ज़ैग़म मुर्तज़ा
इज़रायल से सीखा कि ग़ज़ा और पश्चिमी तट कैसे बनाते हैं, इज़रायल से पूछ रहे हैं विस्थापित कैसे करते हैं और इलाक़े की डेमोग्राफी कैसे बदलते हैं। इज़रायल से समझ रहे हैं यहूदी सेटलमेंट की तर्ज़ पर बस्तियां कैसे बसानी हैं और किस तरह कंक्रीट की दीवारें उठानी हैं। ये भी सीख रहे हैं कि दुनिया भर के यहूदियों को होमलैंड के नाम पर लाकर कैसे बसाना है और फिर कैसे बचाना है। लेकिन इसके अलावा और भी बहुत से सबक़ हैं सीखने को जो बाक़ी हैं।
पहला ये है कि भारत इज़रायल नहीं है। इज़रायल में सिर्फ 65 लाख यहूदी हैं। ये दिल्ली की आबादी का आधा भी नहीं है। इसके बावजूद 2018 में इज़रायल का रक्षा बजट 18.5 बिलियन डॉलर यानि 1850 करोड़ डॉलर था। यानि एक इज़रायली यहूदी की रक्षा पर सालाना 2847.15 डॉलर का ख़र्च है जो रुपये में लगभग दो लाख रुपये है। हर इज़रायली को अनिवार्य सैन्य सेवा देनी पड़ती है। आधी से ज़्यादा आबादी बंकरों में और इमरजेन्सी अलार्म की आवाज़ों के बीच जीने को मजबूर है। अगर अमेरिका जैसा संरक्षक न हो और अमेरिकी/यूरोपीय देशों में नौकरी, आव्रजन, व्यापार की सुविधा न हो तो आधे इज़रायली भूख से ही मर जाएंगे। आप उनके विकास और सैन्य क्षमता से अगर प्रभावित हैं तो समझिए कि अमेरिकी/यूरोपीय सैन्य कांट्रेक्टर और दुनियाभर की यहूदी कंपनियों का आर्थिक सहयोग न हो तो इज़रायल का अस्तित्व घंटे भर का नहीं है।
2000 और 2006 में लेबनीज़ मिलीशिया संगठन हिज़बुल्लाह जो किसी देश की व्यवस्थित सेना भी नहीं है, इज़रायल के सैन्य शक्ति होने का भरम तोड़ चुके हैं। अमेरिका और उसके सहयोगी हाल ही में सीरिया और ईरान के मामलों में झुकने या पीछे हटने को मजबूर हुए हैं। जिस अरब इज़रायल युद्ध में जीत का हवाला लोग देते हैं वो अमेरिकी सैन्य उपकरणों, रूस के युद्ध से अलग रहने और सऊदी अरब, सीरिया, मिस्र, इराक़ के नेताओं में आपसी विवाद के चलते संभव हुई थी।
फिलीस्तीन की स्थिती
फिलीस्तीनियों की कुल आबादी 45 लाख है इसमें सिर्फ 19 लाख मुल्क में रहते हैं, बाक़ी बाहर हैं। भारत में कई ज़िला मुख्यालयों की आबादी इससे ज़्यादा है। और हां इज़रायल का कुल क्षेत्रफल (22,072 वर्ग किमी) भारत के मणिपुर राज्य (22,327 वर्ग किमी) से भी कम है। इतने पर भी भारत का सालाना रक्षा बजट इज़रायल से क़रीब तीन गुना ही है और आबादी कई सौ गुना।
हमारे पास अमेरिका संरक्षक नहीं है जो रक्षा बजट में हर साल 16.75 फीसदी ख़ैरात दे, एफ-35 जैसे विमान और आयरन डोम जैसे रक्षा उपकरण सब्सिडी पर दे और फिर आर्थिक मदद भी करे। ज़रूरत पड़ने पर सैनिक और निजी सैन्य कांट्रेक्टर मुहैया कराए। तो भैया देसी बंधुओं इज़रायल बनने की कोशिश कीजिए मगर उससे पहले तीन काम कीजिए। पहले अमेरिका जैसे सर्वसुलभ, सर्व उपलब्ध संरक्षक खोजिए। दूसरा इज़रायलियों जितनी प्रति व्यक्ति आय (38,060 डाॅलर) कीजिए और फिर इज़रायलियों की तरह डर के साए में रहना सीखिए। उनके सामने वास्तविक ख़तरे हैं आप तो अंदेशे में ही डूबे जा रहे हैं। कुल मिलाकर हर देश, हर समाज और हर क्षेत्र की अलग चुनौतियां हैं और उनसे अपने तरीक़े से निपटना होता है। दूसरे की नक़ल में अपनी अक़्ल डूब जाती है। आराम से मिल-जुल कर रहिए क्योंकि हम भारत हैं, इज़रायल नहीं…
(लेखक जाने माने पत्रकार और अंतर्राष्ट्रीय मुददों के जानकार हैं)
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