूपीएससी की कोचिंग के बारे में भी सोचा। पर उसकी फीस दे पाना मेरे लिए आसान नहीं था। कोचिंग कराने वाली यूनीक एकेडमी की फीस सात हजार रुपये थी। मैंने एकेडमी के टुकाराम जाधव सर से मुलाकात की और अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में बताया। मुझसे बातचीत करने के बाद उन्होंने फीस में पचास फीसदी कटौती कर दी। वहां कोचिंग करने वाले युवा बीस से तीस साल के थे, और कई तो एक से अधिक बार यूपीएससी दे भी चुके थे। मैं उनमें सबसे छोटा था और सबसे पीछे बैठता था। जब मैं सर से ऊटपटांग सवाल पूछता, तो वे मेरा मजाक उड़ाते।

अफसर ने घूस माँगी तो आया अफसर बनने का ख़्याल

बीपीएल वर्ग को मिलने वाली एक योजना का लाभ लेने जब अंसार के पिता ऑफिस पहुंचे तो वहां बैठे ऑफिसर ने अंसार के पिता से घूस मांगी और अंसार के पिता ने उन्हें घूस दी। तब अंसार को लगा कि इस करप्शन का शिकार हम जैसे गरीब लोग सबसे ज्यादा होते हैं. इसे मिटाने के लिये उन्हें भी ऑफिसर बनना है।

2015 में पहले ही प्रयास में उन्होंने 361वीं रैंक लाकर वो कर दिखाया जो बहुत से कैंडिडेट सभी सुविधाओं के बाद भी न जाने कितने प्रयासों में भी नहीं कर पाते। अंसार को पश्चिम बंगाल में नियुक्ति मिली।

जब अंसार का रिजल्ट आया तो उनके पास दोस्तों को ट्रीट देने तक के पैसे नहीं थे, उल्टा उनके दोस्तों ने उन्हें खाना खिलाया। अगर ऐसे अभावग्रस्त माहौल से निकला लड़का इतनी कम उम्र में आईएएस बन सकता है तो शायद किसी को भी बहानों के पीछे नहीं छिपना चाहिये। सच तो यह है कि अगर ठान लो तो मंजिल मिलती ही है वरना बहाने बनाने में तो जिंदगी निकल जाती है।

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