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भारत में बढ़ती आर्थिक असमानता पर आफताब अहमद का विशेष लेख

भारत में बढ़ती आर्थिक असमानता पर आफताब अहमद का विशेष लेख

हाल ही में जारी की गई ऑक्सफैम की ताजा रिपोर्ट ये साफ दर्शा रही है कि भारत में अब दो देश बन गए हैं और दोनों में आर्थिक असमानता बढ़ती जा रही है। एक भारत के 21 लोगों की संपत्ति दूसरे भारत के 70 करोड़ लोगों की कुल संपत्ति से ज्यादा है, 16,091 लोग दिवालिया होने या कर्ज में डूबने के कारण व 9,140 लोग बेरोजगारी के कारण आत्महत्या करने को मजबूर हैं। हां यही कडाई सच्चाई है भाजपा राज में बने न्यू इंडिया की। आत्महत्या के आँकड़ें स्वयं भारत सरकार के और आर्थिक असमानता के आंकड़े ऑक्सफैम के हैं।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी बार-बार कहते थे कि भाजपा की मोदी सरकार दो हिंदुस्तान बना रही है, एक अमीरों का हिंदुस्तान और दूसरा गरीबों का हिंदुस्तान। ऑक्सफैम की रिपोर्ट ने भी अब राहुल गांधी की बात पर मोहर लगा दी है कि ‘न्यू इंडिया’ में अमीर और अमीर हो रहें है व गरीब और गरीब। पूरी दुनिया में आर्थिक विषमता की इतनी तेजी से चौड़ी होती हुई खाई कहीं देखने को नहीं मिलेगी।

एक तरफ भाजपा की मोदी सरकार सबका साथ, सबका विकास का नारा बुलंद करती है तो दूसरी तरफ देश के लोगों के हालात कितने भीषण आर्थिक असमानताओं के संग हिचकोलें खा रहे हैं, ऑक्सफैम की हालिया रिपोर्ट ने सरकार की पोल खोल कर रख दी है।

जो ऑक्सफैम वैश्विक स्तर पर गरीबी और अन्याय को कम करने के लिये कार्य क्षमता को बढ़ाना के लिए काम करती है और विभिन्न देशों में जिसकी एजेंसियां कार्य करती है उनके अनुसार- भारत में जहां वर्ष 2020 में अरबपतियों की संख्या 102 थी, वहीं वर्ष 2022 में यह आंकड़ा 166 पर पहुंच गया है। भारत के 100 सर्वाधिक अमीर लोगों की संपत्ति लगभग 54 लाख 12 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा हैं। इस रकम से भारत का पूरा बजट 18 महीने तक चलाया जा सकता है।

आप देश के भीतर आर्थिक असमानता के विकराल स्वरूप को केवल एक उदाहरण से समझ सकतें हैं कि यदि केवल “एक बडे उद्योगपति दोस्त” ने वर्ष 2017 से वर्ष 2021 तक जो अविश्वसनीय लाभ अर्जित किया है उस पर केवल एक बार टैक्स की रकम से देश भर के प्राथमिक विद्यालयों के करीब 50 लाख शिक्षकों को एक साल का वेतन दिया जा सकता है। ऑक्सफैम रिपोर्ट के मुताबिक देश के 10 सबसें धनी भारतीयों की कुल संपत्ति 27 लाख करोड़ रुपए है। पिछले वर्ष से इसमें 33 प्रतिशत की वृद्धि हुई। यह संपत्ति स्वास्थ्य और आयुष मंत्रालयों के 30 वर्ष के बजट, शिक्षा मंत्रालय के 26 वर्ष के बजट और मनरेगा के 38 वर्ष के बजट के बराबर है।

ऑक्सफैम रिपोर्ट के अनुसार 64 फीसदी जीएसटी देश की 50 फीसदी गरीब जनता भरती है वहीं अरबपतियों के द्वारा केवल 10 फीसदी जीएसटी ही आ रहा है। इसके बावजूद देश की मोदी सरकार इन रईसों पर किस कदर मेहरबान है कि, केन्द्र सरकार ने वर्ष 2020-21 में देश के कारपोरेट घरानों को 1 लाख करोड़ से ज्यादा की टैक्स छूट दी है। यह टैक्स छूट मनरेगा के बजट से भी ज्यादा हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था और निजी कंपनियों का डेटाबेस बनाने वाली सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार “कोरोना महामारी की दूसरी लहर के कारण देश में एक करोड़ से अधिक लोग बेरोजगार हो गए और देश के 97 प्रतिशत परिवारों की आय में कमी दर्ज की गई”। ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा बुलंद करने वाली मोदी सरकार बस चंद उद्योगपतियों की पूंजीवादी हित साधने वाली कंपनी के रूप में तब्दील हो चुकी हैं।

देश मे अमीरों की संख्या बढ़े इसमें कोई बुराई नहीं लेकिन उसी अनुपात में गरीबों की संख्या भी घटनी चाहिए ताकि अमीरों और गरीबों के बीच की खाई तो पाटी जा सके। कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि पांच ट्रिलियन अर्थव्यवस्था व ‘विश्वगुरु’ का हसीन ख्वाब देखते देखते भारत गरीबी के मामले में नाइजीरिया को भी पीछे छोड़ कर नंबर वन स्थान पर पहुंचने की तरफ चल रहा है। पूरी दुनिया की गरीब जनता का सबसे ज्यादा हिस्सा, 12.2% भारत और 12.2% नाइजीरिया में है। और इस प्रकार ‘न्यू इंडिया’ अब गरीबी की राजधानी के रूप में स्थापित हो रहा है।

ये दुःखद है कि देश के अंदर सत्ता के साथ नज़दीकी रखने वाली पूंजीवादी उद्योगपतियों की तिजोरी धन के खजाने में तब्दील होती जा रही है तथा गरीब और भी गरीब होते जा रहें हैं। स्विस बैंक में भारतीयों की दौलत में 212% का इज़ाफा हुआ जो बीते 13 वर्षों का रेकॉर्ड ध्वस्त कर चुका है। हालांकि मोदी व भाजपा का काला धन वापस लाने का वायदा भी सिर्फ एक जुमला ही साबित हुआ है और भाजपा ने भी उसे जुमला ही माना था।
और दूसरी तरफ आम जनमानस के बैंक एकाउंट में ‘मिनिमम बैलेंस’ के पैसे नहीं हैं।

भारत जैसे विकासशील देश में 23 करोड़ लोग अभी भी गरीबी रेखा से नीचे जी रहे हैं। इनमें भी 4.2 प्रतिशत वो गरीब हैं, जिनके पास न तो रहने को आशियाना है और न ही दो वक्त का खाना है।

सरकार की आर्थिक नीतियों के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी बढ़ी ही है। वैश्विक भूख सूचकांक की वर्ष 2022 की रिपोर्ट में भारत 121 देशों की सूची में 107वें नंबर पर है, जो शर्मनाक है।

भाजपा की मोदी सरकार गरीबों को 5 या 10 किलो गेंहू चावल देकर कहती है कि वो गरीबी मिटा रहे हैं जबकि अमीर उद्योगपति दोस्तों को लाखों करोड़ रुपए बांटे या माफ किए गए हैं, ऐसी ही गलत व असमान नीतियों के कारण भारत में अमीर-गरीब के बीच की खाई ऐतिहासिक रूप से चौड़ी हो गई है।

आर्थिक असमानता का मुख्य कारण भाजपा सरकार में बढती बेरोजगारी की समस्या, आय और धन की असमानता देश के निर्धन लोगों को रोजगार के अधिक अवसर प्राप्त नहीं होना है। आय की असमानता होने के कारण गरीब लोगों को शिक्षा तथा अन्य प्रशिक्षण के अवसर नहीं प्राप्त होते हैं। भाजपा राज में निर्धनता तथा असुरक्षा की वृद्धि बेतहाशा बडी है। इसके अलावा भ्रष्टाचार, साधनों का कुनिर्धारण के कारण भारत में आर्थिक असमानता रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई। सरकार को इन मामलों के समाधान के लिए गंभीर प्रयास करने चाहिए थे लेकिन मोदी सरकार हिंदु मुसलमान व जात पात की राजनीति में कुछ ज्यादा ही उलझ गई।

सरकार को अब धर्म की राजनीति छोड़कर एकाधिकारी प्रवृत्ति पर नियन्त्रण, विभिन्न साधनों के अधिकतम और न्यूनतम मूल्य निर्धारण की नीति, अनार्जित आयों पर भारी कर, पिछड़े वर्गों की आर्थिक सहायता, अवसरों की समानता, काम की गारण्टी, धार्मिक व जातिवाद की राजनीती की समाप्ती, अस्पृश्यता का व्यावहारिक रूप से निराकरण पर गंभीरतापूर्वक काम करना चाहिए ताकि एक देश में दो देश ना बनकर बल्कि मजबूत व सम्पन्न भारत का निर्माण हो जिसमें गरीब, मजदूर, किसान, जवान व आम जन भी खुशहाली का जीवन व्यतीत कर सके।

( लेखक हरियाणा कांग्रेस विधायक दल के उप नेता व नूंह विधायक आफताब अहमद हैं )

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