सरकार की तानाशाही बुलडोजर नीति पर न्यायपालिका की चुप्पी क्यों?

(मो. राशिद अल्वी (विधिक छात्र))
ऐसा लगता है सरकार ने एक विशेष समुदाय अल्पसंख्यक मुसलमानों के लिए न्याय की एक नई थ्यौरी ईजाद कर दी है, ऑन द स्पॉट डिसीजन एण्ड ऑन द स्पॉट जस्टिस और यह न्याय लोकतांत्रिक भारत में न्यायपालिका का नहीं, बल्कि सरकार की तानाशाही का है। ये न्याय की ऐसी थ्यौरी है, जिसमें मुसलमानों का दमन किया जा रहा है।ये सब ध्रुवीकरण की राजनीति के लिए एक प्रीपेड प्लान के साथ किया जा रहा है।
देश में दो तरह की घटनाएं होती हैं।पहली रामनवमी और हनुमान जयंती पर निकली पदयात्राओं में। इन पदयात्राओं में बहुत सारी जगह पर  हिंसा हो जाती है। वीडियो में देखा गया कि किस प्रकार से इन पदयात्राओं में तलवारें लहरायी जा रही थीं, मुसलमानों के खिलाफ धर्म विरोधी नारे लगाए जा रहे थे, उनके धार्मिक स्थलों पर चढ़ाई करके भगवा झंडे फहराए जा रहे थे,उनके नरसंहार की धमकियां दी रही थी। इन घटनाओं का ज़िम्मेदार भी मुसलमान। वहीं कुछ ही दिन बाद  दूसरी तरह की घटना होती है, बीजेपी की प्रवक्ता द्वारा पैगम्बर ए इस्लाम पर अमर्यादित टिप्पणी की जाती है। एक हफ्ते तक देश के मुसलमानों के विरोध करने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की जाती है। विदेशी दबाव पड़ने के बाद उसे पार्टी से निलंबित कर दिया जाता है, गिरफ्तारी फिर भी नहीं होती।मजबूरन अमर्यादित टिप्पणी के विरोध में नुपुर शर्मा और नवीन जिंदल की गिरफ्तारी की मांग को लेकर मुसलमान कुछ जगह सड़कों पर आकर विरोध-प्रदर्शन करते हैं और हिंसा हो जाती है। इस घटना का ज़िम्मेदार भी मुसलमान।
दोनों प्रकार घटनाओं में एक बात कॉमन है। दोनों ही प्रकार की घटनाओं में मुसलमान ही पत्थर फेंकते हैं। मुसलमानो ने उनकी पदयात्राओं में भी पत्थर फेंके और अपने द्वारा पैगम्बर ए इस्लाम पर की गई अमर्यादित टिप्पणी पर किये जा रहे विरोध-प्रदर्शन में भी खुद से पत्थर फेंके। हर तरफ से मुसलमान ही जिम्मेदार है। हिंसा कोई करे सरकार ने एक मंशा बना रखी है कि हर एंगल से मुसलमान को ही जिम्मेदार ठहराना है। न कोई विवेचना होगी और न ही किसी तथ्य को देखा जायेगा। सरकार द्वारा ऑन द स्पॉट डिसीजन लिया जायेगा। मुसलमानों को ही अपराधी घोषित किया जायेगा। मुसलमानो को गिरफ्तार करके थानों में क्रूरता से पीटा जायेगा। उनके घरों पर बुलडोजर चलवा दिया जायेगा और यह सब उस देश में हो रहा है, जहां विधि के समक्ष समानता और विधि का समान संरक्षण सभी को समान रूप से प्राप्त है। क्या सरकार की यह तानाशाही बुलडोजर नीति सिर्फ एक समुदाय विशेष के लिए है? एक मंत्री का बेटा किसानों पर गाड़ी चड़ा देता है, कई किसानों की मौत हो जाती है, लेकिन उसके घर पर कोई बुलडोजर नहीं चलाया जाता है। आज़ादी के बाद से इस देश में सरकार की नीतियों के खिलाफ बहुत से विरोध-प्रदर्शन हुए कई आंदोलन हुए जाट आंदोलन, पाटीदार आंदोलन, किसान आंदोलन आदि सबमें हिंसा हुई, लोग मारे गए, लेकिन सरकारों द्वारा इस प्रकार की कार्रवाई कभी नहीं हुई, जिस प्रकार मुसलमानों के विरोध-प्रदर्शन पर हो रही है। किसी भी आंदोलन के प्रर्दशनकारियों को थानों में क्रूरता से नहीं पीटा गया और न ही ऐसे उनके घरों पर बुलडोजर चलाये गये।मुसलमानो के साथ सरकार की यह दमनकारी नीति लोकतन्त्र के लिए ख़तरा है।
कानून का विधार्थी होने के नाते मैं समझता हूं कि अभियुक्त तब तक अपराधी नहीं है, जब तक अदालत उसे अपराधी घोषित नहीं कर देती। न्याय की एक प्रक्रिया होती है। यदि किसी ने कोई अपराध किया है, उसे अभियुक्त बनाकर अपराध के हिसाब से पहले प्राथमिकी दर्ज की जायेगी, उसके बाद उसे गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया जायेगा, फिर उस घटना की विवेचना की जायेगी, दोनों पक्षों को सुना जायेगा, उसके बाद अदालत तय करेगी कि वो अपराधी है या नहीं, किंतु यहां तो सरकार, सरकार से पहले मीडिया, अभियुक्त को अपराधी, पत्थरबाज़, देशद्रोह घोषित कर दे रही हैं।
भारत के संविधान में न्यायपालिका की सबसे अहम भूमिका है। यदि किसी के साथ अन्याय होता है,जब भी किसी के  संवैधानिक मूल्यों, कर्त्तव्यों, अधिकारों का हनन किया जाता है या सरकारों द्वारा संविधान के विरुद्ध कोई कार्य किया जाता है, तब न्यायपालिका संविधान के संरक्षक के रूप में कार्य करेगी और संविधान की रक्षा करेगी। आज देश में जो घटना क्रम चल रहा है उच्चतम न्यायालय को अब तक स्वतः संज्ञान ले लेना चाहिए था।न्यायपालिका की चुप्पी ने भारतीय न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। भारत के बहुत से कानूनविद् और विधिशास्त्रियों ने न्यायपालिका की चुप्पी पर सवाल किए हैं। उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों और वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर स्वत: संज्ञान लेने का आग्रह किया है। मैं भी माननीय उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से अपील करता हूं कि देश में चल रहे असंवैधानिक घटना क्रम पर स्वाता संज्ञान ले, जिससे न्यायपालिका की शाख पर सवाल न उठें।

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