(उबैदउल्लाह नासिर)
चार दहाइयों के अपने पत्रकारिता के सफ़र में ऐसा बहुत कम हुआ है कि दिल और दिमाग में विचारों का समुद्र लहरे मार रहा हो, लेकिन उन्हें शब्दों में पिरोना कठिन लग रहा हो I प्रशिक्षु पत्रकार के तौर पर पहला असाइन्टमेंट कर्नेल गंज का दंगा था वहां के वीभत्स मंजरों ने वह हालत कर दी थी कि वापस आ कर कुछ लिखना मोहाल लग रहा था तब पिता तुल्य सम्पादक उस्मान गनी साहब ने एक पुरानी घटना बता के हौसला बढ़ाया घटना थी कि किस प्रकार बहुत ही सम्मानित और लेजेंडरी पत्रकार ख्वाजा अहमद अब्बास बापू की ह्त्या की खबर नहीं लिख पा रहे क्योंकि इस हत्या पर रो रो के उनका बुरा हाल था तब बाम्बे क्रोनिकल में उनके सम्पादक ने अपनी जेब से रूमाल निकल कर उन्हें देते हुए कहा कि अब रो चुको आंसू पोंछो और खबर लिखो क्योंकि पत्रकार के दिल में चाहे जैसी भावना हो उसका पहला कर्तव्य खबर लिखना है। क्योंकि पत्रकार दुखी भी होता है, खुश ही होता है, उसे गुस्सा भी आता है हर प्रकार की भावना उनके दिलों में होती है। लेकिन हर हाल में उन्हें अपना कर्तव्य भी निभाना होता है I राजीव गांधी की शहादत के बाद भी ऐसी ही कुछ भावना थी क्योंकि 2-3 दिन पहले ही सुल्तानपुर में उन से मिल के आया था अपने चेहरे पर उनके हाथों की गर्मी आज तक महसूस होती है फिर 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद का गिराना और कार सेवकों के हाथों बुरीं तरह मार खा के वापस आने पर भी खबर लिखना मुश्किल हो रहा था क्योंकि बदन पर चोट से ज्यादा आत्मा और दिल पर जो चोट लगी थी वह ज्यादा कष्ट दे रही थी।
आज भी लगभग वही भावना है। पहले सोचा था कि इस हफ्ते कॉलम नहीं लिखूंगा लेकिन फिर सोचा जो कुछ आज देश में हो रहा है इसका सिलसिला तो अभी बहुत लंबा चलेगा शायद जिंदगी कम पड़ जाए। कब तक इन हालत से राहे फरार अख्तियार करूंगा। कलम है कि मानता नहीं हैI पहले माफिया डॉन अतीक अहमद के नवजवान बेटे असद और उसके शूटर गुलाम की कथित पुलिस मुडभेड़ में हत्या और दुसरे ही दिन पुलिस कस्टडी में सैकड़ों लोगों की भीड़ में अतीक और उसके भाई अशरफ की हत्या Iयह केवल चार जरायम पेशा लोगों की ह्त्या नहीं थी यह देश में कानून व्यवस्था और संविधान के शासन की भी ह्त्या थी I इन हत्याओं पर समाज के एक वर्ग द्वारा खुशियाँ मनाया और समाज के दुसरे वर्ग के प्रति इतनी वीभत्स नफरत दिखाया जाना हमारे सभ्य समाज होने पर ही सवालिया निशान लगाता है, हालांकि यह पहला वाक्या नहीं था कि समाज का यह मानसिक रूप से बीमार सड़ा हुआ वर्ग इन अत्याचारों पर खुशियाँ मनाता हो I जहाँ एक आदमी को पुलिस खम्बे से बाँध कर पीट रही हो और सैकड़ों लोग तालियाँ पीट रहे हों, जहां ट्रेन के भरे डब्बे में एक नवजवान लड़के को पीट पीट कर मार डाला गाया हो और लोग मुर्दों को तरह चुप चाप खड़े या बैठे रहें, जहाँ 8 साल की एक बच्ची की एक हफ्ते तक आबरू लूटने के बाद क़त्ल किया जाता हो और उसके मुजरिमों की हिमायत में तिरंगा यात्रा निकाली जाती हो और जय श्री राम के नारे लगाए जाते हों, जहाँ एक बहुत ही पढ़ा लिखा केन्द्रीय मंत्री भी हत्यारों को माला पहनाए और मिठाई खिलाए उस समाज में अगर अतीक और उसके बेटे भाई और गुर्गे की ह्त्या पर जश्न मनाया जाए तो क्या हैरत और कैसी चिंता? मुख्या मंत्री ने मिटटी में मिला देने का वादा किया था और वरिष्ठ मंत्री सुरेश खन्ना ने हँसते हुए इसे आसमानी फैसला बता दिया तो फिर दूसरों का खुशियाँ मनाना कोई अचरज नहीं Iयोगी के सात वर्षों के शासन में यह 184वीं पुलिस मुठभेड़ है जो उनकी ठोक दो पॉलिसी का पुलिस द्वारा क्रियानवन है। इन मुडठभेड़ों में सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं इसमें अधिकता किस वर्ग की है यह आप सभी जानते हैं, इसे बताने की आवश्यकता नहीं। मुख्य मंत्री की इस ठोक दो की पॉलिसी की लहलहाती हुई सियासी फसल बीजेपी ने काटी क्योंकि जनता को अपनी मूलभूत समस्याओं और कानून के शासन संविधान की पाबंदी से ज्यादा एक विशेष वर्ग को टाइट किये जाने की ख़ुशी हैI अपनी इस नफरत जो उनके दिलों में सरकार की सरपरस्ती में मीडिया और कथित धर्म गुरुओं द्वारा बैठा दी गयी है वह कानून के शासन और संविधान की धज्जियां उड़ते देख कर खुश हो रहे हैं और उन्हें एहसास नहीं कि वह जो भस्मासुर पैदा कर रहे हैं वह कल उन्हें भी लील जाएगा। पड़ोस में लाश सड़ रही हो तो आप सुकून से नहीं सो सकतेI
पुलिस मुठभेड़ जो अधिकतर फर्जी होती है और सुप्रीम कोर्ट तक भी जिनको शक की निगाह से देखता हो यह सभ्य समाज में कानून व्यवस्था के नाम पर धब्बा है। इसी कारण सुप्रीम कोर्ट ने इन मुड्भेडो के सिलसिले में कुछ गाइड लाइन जरी की हैं जिनके अनुसार हर मुडभेड की एफआईआर लिखी जाएगी उसकी मजिस्ट्रेटी जांच होगी जांच मुडभेड में शामिल पुलिस टीम से ऊपर का अफसर करेगा, मगर क्या इन सभी मुठभेड़ों में इन गाइडलाइन्स की पाबंदी हुई और जांच का क्या नतीजा सामने आया, यह किसी को नहीं मालूमI मोदी के भारत और योगी के उत्तर प्रदेश में संवैधानिक संस्थाएं जिस प्रकार रीढ़ विहीन कर दी गयी है, उन पर रोना बेकार हैI आप को याद दिला दें कि उत्तर प्रदेश में सीएए विरोधी प्रोटेस्ट के दौरान पुलिस ने जो तांडव किया था और एक ही दिन में 22 नवजवानों की जिस प्रकार ह्त्या हुई थी उसकी फोटो और दस्तावेज़ समेत 700 पन्नो की एक रिपोर्ट राहुल गाँधी प्रियंका गांधी और कांग्रेस के अन्य नेत्ताओं के एक प्रतिनिधि मंडल ने खुद जा कर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग में दे कर जांच की मांग की थी, मागर आज तीन साल बीत जाने के बाद भी उस पर कोई जांच और कार्रवाई नहीं हुई उलटे मुख्य मंत्री ने सदन में उनको दंगाई बता के कह दिया की जो मरने आया था। उसे कौन बचा सकता है और सत्ता पक्ष मुख्य मंत्री के इस क्रूर अमानवीय बयान पर अट्टहास करने लगा था। जिसमें स्पीकर महोदय भी शामिल थे I
रह गया अतीक तो उसका यह अंजाम तो होना ही था। वह जिस रास्ते पर चल रहे थे उसका अंत पुलिस या विरोधी माफिया की गोली या फांसी के फंदे पर ही होना थाI कोई इस बात से इंकार नहीं कर सकता कि उत्तर प्रदेश में एक्टिव सभी माफिया गिरोहों में अतीक सब से क्रूर और निर्दयी डॉन था वह अपने ही नहीं अपने परिवार के भी इस अंजाम का ज़िम्मेदार है Iवह चाहता तो अपने बच्चों को अपने गंदे घिनौने साम्राज से दूर रख कर उनकी अच्छी पढ़ाई लिखा करा कर उन्हें अच्छा नागरिक बनवा सकता था लेकिन वह खुद उन्हें जरायम की दुनिया में लाया अपने नवजवान मकतूल बेटे असद से उस ने ही पहली ह्त्या करवाई थी अपनी पत्नी तक को उसने डॉन बना दियाI आज उसका खरबों रुपया और सैकड़ों बदमाशों का गिरोह उसके कोई काम नहीं आ रहा है। उसके दो बेटे जेल में है। दो सरकारी बाल गृह में हैं, एक बेटा और भाई मारा जा चुका है और उसकी पत्नी इधर-उधर छुपती फिर रही हैI हम में से किसी को अतीक से किसी प्रकार की कोई हमदर्दी नहीं है लेकिन जिस गैर कानूनी तरीके से उसका अंत किया गया है हम उसका विरोध करते हैं I अतीक को अगर कानूनी प्रक्रिया के बाद फांसी दे दी गयी होती जो उसे बहुत पहले ही दे दी जानी चाहिए थी तो पत्ता भी न हिलता लेकिन शायद वोट बैंक न बढ़ता वोट बैंक बढाने के इस तरीके के ही हम विरोधी है I
हमारी चिंता और हमारा विरोध अतीक के अंजाम पर नहीं भारत के सम्भावित अंजाम को ले कर है, समाज की उस गिरावट को ले कर है जिसमें यह देश मोदी युग के बाद फँस गया है, जहाँ जुर्म लाकानूनियत घृणा हिंसा और सम्प्रदायिकता को समाजी स्वीकारता मिली हुई है I याद कीजिये अमरीका वह केस जिसमें एक पुलिस वाले ने एक काले को अपने पैरों के नीच दबा के मार डाला था और पूरा अमरीका उबल पड़ा था चार दिन तक अमरीका में विरोध प्रदर्शन होते रहे बाद में पूरी अमरीकी पुलिस ने शस्त्र नीचे कर के अपने साथी की रंगभेदी और अत्याचारी कृति के खिलाफ अपनी नाराजगी और अस्वीकार्यता दिखाई थी ट्रम्प की इस मुद्दे अपर अनर्गल बयान बाज़ी से नाराज़ हो कर एक पुलिस अफसर ने उन्हें लगभग डांटते हुए कहा था “राष्ट्रपति महोदय या तो आप अच्छा बोलिए या अपना मुंह बंद रखिये”और चुनाव जीतने के बाद राष्ट्रपति जोए बिडेन ने उस काले के घर जा कर घुटनों के बल बैठ के माफ़ी मांगी थी Iसोचिये हमारे यहाँ इन हालत में क्या होता और फिर भी हम विश्व गुरु बनना चाहते हैं I
अतीक के तीनो हत्यारों का सामाजिक और आर्थिक बैकग्राउंड देखिये दोनों अनपढ़/अधपढ़ गरीब परिवार से आते हैं जिनको धर्म की अफीम पिला कर हाथ में कुछ रूपये और पिस्तौल दे दी गयी है और यह केवल इन्हीं तीनो तक सीमित नहीं है पूरे देश के बेरोजगार नवजवानों को इसी प्रकार बेरोजगार रख कर धर्म और घृणा का मिक्सचर पिलाया गया है I धार्मिक जुलूसों में तलवारें कट्टे लहरा कर भड़काऊ नारे लगाने और गाली गलौज करने वाले ऐसे ही नवजवान है जिनको न अपने अच्छी करियर की चिंता है न अपना जीवन स्तर सुधारने और परिवार को ऊपर उठाने की चिंता है उन्हें तो बस अब्दुल की नाक रगड़ने, उसे नीचा दिखाने से ही आत्मसंतुष्टी मिल रही है।
वो नवजवान जिन पर उनके परिवार और देश का भविष्य निर्भर करता है, उनके दिमाग में जहर भर कर और हाथ में कट्टा तलवार पकड़ा कर देश को श्रीलंका सीरिया रवांडा बनाया जा रहा है, हमारी चिंता यह है। हमारी चिंता अतीक और उसका अंजाम नहीं है।
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