हमारे हाथ में हरदम रही है किस्मत की चाबी

महिला काव्य मंच प्रहरी की मासिक काव्य गोष्ठी 1 अप्रैल 2022, को सायं 5 बजे नरेश नाज़, संस्थापक मकाम, के सान्निध्य में गूगल मीट पर सम्पन्न हुई, जिसकी अध्यक्षता कुमुद वर्मा, उपाध्यक्ष मकाम अहमदाबाद इकाई ने की। कार्यक्रम का संचालन और संयोजन डॉ मेजर प्राची गर्ग संयोजक, प्रहरी मकाम ने किया।
कार्यक्रम का विधिवत आरंभ भगवान गणपति के आव्हान, इन्दिरा की माँ सरस्वती की वंदना और नाज़ सर के आशीर्वचन से हुआ।
कार्यक्रम में अणिमा मंडल, डॉ मीता गुप्ता, राजेश्वरी देवी, नेहा सिंह, इंदिरा कुमारी, डॉ स्वदेश, तारा सिंह अंशुल, अर्चना पाण्डेय, अध्यक्ष तेलंगाना इकाई मकाम, मधु सोसि गुप्ता, अध्यक्ष अहमदाबाद इकाई मकामती, डॉली डबराल, अध्यक्ष वरिष्ठ नागरिक मंच मकाम, इरादीप त्रेहान, अध्यक्ष पंजाब इकाई मकाम, नियति गुप्ता, मार्गदर्शक मकाम, शशि नायर (अतिथि), डॉ मेजर प्राची गर्ग, शालू गुप्ता ट्रस्टी मकाम व प्रभारी प्रहरी मकाम, कुमुद वर्मा और नरेश नाज़ ने विविध विधाओं में सुंदर काव्य पाठ किया।
अणिमा मंडल में अपनी रचना- भतीजे की शादी- में पारिवारिक मनमुटाव को चित्रित किया तो डॉ मीता गुप्ता ने एक शिक्षिका कन्या के लिए वर के चुनाव में आने वाली सामाजिक विकृतियों को दिखाया।


इंदिरा कुमारी ने अपनी रचना के माध्यम से बताया कि हम बचपन से अंत तक कैसे अप्रैल फूल बनते रहते हैं। राजेश्वरी ने कहा- मैंने चुप रहना सीख लिया, पत्थरों से टकराकर नया मार्ग बनाना सीख लिया।
नेहा ने कहा- हम सब कठपुतलियाँ हैं जिन्हें भगवान चलाते हैं। अर्चना पांडे ने कहा- जिंदगी ज़रा रुक हाथ तो मिला, क्या है शिकवा, क्या है मुझ से गिला तो तारा सिंह ने- ए शहीद ए वतन हमारा आपको नमन कह कर देश के शहीदों को अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त की।
परिश्रम के महत्त्व को डॉ स्वदेश चरौरा ने कुछ ऐसे कहा- अगर मेहनत बने आदत, मुकद्दर कामयाबी है,परिश्रम की करूँ पूजा, मेरा हर पल गुलाबी है। अपनी रचना अमृता प्रीतम को समर्पित करते हुए इरादीप ने कहा- तुम अमृता हो, फ़ानूस में रखा ऐसा चिराग जो जलता रहेगा युगों तक। डॉली डबराल ने मुझको देखिए मुस्कुराए बात तब आगे बढ़े कहकर ने फौजी पति को अपनी बात समर्पित की।
मधु सोसि गुप्ता ने एक राजकुमारी की व्यथा के माध्यम से गहरी बात कह दी। शशि नायर ने देश के प्रबुद्ध वर्ग पर व्यंग करते हुए कहा – खीचों ना तलवार को अखबार निकालो। नियति गुप्ता ने यह धरती की गोद, हरी हरी घास, ऊपर से विशाल नीला आकाश, क्या सुखद एहसास से प्रकृति के अपने समन्वय को बख़ूबी दिखाया।
डॉ मेजर प्राची गर्ग ने अपनी रचना – कभी रिश्तों को वो जोड़े, कभी वो बेड़ियाँ तोड़े, कभी जब हद गुज़र जाए तो फिर अवतार बनती है- के माध्यम से विवाहित स्त्री के भावों को उसकी दिनचर्या में प्रकट किया।
शालू गुप्ता ने अपनी वेदना को प्रकट करते हुए कहा- ए दोस्त मेरे क्या कहूँ, यहाँ क्या नहीं चलता है। कुमुद वर्मा ने एक संदेश देते हुए कहा- चलते चली जाती हूँ अकेले चुपचाप, छोड़ती चली जाती हूँ, मिट्टी पर पदचाप। हवा हूँ बहती रहूँगी, मंजर बदल दूँगी। तुम कहो हम सुने, हम कहें तुम सुनो, जिंदगी प्यार से यूँ गुजरती रहे, सुबह से शाम तक शाम से सुबह तक हर घड़ी ज़ीस्त अपनी सँवरती रहे – गाकर आदरणीय नाज़ ने एक अनोखा समां बाँध दिया।
शानदार काव्य गोष्ठी का समापन धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।
गोष्ठी की सफलता के लिए आयोजकों द्वारा सभी प्रबुद्ध रचनाकारों का हार्दिक आभार व्यक्त किया गया।

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