Header advertisement

स्वतंत्र भारत में क्या सच में आज़ाद है हम?

स्वतंत्र भारत में क्या सच में आज़ाद है हम?

अफ्फ़ान नोमानी
प्रत्येक 15 अगस्त को हम भारतवासी स्वंतंत्रता दिवस बहुत ही हर्षोलास से मनाते है. यह दिन प्रत्येक भारतीयों के लिए अत्यंत गौरव और कीर्ति का दिन है। अंग्रेज़मुक्त भारत बनाने के लिए हमारे उलेमा ने सबसे पहले अंग्रेजों के ख़िलाफ फ़तवा जारी कि था . सुल्तान टीपू शहीद, अल्लामा फ़जले हक़ ख़ैराबादी, मौलाना इस्माइल शहीद देहलवी, मौलाना महमूदुल हसन देवबंदी, मौलाना किफ़ायतुल्लाह जैसे सेकड़ो उलेमा देवबंद से मेरठ, उत्तर भारत से दक्षिण भारत, व कश्मीर से कन्याकुमारी तक लाखों उलेमा देश के वीर सपूत ने अपनी परवाह न कर देश को आजाद करने के लिए जान कि बाजी लगा दी। उनलोगों के त्याग और बलिदान को देखकर देश के हर नागरिक मर मिटने के लिये तैयार हो गए। देशप्रेमी आजादी दिलाने के लिए तथा प्रगति के लिए बलिदान के लिये प्राणप्रण से जुड़ गए। अन्ततः देश के लिए मर मिटनेवाले लोगों के त्याग और तपस्या से देश आजाद हुआ। लेकिन मेरे मस्तिष्क में एक सवाल बार बार उठ रहा है कि स्वतंत्र भारत में क्या सच में आज़ाद है हम? देश के लिए क़ुर्बान होने वाले उलेमा व देशभक्त वीरों का सपनों का भारत यही है? महात्मा गाँधी, मौलाना आज़ाद,व मौलाना मदनी ने आज़ाद सेकुलर भारत का सपना देखा था जहाँ सब भारतीय भाईचारा व मोहब्बत से रहे. जरा विचार करें क्या हम अपने पूर्वजों के सपने को साकार कर रहे हैं? शहीदों कि कुर्बानी को उनकी इच्छाओं को पूर्ण कर रहे हैं? हम सब भाईचारे निभा रहे हैं? देश में एकता ला रहे हैं? प्राणों कि आहुति देने वालों के सपने को साकार कर रहे हैं? स्वाधीनता कि रक्षा कर रहे हैं? हज़ारों यक्ष प्रश्न मेरे सामने सुरसा कि तरह मुंह बाये खड़ा है। पर इन सभी प्रश्नों का मात्र एक उत्तर है ‘नहीं’। हम दण्डनीय अपराध कर रहे हैं। हम अपने ही देश में एक भारतीय दूसरे भारतीय के खून के प्यासे है. गाय व धर्म के नाम पर सेकड़ों मजलूमो की दर्दनाक हत्या, मोबलिंचिंग खुले आम किया जा रहा है. क्या यही है गाँधी के सपनों का आज़ाद भारत? पर बिडम्बना देखिये गांधी के ही देश में गोडसे की जयकार और गांधी का अपमान देश के कुछ हिस्सों में कुछ असमाजिक तत्व कर रहे है. यह देश का दुर्भाग्य है की गांधी के मानने वालो पर अंकुश व गोडसे की जयकार करने वालो को आज़ादी मिली हुई है. बलात्कार यह समाचारों का प्रमुख हिस्सा हो गया है। और कुछ राजनेता लोग इसे मामूली गलती बताते हैं। कठोर दण्ड का विरोध करते हैं। नर पिशाच हर क्षण दुराचार कर निर्भय विचरण करते है। क्या यही आजादी है?
देश के मौजूदा हालात देखकर नहीं लगता कि व्यवस्था या अर्थव्यवस्था में कोई परिवर्तन आया है। हां, हालात और बदतर जरूर हो गए हैं। एक ओर देश का नौजवान पढ़ा-लिखा होकर भी नौकरी को तरस रहा है, तो दूसरी ओर कुछ बच्चे प्राथमिक शिक्षा से भी महरूम हैं।
आज भी देश का पिछड़ा वर्ग जातिवाद का दंश झेल रहा है। सरकार व व्यवस्था से चोट खाए लोग आत्महत्या कर रहे है या तो गलत रास्ते को अख़्तियार कर लेते है.
जरूरत है कि हम सबको मिलकर व्यवस्था को बदलने की एक प्रभावी पहल करनी होगी। तभी हम समझ पाएंगे आजादी के सही मायने।

लेखक अफ्फ़ान नोमानी शिक्षाविद हैं व शाहीन एजुकेशनल एंड रिसर्च फाउंडेशन संस्था से जुड़े है।

No Comments:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *