(डॉ. अरशद बेग)
भारत की कृषि आज एक बड़े परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। यह परिवर्तन इज़राइल की जल प्रौद्योगिकी के माध्यम से आया है। रेगिस्तानी और पानी की कमी वाले इस छोटे से देश ने जो वैज्ञानिक उपलब्धियां हासिल की हैं, वे अब भारत की कृषि को नई दिशा दे रही हैं। लेकिन भारत जैसे देश, जिसकी अपनी एक वैचारिक और नैतिक विरासत रही है, को यह विचार करना होगा कि उसे इज़राइल से तकनीकी क्षेत्र में कितना सहयोग लेना चाहिए, खासकर तब जब इज़राइल पर नरसंहार के आरोप लग रहे हैं।भारत और इज़राइल आकार और जनसंख्या के हिसाब से बहुत अलग हैं, लेकिन दोनों देशों के सामने एक साझा चुनौती है — जल संकट। भारत में कृषि 40 प्रतिशत से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करती है और लगभग 20 प्रतिशत जीडीपी में योगदान देती है। लेकिन 60 प्रतिशत से अधिक कृषि भूमि मानसून पर निर्भर है और भूजल स्तर लगातार गिर रहा है।इज़राइल ने भी इसी समस्या से निपटते हुए ऐसी जल प्रौद्योगिकियां विकसित की हैं जो अब भारत के लिए वरदान साबित हो रही हैं, जैसे ड्रिप इरिगेशन, जल पुनर्चक्रण, स्मार्ट खेती और समुद्री जल शुद्धिकरण। ड्रिप इरिगेशन: हर बूंद की कीमतइज़राइल की सबसे प्रसिद्ध तकनीक ड्रिप इरिगेशन है — एक ऐसी प्रणाली जिसमें पानी बूंद-बूंद करके पौधों की जड़ों तक पहुंचता है। इससे पानी की बर्बादी 50 प्रतिशत तक कम हो जाती है और उत्पादन में 20 से 40 प्रतिशत तक वृद्धि होती है।इज़राइली कंपनी नेटाफिम ने भारत में इस तकनीक को लोकप्रिय बनाया है। आज महाराष्ट्र में गन्ने से लेकर कर्नाटक में अनार तक, लाखों किसान इसी प्रणाली के तहत फसलें उगा रहे हैं।केवल तकनीक देना पर्याप्त नहीं है, किसानों को इसका सही उपयोग सिखाना भी जरूरी है। इसी सोच के तहत 2008 में भारत और इज़राइल ने इंडो-इज़राइल एग्रीकल्चरल कोऑपरेशन प्रोजेक्ट शुरू किया। आज देश की कई राज्यों में 30 से अधिक सेंटर ऑफ एक्सीलेंस काम कर रहे हैं। ये केंद्र किसानों को आधुनिक सिंचाई, ग्रीनहाउस खेती, खाद और पानी के प्रबंधन, और फसलों के संरक्षण जैसी तकनीकों का प्रशिक्षण देते हैं। हरियाणा के घरौंडा केंद्र ने हजारों किसानों को नई तकनीक अपनाने में मदद की है। स्मार्ट खेती और डिजिटल उपकरणअब साझेदारी का अगला चरण स्मार्ट खेती है। इज़राइल के स्टार्टअप भारत में सेंसर, सैटेलाइट डेटा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित तकनीक ला रहे हैं, जो पानी की आवश्यकता को सटीक रूप से मापकर सिंचाई को स्वचालित कर देते हैं।इज़राइल का अपशिष्ट जल पुनर्चक्रण मॉडल भी भारतीय शहरों में अपनाया जा रहा है। इज़राइल लगभग 90 प्रतिशत गंदे पानी को कृषि उद्देश्यों के लिए पुन: उपयोग करता है।इन तकनीकों से किसानों की आय में वृद्धि हो रही है। उदाहरण के लिए, गुजरात के केला उत्पादक किसान ड्रिप इरिगेशन से अपनी आय दोगुनी कर चुके हैं। आंध्र प्रदेश में आधुनिक तकनीकों के माध्यम से साल भर उच्च गुणवत्ता वाली सब्जियां पैदा की जा रही हैं, जिससे निर्यात में भी वृद्धि हुई है। भविष्य की दिशाभारत-इज़राइल सहयोग अब और गहरा होगा। आने वाले वर्षों में दोनों देश मिलकर AI आधारित प्रेसिजन एग्रीकल्चर, जल संरक्षण तकनीक, और सूखा सहन करने वाली फसलों पर शोध करेंगे। यह साझेदारी भारत को खाद्य सुरक्षा और जल सुरक्षा के लक्ष्यों तक पहुंचने में मदद करेगी।भारत और इज़राइल का यह सहयोग केवल तकनीक का नहीं, बल्कि दृष्टिकोण और संकल्प का एक उदाहरण है। पानी की हर बूंद की कीमत समझने वाले इज़राइल ने भारत को सिखाया है कि कमी को भी अवसर में बदला जा सकता है।लेकिन यहां एक सवाल उठता है कि भारत जैसे वैचारिक देश को इज़राइल के साथ कितना सहयोग रखना चाहिए? क्या भारत को तकनीक के लिए अपने विचारों और सिद्धांतों से समझौता कर लेना चाहिए? इसका एक ही जवाब है: भारत को आधुनिक तकनीक में सहयोग जरूर करना चाहिए, लेकिन फिलिस्तीनी लोगों के प्रति उसका जो वैचारिक और नैतिक रुख है, उसे नहीं बदलना चाहिए।
(लेखक, कृषि विज्ञान के शोधकर्ता हैं)

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