नई दिल्लीः बिहार पुलिस ने चरित्र सत्यापन को लेकर एक नया फ़रमान ज़ारी किया है जिसके अनुसार पुलिस द्वारा निर्गत होने वाले चरित्र प्रमाणपत्र में अब किसी प्रदर्शन के दौरान सड़क जाम, तोड़फोड़ और हिंसक आचरण के मामलों में आरोपपत्रित लोगों के ख़िलाफ़ भी अभ्युक्तियां दर्ज़ की जाएंगी। बिहार पुलिस के इस फैसले पर पूर्व आईपीएस ध्रुव गुप्त ने चिंता ज़ाहिर की है। उन्होंने कहा कि इसका अर्थ यह है कि ऐसे लोगों को अब न सरकारी नौकरी मिलेगी, न ठेका, न पासपोर्ट। अगर आप सोचते हैं कि यह पुलिसिया आदेश शांतिप्रिय प्रदर्शन करने वालों पर नहीं, बल्कि प्रदर्शनों के दौरान उपद्रव करने वाले लोगों पर ही लागू होगा तो आप बहुत भोले हैं। व्यवहारिक रूप से यह एक लोकतंत्र विरोधी, अमानवीय और फासीवादी आदेश है।
पूर्व आईपीएस ने कहा कि किसी भी प्रदर्शन में हिंसक आचरण करने वाले मुट्ठी भर लोग ही होते हैं, लेकिन आरोपपत्र सिर्फ उनके विरुद्ध नहीं, कॉमन ऑब्जेक्ट या कॉमन इंटेंशन की धाराएं लगाकर उन निर्दोष लोगों के खिलाफ भी दायर होते हैं जो बगैर किसी हिंसक कार्रवाई की मंशा के प्रदर्शन में शामिल भर होते हैं। ऐसे हिंसक प्रदर्शनों के दौरान घटना-स्थल पर असली अपराधी कम, तमाशबीन लोग ज्यादा पकड़े जाते हैं।
उन्होंने कहा कि प्रदर्शन में शामिल अन्य लोगों की पहचान का ज़रिया अपराधी बैकग्राउंड वाले पुलिस के कथित मुखबिर या स्थानीय दबंग लोग होते हैं। ऐसे पहचान करने वाले लोग कानून की मदद कम, अपने विरोधियों से खुन्नस ज्यादा निकाल रहे होते हैं। ज़ाहिर है कि पुलिस के इस आदेश के पीछे सरकार-विरोधी प्रदर्शनों का दमन करने की अलोकतांत्रिक सोच है। इस आदेश के बाद असंख्य निर्दोष लोगों के भविष्य पर क्या असर होगा, इसका ख्याल भी डराने वाला है।
ध्रुव गुप्त ने कहा कि बिहार पुलिस के इस आदेश का सबसे ज्यादा लाभ ख़ुद बिहार पुलिस को होगा। पुलिस थानों में प्रदर्शन के दौरान कानून तोड़ने के अपराधों में फंसाने- निकालने और चरित्र प्रमाणपत्र बेचने की गैरकानूनी और महंगी प्रक्रियाएं चल निकलेगी। शराबबंदी के बाद पुलिस के हाथ में निर्बाध कमाई का यह दूसरा ज़रिया हाथ लगा है।